Kolkata: पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के पहले सीएए को लेकर राजनीति शुरू हो गयी है. भाजपा महासचिव और पश्चिम बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने कहा है कि केंद्र सरकार नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के तहत शरणार्थियों को नागरिकता देने की प्रक्रिया संभवत: जनवरी 2021 से शुरू कर देगी. विजयवर्गीय ने 24 परगना जिले में पार्टी के ‘आर नोय अन्याय’ की शुरुआत के मौके पर संवाददाताओं से कहा कि केंद्र और भाजपा पश्चिम बंगाल में रह रही मातु शरणार्थियों की बड़ी आबादी को नागरिकता देने की इच्छुक हैं. विजयवर्गीय ने टीएमसी सरकार पर शरणार्थियों के साथ सहानुभूति नहीं रखने का भी आरोप लगाया.
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धार्मिक आधार पर प्रताड़ित शरणार्थियों को नागरिकता का प्रावधान
कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि केंद्र ने पड़ोसी देशों में प्रताड़ना के शिकार होकर हमारे देश में आनेवाले शरणार्थियों को नागरिकता देने के ईमानदार इरादे के साथ सीएए को पारित किया है. सीएए में 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी शरणार्थियों को नागरिकता दिये जाने का प्रावधान है.
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लोगों को बेवकूफ बना रही है भाजपाः टीएमसी
विजयवर्गीय की टिप्पणी पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए टीएमसी के वरिष्ठ नेता और राज्यमंत्री फिरहाद हकीम ने कहा कि भाजपा पश्चिम बंगाल के लोगों को बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही है. भाजपा को स्पष्ट करना चाहिए कि नागरिकता से उसका क्या मतलब है. यदि मातु नागरिक नहीं हैं, तो वे साल-दर-साल विधानसभा और संसदीय चुनावों में कैसे मतदान करते हैं. भाजपा को पश्चिम बंगाल के लोगों को बेवकूफ बनाना बंद करना चाहिए.
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बांग्लादेश से आये शरणार्थी हैं मातु
मातु मूल रूप से पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेश) के निवासी हैं, जिन्होंने 1950 के दशक में धार्मिक उत्पीड़न के कारण पश्चिम बंगाल में पलायन करना शुरू कर दिया. 30 लाख की अनुमानित आबादी के साथ मातु समुदाय कई सीटों पर चुनाव परिणामों को प्रभावित करने ताकत रखता है. यहीं कारण है कि चुनाव के पहले पार्टियों के लिए मातु एक मुद्दा बन सकता है.
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