Jamshedpur : जब लोग अपनी ढलती उम्र के पड़ाव में पारिवारिक जिम्मेवारियों के बोझ तले कुछ नया करने कि सोच भी नहीं पाते हैं. तब 48 वर्ष की आयु में अपनी तमाम पारिवारिक जिम्मेवारियों को निभाते हुए विपरीत परिस्थितियों में भी दुनिया की ऊंची शिखर सागर माथा अर्थात माउंट एवरेस्ट की चोटी पर 2011 में भारतीय तिरंगा लहरा कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रौशन करने वाली पर्वतारोही प्रेमलता अग्रवाल आज किसी परिचय की मोहताज नहीं.
फिटनेस अच्छी है तो कुछ भी असंभव नहीं
जमशेदपुर की पहचान बन चुकीं प्रेमलता अग्रवाल ने ` लगातार.इन ` से बात करते हुए कहा कि नए वर्ष 2022 में लोगों को सेहत और सफाई के प्रति जागरूक करना ही नए वर्ष का मेरा संकल्प है. मैं लोगों को विभिन्न माध्यमों से सेहत के प्रति जागरूक करती रहती हूं. अच्छी सेहत ही हमारी पूंजी है. आपकी फिटनेस अच्छी है तो आपके लिये कुछ भी असंभव नहीं. मैं हमेशा से अपनी फिटनेस के प्रति सचेत रही. आज मैंने जो मुकाम हासिल किया है उसमे मेरे फिटनेस का महत्वपूर्ण भूमिका है.
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बछेंद्री पाल का महत्वपूर्ण योगदान रहा
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि दलमा पहाड़ की ट्रॅकिंग से पर्वतारोहण का जो सफर शुरू हुआ वह आज तक बदस्तूर जारी है. प्रेरणाश्रोत के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि यह सब कुछ अंतरराष्ट्रीय पर्वतारोही बछेंद्री पाल के द्वारा लगातार किए गए उत्साहवर्धन एवं उनके कुशल नेतृत्व से संभव हो पाया , आज मैं जो भी हूं उसमे बछेंद्री पाल का महत्वपूर्ण योगदान है. पर्वतारोहण क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 2013 में उन्हे पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया.
माउंट मैकेनले को फतह करने वाली पहली भारतीय महिला
प्रेमलता अग्रवाल फिलहाल टाटा स्टील एडवेंचर एकेडमी से जुड़कर युवाओं के साथ ही उम्रदराज लोगों को भी उनके फिटनेस के प्रति जागरूक करते हुए उन्हें पर्वतारोहण के लिए प्रेरित करती हैं. लोगों को दलमा एवं आसपास की पहाड़ियों कि ट्रॅकिंग के लिए ले जाती हैं. अपने साथियों को बेहतर करते देख लोग जुड़ते जाते हैं. वह नियमित रूप से योगा और मेडिटेशन क्लास के माध्यम से लोगों को जागरूक करती रहती हैं. उल्लेखनीय है की 50 वर्ष की उम्र में 23 मई 2013 को उत्तरी अमेरिका के अलास्का के माउंट मैकेनले को फतह करने वाली वे पहली भारतीय महिला हैं.