दूसरे राज्यों से शव आने में लग जाता है हफ्ता भर, विदेश से लाने में लग जाते हैं 100 दिन
Satya Sharan Mishra
Ranchi: रोजी-रोटी की तलाश में परदेस गये प्रवासी झारखंडी मजदूरों की मौत का सिलसिला जारी है. हर रोज झारखंड के किसी न किसी इलाके से प्रवासी मजदूर की दूसरे राज्यों या विदेश में मौत की खबरें आ रही है. प्रवासी मजदूरों की सबसे ज्यादा तादाद गिरिडीह, हजारीबाग और बोकारो जिले से रोजी कमाने गये लोगों की है. अपना घर छोड़कर परदेस गये इन मजदूरों की जिंदगी तो कष्ट में बीतती ही है, मौत के बाद भी उनकी रूह को चैन नसीब नहीं होता है. किसी की लाश हफ्ते भर बाद आती है, तो किसी को 3 महीने भी लग जाते हैं.
प्रवासी मजदूरों के शवों को लाने के बारे में कोई स्पष्ट सरकारी गाइडलाइन नहीं होने से ऐसे प्रवासी मजदूरों की शवों की महीनों तक दुर्गति होती रहती है.एनजीओ और स्थानीय प्रशासन की मदद से शवों को लाने का काम होता है.राज्य सरकार ने 2015 में प्रवासी मजदूर सर्वेक्षण और पुनर्वास योजना बनायी है, लेकिन इसमें सिर्फ निबंधित और गैर निबंधित प्रवासी मजदूरों की मौत के बाद आश्रितों को मुआवजा दिये जाने का ही प्रावधान है.
100 दिन बाद लौटी थी मलेशिया से रामेश्वर की लाश
6 अप्रैल 2020 को गिरिडीह के धावाटांड गांव के रामेश्वर महतो की मौत मलेशिया में हो गयी. ट्रांसमिशन कंपनी में काम करनेवाले रामेश्वर के परिजनों ने हजारों बार सरकार,प्रशासन और नेताओं के आगे गुहार लगायी. तब जाकर 100 दिन बाद उसकी बॉडी घर लौटी. इन 100 दिनों में उसका परिवार रोज खून के आंसू रोता रहा. वहीं हजारीबाग के विष्णुगढ़ के महादेव सोरेन की मौत 27 मई 2020 को अफ्रीका के मरूतानियां में हो गयी थी. 52 दिन बाद उसका शव घर आया. तब तक उसकी पत्नी और परिवार फरियाद लगाता रहा.
बेरमो के नवाडीह निवासी लालचंद महतो की 24 दिसंबर 2020 को इराक में मौत हुई और शव आया 40 दिन बाद. ऐसे बदनसीब प्रवासी मजदूरों की लंबी लिस्ट है, जो रोजी-रोटी की तलाश में अपना घर-परिवार छोड़कर कमाने विदेश गये लेकिन जिंदा नहीं लौटे. कईयों की लाश को तो वतन की मिट्टी भी नसीब नहीं हुई.
3 जिलों के प्रवासी श्रमिकों की मौत सबसे ज्यादा
प्रवासी मजदूरों के लिए काम कर रहे कार्यकर्ता सिकंदर के मुताबिक गिरिडीह जिले के बगोदर, बेंगाबाद, गोरहर, सरिया, औरा, तिरला, डुमरी, मड़मो, चिचांकी और हजारीबाग जिले के विष्णुगढ़, गाल्होबार, गोविंदपुर, भेलवारा, गाल्होबार, बकसपुरा के अलावा बोकारो जिले के बेरमो, कसमार, नावाडीह, कोनार, नरकी आदि के कई प्रवासी मजदूरों की हाल के दिनों में मौत हुई है. सिर्फ गिरिडीह जिले में 2018 से अबतक 100 से ज्यादा प्रवासी मजदूरों की बाहर के देशों में मौत हो चुकी है.
आसानी से मुआवजा भी नहीं मिलता
प्रवासी मजदूरों की मौत के बाद काफी जद्दोजहद के बाद शव तो आ जाता है, लेकिन मुआवजे के लिए भी परिजनों को बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं. विदेश में हादसे में मारे गये प्रवासी श्रमिकों के परिजनों को 5 लाख रुपये देने का प्रावधान रखा गया है, लेकिन इसके लिए एफआईआऱ कॉपी, डेथ सर्टिफिकेट और मजदूर जिस कंपनी में कार्यरत था, उसके डाक्यूमेंट के अलावा कई कागजात जमा करने पड़ते हैं. अगर विदेशों से मजदूर के शव के साथ सारे कागजात आ गये, तो मुआवजा मिलने में आसानी होती है, लेकिन अगर कोई कागज छूटा, तो मुआवजा हाथ से गया. ग्रामीण इलाकों में रहने वाले कई मृत प्रवासी श्रमिकों के कम पढ़ेलिखे और गरीब परिजनों को यह तक नहीं पता होता कि आखिर मुआवजे के लिए क्लेम कहां और कैसे करें.
विधायक ने सरकारी कोशिशों को बताया नाकाफी
बगोदर के विधायक बिनोद सिंह ने english.lagatar.in को बताया कि प्रवासी श्रमिकों की मौत के बाद शवों की बहुत दुर्गति होती है. सरकारी अधिकारी इसमें पड़ने से कतराते हैं. वहीं मृत श्रमिकों को मुआवजा दिये जाने की प्रक्रिया भी काफी धीमी है. उन्होंने कहा कि करीब 25 प्रवासी मजदूरों के परिजनों को मुआवजा दिलाने की उन्होंने कोशिश की. इनमें से 12 का ही चयन हो पाया है. उन्हें भी कब मुआवजा मिलेगा, यह पता नहीं.
जोखिम वाले काम करने से होती है प्रवासियों की मौत
झारखंड से दूसरे राज्य और विदेश जाने वाले अधिकांश प्रवासी श्रमिकों की मौत जोखिम वाले काम करने से हुई है. कई कंपनियां बेरोजगार युवकों को ट्रांसमिशन लाइन में काम करने के लिए लेकर जाती हैं. कम प्रशिक्षित होने या तकनीकी गड़बड़ियों से हादसे होते हैं. श्रमिकों की जान चली जाती है. दूसरे राज्यों में हादसे में मारे गये अधिकांश श्रमिक ट्रांसमिशन लाइन से थे, जबकि कुछ ड्राइवर, मैकेनिक, राजमिस्त्री या इलेक्ट्रिक कंपनियों में काम कर रहे थे.
एनजीओ और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से मिल पाता है मुआवजा
मजदूरों की मौत के बाद कुछ सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ताओं की पहल से परिजनों को कंपनी की ओऱ से मुआवजा मिलता है. लेकिन अधिकांश कंपनियां मजदूरों के परिवार तक शवों को भेजकर अपना पल्ला झाड़ लेती हैं. मजदूर की मौत के बाद जब कंपनी के लोग शव को लेकर उनके घर पहुंचते हैं, तो परिजन बिना मुआवजा के शव लेने से इनकार कर देते हैं. कई सामाजिक कार्यकर्ताओं की पहल पर गिरिडीह के दर्जनों मृत मजदूरों के परिजनों को 5 लाख से 12 लाख रुपये तक का मुआवजा दिलवाया गया है. अगर सरकार कंपनियों के लिए यह नियम सख्ती से लागू करती कि श्रमिकों की मौत के बाद एक निश्चित रकम मुआवजा के रूप में कंपनियों को देना ही पड़ेगा, तो गरीब मजदूरों के परिवारों को कुछ राहत मिल सकती है.
कब किस मजदूर की कहां और कैसे हुई मौत
1 अप्रैल 2021- गिरिडीह के बेंगाबाद निवासी रंजीत राणा की दुर्गापुर में मौत हो गई. वह निजी कंपनी में काम करता था.
29 मार्च 2021- डुमरी के कोरंगा गांव के रहने वाले रुपलाल की मौत तमिलनाडु में हो गई. वह पोकलेन ऑपरेटर था.
20 मार्च 2020- सरिया के तिलाबानी गांव के राज मिस्त्री उमेश सिंह की मुंबई में मौत. काम के दौरान हादसा हुआ और जान चली गयी.
10 मार्च 2021- विष्णुगढ़ के भेलवारा गांव के 19 साल के युवक अजय कुमार की पुणे में मौत हो गई. वह पोकलेन ऑपरेटर था. काम के दौरान हादसे में जान चली गई.
8 जनवरी 2021- गिरिडीह के पोखरिया के रहने वाले श्रमिक सूरज प्रजापति की मुंबई में मौत, सूरज वहां वेल्डिंग का काम करता था.
30 दिसंबर 2020- बगोदर के तिरला के मजदूर जीवाधन महतो की मौत राउरकेला में हो गई.
14 सितंबर 2020- बगोदर के सुंदरूटांड निवासी नारायण महतो की जार्डन में मौत हो गई. वह KEC कंपनी में ट्रांसमिशन का काम कर रहा था.
11 नवंबर 2020- विष्णुगढ़ के गाल्होबार पंचायत के ताजमुल अंसारी की मौत पुणे में हो गयी. वह वहां राजमिस्त्री का काम करता था. काम के दौरान हादसा हुआ और जान चली गई.
6 दिसंबर 2020- आंध्रप्रदेश के विशाखापत्तनम में बगोदर के खीबो महतो, अडवारा के पवन विश्वकर्मा और डुमरी के कृष्णा टुडू की मौत हो गई. ये टावर पर चढ़कर काम कर रहे थे उसी दौरान हादासा हुआ.
18 जनवरी 2020- बगोदर के राजेश कुमार की इंदौर में मौत, प्राइवेट कंपनी में कर्मचारी था.
3 जुलाई 2020- गिरिडीह के चिचांकी के रहने वाले डेगलाल महतो की कश्मीर में करंट लगने से मौत. काम के दौरान 11 हजार वोल्ट के तार की चपेट में आ गया था.
23 जून 2020- डुमरी के कामेश्वर महतो की तमिलनाडु में मौत. पावरग्रिड में काम करने के दौरान करंट लगने से जान गई.
01 जनवरी 2019- बगोदर के तिरला निवासी समरूद्दीन का मुंबई के ओडला में मौत हो गई. यह प्राइवेट कंपनी में काम करता था.
2 अक्टूबर 2019- बगोदर के गम्हरियाटांड के तेजो महतो और हजारीबाग के भेलवारा के महेश विश्वकर्मा की नागपुर में मौत हो गई. दोनों BNC पावर ट्रांसमिशन प्रा. लि के कर्मचारी थे.
14 सितंबर 2020- सरिया के पुरनीडीह के महबूब अंसारी की मुंबई में मौत. महबूब वहां ऑटो चलाता था. एक्सीडेंट में मौत हो गई.
11 नवंबर 2018- बगोदर के भौरा निवासी लक्ष्मण महतो की राजस्थान में मौत. मजदूर टावर में चढ़कर काम कर रहा था इसी दौरान गिरने से जान चली गई.
25 फरवरी 2019- बगोदर के सुंदरुटांड के बासुदेव साव और राजू साव की राजस्थान में मौत. दोनों राजमिस्त्री का काम करते थे.
9 मार्च 2019- बगोदर के पोखरिया के रामलाल महतो की रेती जहाज में काम करने के दौरान महाराष्ट्र में मौत.