Ranchi : डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), कानपुर के सेवानिवृत्त प्रोफेसर और कांसेप्ट ऑफ फिजिक्स के लेखक डॉ. हरिशचंद्र वर्मा ने व्याख्यान दिया. व्याख्यान टॉपिक माई डिवाइन एक्सप्रेशन विथ एकेडमिक द जॉय ऑफ लर्निंग विषय पर हुआ. विश्वविद्यालय केआईक्यूएससी और भौतिकी विभाग द्वारा आयोजित इस व्याख्यान में प्रो एचसी वर्मा ने काफी रोचक तरीके से विद्यार्थियों के साथ संवाद किया. कुलपति डॉ. तपन कुमार शांडिल्य कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए इस दो दिवसीय कार्यशाला को महत्वपूर्ण बताया और कहा कि इस दो दिवसीय कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य यह होना है कि इस लब्ध प्रतिष्ठित, पद्मश्री प्राप्त विद्वान की अकादमिक श्रेष्ठता से न सिर्फ हमारे विश्वविद्यालय के शिक्षक लाभान्वित हो, बल्कि अन्य विश्वविद्यालय, महाविद्यालय के सबंधित विषय के शिक्षक और विद्यार्थी के अलावा विद्यालयों के 12 वीं कक्षा के शिक्षक और विद्यार्थी भी इसका लाभ उठा सकें. उन्होंने कहा कि इसलिए यह दो दिवसीय आयोजन किया गया है कि दो दिनों के बाद विद्यार्थियों को इस कार्यशाला के माध्यम से न सिर्फ भौतिकी बल्कि विज्ञान से सबंधित नवीन जानकारियां प्राप्त हो सकें. कॉलेज ऑफ आर्ट्स, साइंस एंड कॉमर्स, पटना के भौतिकी विज्ञान के एसोसिएट प्रो डॉ. संतोष कुमार ने सोपान द्वारा विद्यार्थियों के हित में संचालित किए जा रहे प्रो एचसी वर्मा के कार्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह देश में अपने तरह का पहला प्रयास है, जिसकी जितनी सराहना की जाए वो कम है. विश्वविद्यालय की कुलसचिव डॉ. नमिता सिंह, वित्त पदाधिकारी डॉ. आनंद मिश्रा समेत, डॉ. विनय भारत, इतिहास विभाग के एचओडी प्रो राजेश कुमार सिंह समेत अन्य उपस्थित रहे. मुख्य अतिथि उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग, झारखंड के सचिव राहुल कुमार पुरवार ने कहा कि डॉ. श्यामा प्रसाद विश्वविद्यालय, रांची द्वारा इस प्रकार के व्याख्यान माला की पहल प्रशंसनीय है. खासतौर पर प्रो एचसी वर्मा जैसे लब्ध विद्वान से इसकी शुरुआत करना. उनकी यह अपेक्षा रहेगी कि विश्वविद्यालय इसी तर्ज पर अन्य विषयों के लिए भी इस प्रकार के व्याख्यानमाला का आयोजन करे.
विज्ञान के अध्ययन के लिए सामान्य घरेलू प्रयोगों पर दिया जोर
व्याख्यान में मुख्य वक्ता पद्मश्री प्रो एचसी वर्मा ने सरल जीवन शैली का उल्लेख करते हुए विद्यार्थियों को काफी रोचक तरीके से विज्ञान के अध्ययन को सामान्य घरेलू प्रयोगों के द्वारा प्रमाणित करने पर बल दिया. उन्होंने अपने द्वारा संचालित किए जानेवाले नेशनल अन्वेशिका एक्सपेरिमेंटल स्किल टेस्ट. एनएईएसटी का उल्लेख करते हुए बताया कि यह एक वार्षिक प्रतियोगिता है, जो भौतिकी में एक भारतीय छात्र के उत्सुक अवलोकन कौशल, विश्लेषण कौशल और प्रयोगात्मक कौशल का आकलन और पोषण करती है. इसका आयोजन शिक्षा सोपान के माध्यम से किया जाता है. इसमें दो समूहों के लिए परीक्षा आयोजित की जाती है, नवीं कक्षा से 12वीं की कक्षा व स्नातक और स्नातकोत्तर के विद्यार्थियों के लिए. इसके उपरांत उन्होंने विद्यार्थियों के साथ संवाद कर उनके प्रश्नों के उत्तर दिए. उन्होंने कहा कि आज आवश्यकता इस बात की है कि श्रेष्ठ शिक्षक उपलब्ध होने के साथ साथ विद्यार्थियों को भी अपने लक्ष्य के प्रति पूरी तरह समर्पित होना चाहिए और अपना शत प्रतिशत देना चाहिए.
विज्ञान और साहित्य नदी के दो किनारे
उन्होंने कहा कि एक तरफ विनय भारत है जो साहित्य का प्रतिनिधित्व करते हैं और एक तरफ मैं हूं जो लोग कहते हैं कि विज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हैं. कहा जाता है कि विज्ञान और साहित्य नदी के दो किनारे है और मिलते तभी है जब नदी सुख जाती है.लेकिन दो किनारे कभी भी एक दूसरे से अलग नहीं होते है.वे नदी के द्वारा जुडे हुए होते है. साहित्य हो या विज्ञान हो हम प्रकृति के अंश है. सारी प्रकृति एक होती है.उसमे किसी प्रकतार का विभाजन नहीं होता है. ये विभाजन जो है ये साहित्य है ये विज्ञान है सोसयोलोजी है ये वकालत है ये प्रोफेशनल है ये हमारी सुविधा के लिए, प्रशासनिक सुविधा के लिए बनाई गई लकीरे है. प्रकृति सारी है अगर हम प्रकृति एक साथ देख नहीं पाएंगे, हम भी उसी प्रकृति के अंग है. प्रकृति के साथ हम अपने आप को आत्मसार नहीं कर पाएंगे तो हमने जो ये काल्पनिक लकीरें खीची हैं, वो हमे विभाजित करती रहेंगी. मैं आप का धन्यवाद करता हूं कि आपने इस बात को उठाया.
बताया कि किस तरह भाषा बनती है रुकावट
प्रो एचसी वर्मा ने कहा कि उच्च शिक्षा के सचिव राहुल कुमार पुरवार ने मुझे बताया कि भाषा किस प्रकार से बैरियर हो जाता है. उन्होंने आश्वस्त किया कि आने वाले समय में ये बैरियर छोटा होगा. क्योंकि भारत सरकार की जो नीतियां है उसे हम प्रमोट कर रहे हैं. मैं इस दर्द से बहुत बार गुजर चुका हूं. आईआईटी कानपुर में मैं जब एमएससी करने के लिए एडमिशन लिया था, तो पटना बीएससी कर के वहा गया था. मुझे अंग्रेजी बोलनी तो नहीं आती थी लेकिन मैं बोल लेते था, मुझे अंग्रेजी लिखनी तो नहीं आती थी लेकिन मैं लिख लेते था. पढ़नी तो नहीं आती थी लेकिन मैं पढ़ लेता था, लेकिन एक काम मैं नहीं कर सका अंग्रेजी तो मुझे सुननी नहीं आती थी और मैं नहीं ही सुन पाया. हमारे प्रोफेसर क्लास रूम में आने के बाद अंग्रेजी में वो क्या पढ़ा रहे हैं, क्या बोल रहे हैं, मुझे कुछ नहीं समझ में आता था. ना ही उसके अंदर का विज्ञान समझ में आता था. वो बोल क्या रहे हैं, ये भी पता नहीं रहता था हमे. एसे ही परिस्थिति में मैंने पुरी सेमेस्टर गुजार दिया. पुरे एक सेमेस्टर तो गुजराही गुजरा सुनने का अभ्यास बना तब पता चला कि अच्छा कुछ एसा बोल रहे है. थोड़ा थोड़ा धीरे-धीरे वो समझ में आने लगा. किसी दूसरी भाषा, जिसपर अपनी महारथ नहीं है, उस भाषा की वार्ता को सुनना, चुनौतीपूर्ण काम है. जो बोलने वाला वक्ता होता है उसकी एक धारा प्रवाह होती है. अगर हम अंग्रेजी की किताब पढ़ते हैं और हमें पढ़ना नहीं आता है तो उसे हम कई बार रिपीट करते है. अगर मुझे लिखना नहीं आता है तो थोड़ी देर मेरी कलम रुकी रहेगी, फिर मैं शब्दों को ढूंढ़ के लिख लूंगा. लेकिन वहां कोई जोर नहीं है. बोलने वाले अगर एक मिनट में 20 शब्द बोल रहे हैं तो वो 20 ही शब्द होंगे, वो 19 नहीं होंगे. मेरी कानपुर की पढ़ाई एक साल की थी और करीब करीब ऐसे ही बीती.
जितनी योजनाएं बनती हैं, वो अंग्रेजी में बनती हैं
ये आश्चर्च का बात है कि भारतीय भाषाओं को प्रभावि बनाने के लिए जितनी योजनाएं बन के, जितने प्रपत्र बन के आते हैं, वो सब अंग्रेजी में आते हैं. इसे कार्यरूप में कैसे लाना है, इसके लिए मीटिंग होती है. इसके लिए सभाएं होती हैं. इसके जितने भी विचार विमर्श होते हैं, वो अंग्रेजी में होते हैं. जितनी योजनाएं बनती है, वो अंग्रेजी में बनती है. जितने विद्वान लोग इसके उपर समीक्षा करते हैं, इसके प्रभावों की गणना करते हैं, वो भारतीय भाषाओं में नहीं होते हैं, अंग्रेजी में होते हैं. उसके जो पॉलिसी डॉक्यूमेंट बनती है, वो भारतीय भाषाओं में नहीं बनती है, वो अंग्रेजी में बनती है.
कुछ बातें कही गई कि हम पीएचडी में आकर रिसर्च को रोक देते हैं. ये तो बहुत मौलिक समस्या है. ये मौलिक इसलिए है कि हम ये बचपन से लेकर चल रहे हैं, क्यों पढ़ाई करना, नौकरी के लिए करना. स्कूल क्यों जाना तो स्कूल में क्यों होमवर्क करके जाना तो परीक्षा में अच्छे नंबर लाने के लिए. हमें बचपन से वहीं ट्रेंनिग मिली है. हमें पढ़ना किस लिए, परीक्षा पास करने लिए, नंबर लाने के लिए. हमें रिसर्च करना तो क्यों, करना पीएचडी के लिए. हमारे विश्वविद्यालय ने इतने विद्यार्थियों को पीएचडी करवा दिया. हम कहते हैं कि ना हमने 99 प्रतिशत नंबर लाये तो इससे हमारा आकलन होता है. जो रिसर्च करते हैं तो ये भी उसी प्रकार का आंकलन है.
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