मीडियापार्ट रिपोर्ट के दूसरे भाग का हिंदी अनुवाद
Lagatar Desk
राफेल डील में दलाली की जांच की मीडियापार्ट की श्रृंखला के दूसरे भाग की पहली किस्त में आपने पढ़ा कि कैसे फ्रांसीसी वित्तीय अपराध शाखा की प्रमुख एलीन हॉलेट ने इस सौदे में भ्रष्टाचार की प्रारंभिक जांच को बंद करने का फैसला किया. किस तरह इस सौदे में रिलायंस की इंट्री हुई और कैसे इस डील पर रक्षा मंत्रालय की पीठ पीछे एक समानांतर वार्ता भी चल रही थी. अब आगे-
इस बीच, दसॉ और फ्रांसीसी तथा भारतीय सरकारों ने जोर देकर कहा कि फ्रांसीसी विमान निर्माता कंपनी ने रिलायंस को अपनी मर्जी से अपने साथ जोड़ा था. हालांकि यह तर्क 21 सितंबर, 2018 को मीडियापार्ट द्वारा फ्रांस्वा ओलांद (जिन्होंने 2017 में राष्ट्रपति भवन छोड़ा) का साक्षात्कार छापने के बाद ध्वस्त हो गया. इसमें रिलायंस का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, वह भारत की सरकार थी, जिसने इस समूह की सेवाओं के लिए प्रस्ताव दिया था. इस मामले में हमें और कुछ नहीं कहना है”.
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कुछ दिन बाद, 10 अक्तूबर 2018 को मीडियापार्ट ने दसॉ कंपनी के एक दस्तावेज का मजमून उजागर किया. इसमें एक वरिष्ठ कार्यकारी को यह कहते हुए उद्धृत किया गया था कि दसॉ ने रिलायंस के साथ राफेल सौदे में “भरपाई (compensation)” व्यवस्था के तहत काम करना कबूल किया था. लड़ाकू विमान के अनुबंध को सुरक्षित करने के लिए उसके लिए ऐसा करना “अनिवार्य और बाध्यकारी” दोनों ही था.
जैसा कि मीडियापार्ट ने भी बताया था, 24 जनवरी, 2016 को जिस दिन फ्रांस्वा ओलांद, राफेल जेट की बिक्री के प्रारंभिक अनुबंध पर दस्तखत करने तीन दिनी यात्रा पर नयी दिल्ली पहुंचे, उसी दिन रिलायंस ने उनकी पार्टनर जूली गायट के सह निर्माण में बननेवाली फिल्म टाउट एलए-हाउट में 1.6 मिलियन यूरो के निवेश का एलान किया.
26 अक्टूबर 2018 को फ्रेंच एंटी-करप्शन एनजीओ शेरपा ने वित्तीय अपराध अभियोजन सेवाओं PNF को अपना कानूनी अलर्ट या “सिगनलमेंट” भेजा. इसमें उसने “संभावित भ्रष्टाचार, अनुचित लाभ देने, प्रभावित करने,”अपराधों को समर्थन देने और उनकी मदद करने, फ्रांस और दसॉ कंपनी द्वारा भ्रष्टाचार और मनी लांड्रिंग से फायदा हासिल करने” जैसे आरोप लगाये थे.
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जैसा कि फ्रेंच साप्ताहिक पत्रिका “पेरिस मैच” ने लिखा, PNF की प्रमुख एलीन हॉलेट ने शेरपा की चेतावनी के बाद शुरू हुई सभी प्रारंभिक जांचों को बंद करने का फैसला किया. यह कदम उनके उप अभियोजक और इस मामले के प्रभारी जीन-यवेस लोरगुरु की राय के विपरीत थी. हॉलेट ने इस साप्ताहिक को बताया कि कोई भी बड़ी जांच एक साधारण से निराधार संदेह पर नहीं खोली जाती. मेरे हाथ बंधे हुए थे. मीडियापार्ट द्वारा संपर्क किये जाने पर जीन-यवेस लोरगुरु ने कहा कि मैंने 18 माह से ज्यादा समय पहले PNF छोड़ दिया है. मैं इस मामले पर टिप्पणी नहीं कर सकता.
कई न्यायिक सूत्रों के अनुसार, मामले को बंद करने के हॉलेट के फैसले और इस मुद्दे पर उनकी टिप्पणियों ने PNF के अंदर उनके खिलाफ भावनाओं को हवा दी. इसने कुछ हलकों में इस संदेह को पुख्ता किया कि उन्होंने जांच में इसलिए कोताही बरती, क्योंकि इससे मैक्रों प्रशासन को शर्मिंदगी उठानी पड़ती.
मीडियापार्ट को जानकारी मिली कि हॉलेट ने प्रारंभिक जांच को बंद करने के पहले कोई जांच-पड़ताल नहीं की. उन्होंने अपने कार्यालय में सिर्फ एक व्यक्ति का अनौपचारिक इंटरव्यू लिया, जिसका बयान आधिकारिक रूप से दर्ज नहीं किया गया. यह बैठक दसॉ का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील किरिल बोगर्टशेव के साथ हुई थी.
हालांकि हॉलेट ने मामले से जुड़े सवालों के जवाब देने से इनकार कर दिया, लेकिन PNF के एक प्रतिनिधि ने मीडियापार्ट के सवालों के लिखित जवाब में रेखांकित किया कि “अभियोजन सेवा ने दसॉ कंपनी के वकील का कोई साक्षात्कार नहीं लिया था”.
किरिल बोगर्टशेव ने मीडियापार्ट के सवालों का जवाब देने से इनकार कर दिया.
फ्रांस में वकीलों के साथ इस तरह के अनौपचारिक साक्षात्कार पूरी तरह से कानूनी हैं, लेकिन इन्हें शायद ही कभी किसी जांच की शुरुआत में किया जाता है. इसके अलावा शेरपा, जिसके अलर्ट पर PNF ने जांच शुरू की थी, को कभी भी ऐसी बैठक के लिए नहीं बुलाया गया.
दसॉ ने PNF के रुख का इस्तेमाल इस मामले को ठंडा करने के लिए किया. उसने यह तर्क दिया कि भारतीय अधिकारयों द्वारा रिलायंस को नये राफेल सौदे में उसके औद्योगिक साझीदार के रूप में थोपा नहीं गया था. उसे तो तीन साल पहले 2012 में पहले अनुबंध के समय ही भागीदार के रूप में चुना जा चुका था.
अपने तर्क को साबित करने के लिए दसॉ ने पुराने कांट्रैक्ट की एक कॉपी PNF को भेजी. मगर ये अनिल अंबानी का रिलायंस था ही नहीं. दरअसल, भारत में दो अलग-अलग रिलायंस समूह हैं. एक अनिल अंबानी की रिलायंस और दूसरी उनके भाई मुकेश अंबानी की रिलायंस. 2012 में दसॉ द्वारा हस्ताक्षरित अनुबंध मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज के साथ था, जिसने दो साल बाद रक्षा उद्योग संबंधित अपने सभी कामकाज बंद कर दिये.
2012 में दसॉ का अनिल अंबानी के समूह रिलायंस (एडीएजी) के साथ कोई संबंध नहीं था. जैसा कि दसॉ ने अप्रैल, 2018 में जारी एक बयान में माना था कि अनिल अंबानी के समूह के साथ उसकी साझेदारी अप्रैल, 2015 में तय हुई थी.
अप्रैल 2019 में राफेल सौदे को लेकर संदेह तब गहरा गया, जब अखबार ले मोंडे ने दूरसंचार क्षेत्र में विशेष रिलायंस समूह की एक फ्रांसीसी सहायक दूससंचार कंपनी, रिलायंस फ्लैग अटलांटिक फ्रांस को दिये गये उदार टैक्स एजस्टमेंट का खुलासा किया.
इस फ्रांसीसी दैनिक ने बताया कि कंपनी पर 151 मिलियन यूरो की भारी टैक्स देनदारी थी, लेकिन राफेल सौदे की घोषणा के छह महीने बाद अक्टूबर 2015 में फ्रांस का टैक्स विभाग आखिरकार इस देनदारी को घटाकर 7.6 मिलियन यूरो करने पर सहमत हो गया.
ले मोंडे ने यह भी लिखा कि नाम नहीं बताने की शर्त पर अनिल अंबानी के करीबी रहे एक रिलायंस कर्मचारी ने बताया कि 2015 की शुरुआत में उसने और अंबानी ने इमैनुएल मैक्रों से मुलाकात की थी. मैक्रों उस समय फ्रांस के आर्थिक मामलों के मंत्री थे. यह मुलाकात मैक्रों के दफ्तर में हुई, जहां से किये गये एक फोन कॉल ने टैक्स की समस्या हल कर दी थी.
राष्ट्रपति भवन “ओलीसी पैलेस” ने ले मोंडे को बताया कि उस बैठक को मैक्रों के आधिकारिक एजेंडे में दर्ज नहीं किया गया था और तब के सलाहकारों में से किसी को भी इमैनुएल मैक्रों और अनिल अंबानी के बीच ऐसी किसी बैठक की याद नहीं है.
संक्षेप में, फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने उस कथित बैठक पर व्यक्तिगत टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, जिसे न तो स्पष्ट रूप से नकारा गया और न ही इसकी पुष्टि की गयी. मीडियापार्ट द्वारा इस विषय पर संपर्क करने पर मैक्रों ने कोई जवाब नहीं दिया.
21 मई 2019 को शेरपा ने PNF को एक और अलर्ट भेजा. इस बार यह रिलायंस समूह की फ्रांसीसी सहायक कंपनी को भारी टैक्स छूट दिये जाने के फैसले के बारे में था. दो महीने बाद, 30 जून को अपना पद छोड़ने के थोड़ा पहले PNF प्रमुख एलीन हॉलेट ने इस मामले को बंद कर दिया.
कई न्यायिक स्रोतों की मदद से मीडियापार्ट ने जाना कि हॉलेट ने किस तरह PNF के कर्मचारियों के सामने अपने फैसले को सही ठहराया. मीडियापार्ट ने पेरिस की सरकारी अभियोजन सेवाओं के दो मजिस्ट्रेटों म्युरिएल फुजिना और इव मिकोले से भी पूछताछ की, जो हॉलेट के जाने और उसके उत्तराधिकारी के आगमन के बीच के चार महीनों के दौरान पीएनएफ के अंतरिम प्रमुख के रूप में पद संभालने की तैयारी कर रहे थे.
अपने फैसले के बारे में बताते हुए हॉलेट ने PNF के अपने सहयोगियों से राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा की जरूरत के बारे में बात की (जैसा कि उन्होंने बाद में पेरिस मैच से “फ्रांस के हितों को संरक्षित करने के लिए” कहा). उन्होंने यह तर्क दिया कि दो सरकारों के बीच हुए अनुबंध की जांच का आदेश देने का कोई कारण नहीं बनता था. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि बिना किसी ठोस आधार के भ्रष्टाचार का संदेह खड़ा हुआ, तो इसे प्रेस में भारत के आगामी चुनावों के मद्देनजर बढ़ा-चढ़ा कर उछाला जायेगा.
फ्रांस्वा ओलांद की पार्टनर जूली गायट के सह-निर्माण में बननेवाली फिल्म को रिलायंस द्वारा फंडिंग करने के बारे में हॉलेट ने तर्क दिया कि इसमें संदेह करने का कोई कारण नहीं था. रिलायंस ने खुद ही फिल्म में निवेश करने की घोषणा की थी. इसलिए उसके पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं था.
लेकिन इस बात पर ध्यान नहीं दिया गया कि रिलायंस द्वारा जारी किये गये बयान को मीडिया ने बिना पर्याप्त छानबीन के काफी हद तक नजरअंदाज कर दिया और रिलायंस के बयान में फिल्म में निवेश की राशि, यानी 1.6 मिलियन यूरो का कोई ब्योरा नहीं दिया गया. (जारी)