Faisal Anurag
संविधान के अनुसार भारत राज्यों का संघ है, लेकिन संघात्मक ढांचे का कितना सम्मान सत्ता में बैठी पार्टी के नेता करते हैं इसका एक उदाहरण तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के बयान से समझा जा सकता है, जिसमें आदित्यनाथ ने वोटरों से अपील करते हुए कहा कि वे वोट भाजपा को ही दें नहीं तो यूपी भी बंगाल,कश्मीर और केरल बन जाएगा. देश के तीन सीमावर्ती राज्यों के संदर्भ में देश के सबसे बड़े प्रदेश के मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी केवल अहंकार का प्रदर्शन ही नहीं है बल्कि इससे जाहिर होता है कि हालत किस तरह बिगड़ गए हैं, जहां राज्यों की विविधता के सम्मान पर प्रहार किया जाता है. यह वैसा ही उदाहरण है जिस तरह दुनिया को ”उपनिवेश” बनाने वाले देश अपने बचाव और श्रेष्ठता का दंभ भरते रहे हैं. दरअसल यह औपनिवेशिक मानसिकता का भी इजहार है और साथ ही दूसरों को हेय दिखाने का प्रयास भी है. भारत ने उपनिवेशवाद के विनिष्ट कर आजादी हासिल की, लेकिन औपनिवेशिक सोच अब भी शेष है.
भारत आज जिस लोकतांत्रिक संकट का सामना कर रहा है उस पर संजीदगी से विचार करने की प्रवृति राजनैतिक अहंकार ने निगल लिया है. राज्यों के बीच अनेक तरह की सांस्कृतिक,भाषाई,जीवनशैली और सोचने के तरीके को लेकर भिन्नता है.इसलिए सदियों से कहा जाता रहा है कि भारत अनेकता में एकता का प्रतीक है. लेकिन अनेकताओं के प्रति हीनताबोध पैदा करने की प्रवृति की जड़ कहीं ज्यादा मजबूत रही है. जाति अहंकार हो या फिर संख्याबल का दंभ विविधताओं को एकरूपता देने के लिए बेचैन है. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की पूरी अवधारणा है कि विविधता और बहुलतावादी राष्ट्रवाद के समन्वय के विपरीत तर्क खड़ा करता है.
आदित्यनाथ के बयान को लेकर बंगाल,केरल और कश्मीर में कम प्रतिक्रिया नहीं हुयी है. केरल के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन ने ट्वीट किया ”अगर यूपी केरल में बदल जाता है @myogiadityanath डर. यह सबसे अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, सामाजिक कल्याण, जीवन स्तर का आनंद लेगा और एक सामंजस्यपूर्ण समाज होगा जिसमें धर्म और जाति के नाम पर लोगों की हत्या नहीं की जाएगी. यूपी की जनता यही चाहेगी.” कांगेस के सांसद शशि थरूर के अनुसार कश्मीर की खूबसूरती,केरल का विकास नजरिया और बंगाल की सांस्कृतिक चेतना से सीखने की जरूरत है.
विपक्ष के नेता और कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक वी डी सतीसन ने भी आदित्यनाथ को निशाने पर लेने के लिए ट्वीटर का सहारा लिया. सतीसन ने ट्वीट किया “प्रिय यूपी, केरल की तरह बनने के लिए वोट करें. बहुलता, सद्भाव चुनें. मध्ययुगीन कट्टरता के लिए समावेशी विकास. केरलवासी, बंगाली और कश्मीरी भी भारतीय हैं.”
आदित्यनाथ के बयान ने इस सवाल को भी फोकस में ला दिया है कि जिन राज्यों में गैर भाजपा सरकारें हैं उन्हें लेकर देश की सतारूढ़ पार्टी के नेताओं का नजरिया किस तरह का है. आदित्यनाथ ने यूपी को देश के नंबर एक राज्य बनाने का जो प्रचार किया, नीति आयोग के आंकड़े ही उसकी गवाही देगा. बंगाल तो वैसे भी भाजपा का एक बड़ा दर्द है. पिछले साल बंगाल के विधानसभा चुनावों में हर हथकंडा अपनाने के बावजूद भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा.
लोकतंत्र का यह एक ऐसा दौर है, जहां असहमति को राष्ट्रद्रोह जैसा देखा जाने लगा है. यदि संसद में हुए राष्ट्रपति के अभिभाषण के सरकारी जबाव का अध्ययन किया जाए तो स्पष्ट है कि विपक्ष के लिए किस तरह का नजरिया है. प्रधानमंत्री के भाषण के निहितार्थ जो भी हैं उसमें विपक्ष के लिए हिकरात का भाव साफ है. पत्रकार रविकांत के शब्दों में ””दुनिया की नजरों में भी मोदी के शासन को, कमजोर होते लोकतंत्र और असहिष्णु धार्मिक राष्ट्र के रूप में देखा जा रहा है. पिछले दिनों कई रेटिंग एजेंसियों ने लोकतांत्रिक आजादियों के घटने के कारण भारत को पार्शियली फ्री या फ्लाड डेमोक्रेसी में तब्दील होते जाने की ओर संकेत किया है. आदित्यनाथ का बयान तो इसी का एक विस्तार जैसा है.
हिजाब प्रकरण में अब अमेरिका ने भी बयान दिया है और विविधता और जीवनशैली के धाकर्मक प्रतीकों के सम्मान की शिक्षा दी है. इसके पहले फ्रांस के मशहूर फुटबॉलर पॉल पोग्बा ने भी सवाल उठाए हैं. लेकिन सबसे तीखी टिप्प्णी तो दुनिया के मशहूर दार्शनिक नॉम चोमस्की ने दी है “इस्लामोफोबिया की विकृति”, जो अब पूरे पश्चिम में बढ़ रही है भारत में अपना सबसे घातक रूप ले रही है, जहां मोदी सरकार भारतीय धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र को व्यवस्थित रूप से खत्म कर रही है और देश को हिंदू जातीयता में बदल रही है”. आदित्यनाथ ने जिन तीन राज्यों को देश बताया उसके पीछे भी तो यही नजरिया क्रियाशील है. भाजपा कश्मीर,बंगाल और केरल में अल्पसंख्यकों की सक्रियता को लेकर सवाल उठाती रही है””.