- 2016 में बोल कर गये थे विधायकों ने उन्हें जिताकर विकास को गले लगाया है.
- झारखंड के सैकड़ों मुद्दों पर रहे चुप, सिर्फ तबरेज मॉब लिंचिंग पर खोला मुंह.
Ranchi: 11 जून 2016 को केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा था कि राज्यसभा चुनाव में झारखंड की दोनों सीटें बीजेपी की झोली में डालकर यहां के विधायकों ने विकास को गले लगाया है. इसी दिन वो झारखंड की एक राज्यसभा सीट से चुनाव जीतकर सांसद बने थे. चुनाव जीतकर दिल्ली की फ्लाइट पकड़ी और चले गये. 4 साल पूरे हो गये, लेकिन झारखंड की धरती पर अबतक 4 बार भी उनके दर्शन नहीं हुए.
नकवी राज्यसभा में झारखंड का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन इमानदारी से झारखंड की जनता के लिए सदन में शायद ही एक भी सवाल उठाया होगा. चुनाव जीतकर जाने के बाद 12 अप्रैल 2018 को नकवी पहली बार झारखंड में दिखे. रांची के मोरहाबादी मैदान में आयोजित बीजेपी के एक धरना में वे शामिल हुए थे. संसद की कार्यवाही विपक्ष के कारण लगातार बाधित थी और इसी मुद्दे को लेकर बीजेपी धरना-प्रदर्शन कर रही थी.
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इसके बाद फिर 2 साल बाद 2 मार्च 2020 को झारखंड में दूसरी बार दिखे. यह जगह भी मोरहाबादी थी. यहां सांसद की हैसियत से नहीं बल्कि मंत्री की हैसियत से आये थे. हुनर हाट का शुभारंभ कर नकवी वापस चले गये. उसके बाद से अबतक तीसरी बार वो झारखंड में नहीं देखे गये. झारखंड में हजारों मुद्दे हैं उनपर भी सांसद महोदय ने कभी मुंह नहीं खोला.
नकवी का एक बार 25 जून 2019 को झारखंड के एक मुद्दे पर उनका बयान आया. यह मामला था तबरेज मॉब लिंचिंग का. नकवी ने कहा कि गला दबाकर नहीं गला लगाकर भी जय श्री राम बुलवाया जा सकता है.
विरोध हुआ तो बीजेपी ने खेल दिया था अल्पसंख्यक कार्ड
झारखंड में राज्यसभा का टिकट बाहरी लोगों को देने का चलन पुराना है. झारखंड में सैकड़ों नेता रहने के बाद भी बीजेपी ही नहीं दूसरी पार्टियां भी बाहरियों को राज्यसभा चुनाव में खड़ा करती है. एमजे अकबर के बाद प्रयागराज के रहने वाले मुख्तार अब्बास नकवी को राज्यसभा चुनाव लड़ने के वक्त बाहरी उम्मीदवार का मुद्दा उठा था, लेकिन बीजेपी ने बड़ी चालाकी से अल्पसंख्यक कार्ड खेलकर नकवी को राज्यसभा भेज दिया और फिर उनके लिए मोदी कैबिनेट का भी दरवाजा खुल गया.
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एक तो सांसद बनने के बाद वैसे ही नकवी झारखंड नहीं आ रहे थे. अब केंद्रीय मंत्री बनने के बाद उनकी जिम्मेदारियां बढ़ गई है. ऐसे में झारखंड झांकने की उन्हें फुरसत कहां मिलेगी.
नकवी हो गये गायब, लेकिन पोद्दार हैं सुपर एक्टिव
2016 के राज्यसभा चुनाव में बीजेपी ने मुख्तार अब्बास नकवी और महेश पोद्दार को खड़ा किया था. रघुवर की रणनीति ने दोनों नेताओं को राज्यसभा पहुंचा दिया. मुख्तार अब्बास नकवी तो जीतकर चले गये, लेकिन महेश पोद्दार ने अपनी जिम्मेदारियों का पूरी इमानदारी से निर्वहण किया. राज्यसभा में झारखंड से जुड़े कई सवाल उन्होंने उठाये. केंद्र और राज्य सरकार को कई मुद्दों पर अक्सर सलाह देते रहते हैं. झारखंड के दूसरे राज्यसभा सांसदों के मुकाबले महेश पोद्दार सबसे ज्यादा एक्टिव हैं.
झारखंड में सांसद का कोई दफ्तर, आवास नहीं
राज्यसभा सांसद मुख्तार अब्बास नकवी सांसद तो झारखंड से हैं, लेकिन यहां उनका कोई ठिकाना नहीं है. न आवास है न कोई दफ्तर. राजधानी तो छोड़िये सांसद बनने के बाद उन्होंने राज्य के किसी गांव का दौरा तक नहीं किया. पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी, अमित शाह, राजनाथ समेत दर्जनों नेता झारखंड में चुनाव प्रचार करके चले गये, लेकिन राज्यसभा में झारखंड का प्रतिनिधित्व करने वाले मुख्तार अब्बास नकवी किसी बीजेपी उम्मीदवार के पक्ष में चुनाव प्रचार करने नहीं आये.
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नकवी का राज्य के बीजेपी कार्यकर्ताओं का भी सीधा जुड़ाव उनसे नहीं है. बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष सोना खान, राज्य अल्पसंख्य आयोग के अध्यक्ष कमाल खान औऱ कुछ गिने चुने नेता ही उनके संपर्क में हैं.
बीजेपी से भेजा जाता है आमंत्रण, लेकिन आते नहीं
प्रदेश बीजेपी के हर बड़े कार्यक्रम में शामिल होने के लिए मुख्तार अब्बास नकवी को प्रदेश कार्यालय से पत्र भेजा जाता है. न किसी पत्र का जवाब आता है न खुद नकवी ही किसी बैठक या कार्यक्रम में शामिल होने आते हैं. कमाल खान को याद नहीं कि अबतक नकवी सांसद बनने के बाद कितनी बार झारखंड आये हैं, लेकिन वे ये जरूर कहते हैं कि नकवी जी आते-जाते तो रहते हैं. अभी कोविड और लॉकडाउन की वजह से एक साल से नहीं आये हैं, लेकिन पहले आते थे.
नकवी केंद्र में मंत्री भी हैं इसलिए उनकी जिम्मेवारी बहुत ज्यादा बढ़ गई है. ऐसे में उनका ज्यादा झारखंड आना नहीं हो पाता है. अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष सोना खान को भी यह याद नहीं कि पिछले 4 साल में कितनी बार नकवी झारखंड आये हैं. सिर्फ मोरहाबादी मैदान में हुए धरना और हुनर हाट के शुभारंभ में उनके आने की याद उन्हें है.
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