- छात्राओं को माहवारी के बारे में किया जा रहा जागरूक
- बिहारी गर्ल्स स्कूल की प्रभारी प्राचार्या की अनोखी पहल
- शिक्षिकाएं, छात्राओं और अभिभावकों ने मिलकर बनाया है माहवारी स्वच्छता प्रबंधन लैब
Gaurav Prakash
Hazaribagh : बिहारी गर्ल्स स्कूल हजारीबाग अपनी स्कूल की छात्राओं के लिए बेहद संजीदा है. पैड वूमेन बनकर स्कूल की प्राचार्या रूपा वर्मा ने छात्राओं के लिए माहवारी स्वच्छता प्रबंधन अर्थात एमएचएम लैब बनाया है. झारखंड का यह पहला लैब है, जहां छात्राओं को माहवरी के समय क्या समस्या होती है और उन समस्याओं का समाधान कैसे किया जाए, इसके बारे में जानकारी दी जाती है. स्कूल की प्रभारी प्राचार्य रूपा वर्मा ने इस लैब की आधारशिला रखी है. इसके लिए यूनिसेफ की सहयोगी संस्था लिड्स ने दो दिवसीय प्रशिक्षण रांची में दिया था. उस प्रशिक्षण से प्रेरित होकर रूपा वर्मा ने लैब बनाया. लैब बनाने में उन्होंने किसी से भी वित्तीय सहायता नहीं ली. न विभाग से और न ही समाज के लोगों से. बल्कि अभिभावक, शिक्षक और स्कूल की छात्राओं ने मिलकर इस लैब को बनाया है. लैब बनाने में बेड, हॉट बैग, कैटल, पैड बैंक, साबुन बैंक, कंप्लेंट बॉक्स और आईने का उपयोग किया गया है. यह सभी सामान स्कूल के शिक्षकों और अभिभावकों ने उपहार स्वरूप दिया है. (पढ़ें, माउंट एवरेस्ट में हिमस्खलन, तीन नेपाली शेरपा गाइड लापता, खुम्बू आइसफॉल में बर्फ के नीचे दबे)
पेंटिंग और श्लोगन से तोड़ी जा रहीं भ्रांतियां
वहीं स्कूल की बच्चियों से तरह-तरह की पेंटिंग और श्लोगन दीवारों पर लगाया गया है. इसके जरिए यह बताया गया है कि माहवारी कोई अभिशाप नहीं, बल्कि यह एक शारीरिक प्रक्रिया है, जिससे हर महिला को गुजारना पड़ता है. इसे लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं वह सिर्फ और सिर्फ झूठ और मिथ्या है. बैनर के जरिए माहवारी कैसे होती है, इसे भी बताया गया है. लैब में एक कंप्लेंट बॉक्स रखा गया है. अगर किसी छात्रा को कोई बात पूछना है और वह अपनी बात रखने में झिझकती है, तो उस बॉक्स में अपना सवाल डाल देना होता है. शिक्षिका उस सवाल का जवाब छात्रों को सामूहिक रूप से देती हैं. लैब में मिरर लगाया गया है, जिसके जरिए छात्राएं अपना कपड़ा चेक कर सकती हैं कि उसमें कहीं गंदगी तो नहीं है. लैब में पैड बैंक भी बनाया गया है. माहवारी के दौरान पेट दर्द की समस्या भी झेलनी पड़ती है. ऐसे में लैब में एक बेड लगाया गया है जिसमें छात्राएं हॉट बैग से अपने पेट को गर्म पानी से सेंक सकती है. बेड बनाने में स्कूल का टूटा हुआ बेंच का उपयोग किया गया है. गद्दा, तकिया और चादर अभिभावक ने उपहार स्वरूप दिया है.
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हर माह 19 को स्वच्छता दिवस और 28 को मनाया जाता है माहवारी दिवस
स्कूल के प्रभारी प्राचार्य रूपा बर्मा बताती है कि लैब बनाने से अभूतपूर्व परिवर्तन स्कूल में देखने को मिल रहा है. पहले छात्राओं की संख्या 147 थी, जो अब बढ़कर 282 हो गई. विद्यालय में हर महीने की 19 तारीख को स्वच्छता दिवस मनाया जाता है. यहां छात्राएं और स्कूल की शिक्षिकाएं अपनी ओर से स्वच्छता का सामान डोनेट करती हैं. वहीं 28 तारीख को माहवारी दिवस मनाया जाता है. इस दिन शिक्षिका अपनी छात्राओं को कई महत्वपूर्ण जानकारी देती हैं.
पीले धागे से होती है पहचान
वहीं स्कूल की प्राचार्या ने एक और कोशिश की है कि जिन छात्राओं का माहवारी चल रहा है, वह अपने हाथ में लाल चूड़ी पहनती हैं. उस चूड़ी में पीला धागा बांधती हैं. अगर हाथ में तीन धागा बंधा हुआ है, इसका अर्थ है कि उसका तीसरा दिन चल रहा है. इससे छात्राओं को पहचानने में आसानी होती है.
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अब खत्म हुई झिझक, स्कूल में करते हैं चर्चा
स्कूल की छात्रा रिसिता सिन्हा बताती है कि पीरियड के दौरान उन लोगों को काफी समस्याएं होती थीं और पढ़ाई में भी बाधा आती थी. वे लोग महीने में पांच दिन स्कूल नहीं आ पाती थीं. लेकिन लैब बनने के बाद इस समस्या का समाधान हो गया. कई ऐसी समस्या थी, जो हम लोग अपने घरों में भी चर्चा नहीं कर पाते थे. लेकिन उन समस्याओं का समाधान भी स्कूल में हो ज रहा है. इस कारण उन लोगों के लिए लैब बहुत ही महत्वपूर्ण हो गया है.
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