Ranchi : राज्य में कोरोना के बाद फेफड़ा रोग के मरीजों की संख्या सबसे अधिक बढ़ी है. पल्मोनरी रोग के विशेषज्ञ डॉ निशिथ ने बताया कि कोरोना में सबसे अधिक संक्रमित फेफड़ा ही हुआ था. कहा कि फेफड़े से संबंधित बीमारियों की जांच सबसे महत्वपूर्ण है. छाती के ऑपरेशन के भी कई प्रकार हैं. इनमें छाती में पानी जमने की समस्या अब आम होने लगी है. लोगों में खर्राटे लेने की आदत, दिन में झपकी और रात में नींद पूरी नहीं होने से आगे चल कर हार्ट और ब्रेन की बीमारी होने का खतरा रहता है. उन्होंने बताया कि लोगों में फेफड़े की रोग के प्रति जागरुकता भी बढ़ी है. इस कारण थोड़ी भी परेशानी होने पर लोग अस्पताल पहुंच कर जांच करा रहे हैं. वैसे लोग जितने कोरोना में गंभीर रूप से संक्रमित हुए थे, उनका थोड़ा सा भी इंफेक्शन बड़ा रूप ले लेता है. ऐसे में उन मरीजों को सतर्क रहने की जरूरत है. हालांकि पोस्ट कोविड समस्या सिर्फ एक साल तक ही थी. अब कोरोना प्रभावित नहीं कर रहा है. पर कोरोना के बाद मरीजों में सांस संबंधित परेशानी को लेकर विशेष तौर पर जागरुकता आयी है, जिससे मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है.
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प्रदूषण से फेफड़े हो रहे कमजोरः डॉ निशिथ
डॉ निशिथ ने कहा कि कोरोना के बाद पल्मनोलॉजी का महत्व बढ़ गया है. शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग फेफड़ा है. और प्रदूषण होने के कारण फेफड़ा प्रभावित हो रहा है. कैंसर के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं. अब रांची में अत्याधुनिक चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध है. फेफड़े में पानी भर जाता है और पता नहीं चलता है, तो इसके लिए थायरोस्कॉपिक जांच की जरूरत पड़ती है. यह सुविधा इस शहर में है. कई बार फेफड़े का कैंसर होने पर ब्रोंकोस्कोपिक जांच की जरूरत होती है. इसकी सुविधा भी रांची में है. अपने देश में लंग ट्रांसप्लांट की सुविधा भी अब उपलब्ध है.
ज्यादातर मरीज 60 से अधिक उम्र वाले
डॉ निशिथ ने बताया कि पोस्ट कोविड पल्मोनरी फाइब्रोसिस एक ऐसी स्थिति है, जिसमें कोविड संक्रमण के कारण फेफड़ों के नाजुक हिस्सों को नुकसान पहुंचता है. फेफड़ों में झिल्ली बन जाती है. फेफड़े कम एक्टिव रह जाते हैं जिससे ऑक्सीजन और कार्बन-डाइऑक्साइड एक्सचेंज होना कम हो जाता है. अगर सही तरह से इलाज न हो तो जिंदगी भर फेफड़ों संबंधी परेशानी रह सकती है. जो मरीज मोटापा, फेफड़ों की बीमारी, डायबिटीज इत्यादि से पीड़ित होने के अलावा कोरोना संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं और लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रह चुके हैं, उन्हें पल्मोनरी फाइब्रोसिस का खतरा ज्यादा है.
टीबी को हल्के में न लें, आनेवाले दिन मुश्किल: डॉ ब्रजेश मिश्रा
रिम्स के टीबी और छाती रोग विशेषज्ञ डॉ ब्रजेश ने कहा कि औद्योगिक और खनन क्षेत्र होने के कारण झारखंड में सांस संबंधी बीमारियों के मरीजों की संख्या बढ़ी है. फेफड़े में धूल-कण जाने से दमा, अस्थमा, टीबी, सिलिकोसिस जैसी बीमारी हो रही है. शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो रही है. जिस कारण आगे चलकर इलाज में भी समस्या होती है. पहले ट्यूबरक्लोसिस(टीबी) पौष्टिक भोजन नहीं मिलने के कारण कमजोर लोगों को होता था, लेकिन आज ऐसा नहीं है. टीबी की दवा लेने वाले मरीज जब दवा छोड़ देते थे, तब मल्टीड्रग रेजिस्टेंस (एमडीआर) टीबी होता था, लेकिन अब एमडीआर टीबी के कई मामले सामने आ रहे हैं. इसका इलाज बिल्कुल अलग है. इसे हल्के में नहीं लें, अन्यथा आने वाले दिन मुश्किल भरे हो सकते हैं.
आर्टरीज में खून गाढ़ा होने की समस्या हुई आम: डॉ प्रशांत
रिम्स के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ प्रशांत ने बताया कि कोरोना के बाद वस्कूलर थ्रोमबोसिस, रक्त की धमनियों का गाढ़ा होना, खून का जमना समान्य हो गया है. जिस कारण कोरोना के बाद हृदय के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. पर उन्होंने कहा कि पोस्ट कोविड का असर सिर्फ कोरोना के एक साल बाद तक ही था. उसके बाद अब तक हृदय को लेकर कोई नई स्टडी सामने नहीं आई है. लेकिन हृदय रोगियों के मामले 2021 के बाद बढ़े हैं.
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