Anand Kumar
विवादास्पद राफेल सौदे में दलाली मामले को लेकर पेरिस स्थित शेरपा नामक एक गैर सरकारी एसोसिएशन ने फ्रांस की सरकारी अभियोजन सेवाओं की वित्तीय अपराध शाखा को अलर्ट किया. इसमें मीडिया के खुलासे का हवाला देते हुए 36 राफेल विमानों की खरीद में संदिग्ध भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग, असरदार लोगों को प्रभावित करना और पक्षपात की जानकारी दी गयी थी. फ्रांस की न्यूज वेबसाइट मीडियापार्ट ने अपनी रिपोर्ट के दूसरे भाग में खुलासा किया है कि वित्तीय अपराध शाखा की प्रमुख एलियन हॉलेट ने अपने सहयोगियों की विपरीत राय के बावजूद इस सौदे में भ्रष्टाचार और सबूतों की जांच नहीं की. इस मामले में लगाये गये आरोपों में फ्रांस के वर्तमान राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और उनके पूर्ववर्ती फ्रांस्वा ओलांद को भी उधृत किया गया था. हॉलेट ने तब अपने फैसले को “फ्रांस के हितों तथा संस्थानों के कामकाज” को संरक्षित करने के उद्देश्य से लिया गया बताया था.
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इससे पहले अपने पहले भाग में मीडियापार्ट ने इस बात का खुलासा किया था कि कैसे विवादास्पद राफेल सौदे में दसॉ ने एक बिचौलिए को एक मिलियन यूरो का भुगतान करने पर सहमति जतायी थी.. इस बिचौलिये पर भारत में एक अन्य रक्षा सौदे के मामले में भी जांच चल रही है. फ्रांस की भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी ‘फ्रांकेइस एंटीकरप्शन (AFA) ने दसॉ की एक नियमित ऑडिट के दौरान दलाली दिये जाने के इस मामले को पकड़ा था. हालांकि, AFA ने फैसला किया कि इस संदिग्ध भुगतान की जानकारी अधिकारियों को नहीं दी जाये.
दो साल पहले रफ़ाल को लेकर भारत में काफ़ी हंगामा खड़ा हो गया था.
राफेल सौदे में दलाली विवाद उस समय मोदी सरकार के लिए सबसे बड़े संकट के तौर पर उभरा था. मामला उस समय जाकर थमा, जब 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को क्लीन चिट दे दी. इसके एक साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने ही इस सौदे में सरकार को क्लीन चिट दिये जाने वाले अपने फैसले की समीक्षा की मांग वाली याचिकाओं को भी खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यीय बेंच में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और केएम जोसेफ शामिल थे. जस्टिस गोगोई रिटायरमेंट के कुछ महीने बाद ही राज्यसभा के सदस्य बना दिये गये थे.
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