Ranchi: विभिन्न आदिवासी संगठनों के साझा मंच आदिवासी समन्वय समिति ने कहा कि 16 फरवरी को आयोजित आदिवासी अधिकार महारैली आदिवासी समाज को ठगने और गुमराह करने के लिए किया गया है. इसका आदिवासी एजेंडे से कोई मतलब नहीं है. यह रैली निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए किया गया है. असली आदिवासी बचाओ महारैली 5 मार्च को होगी. यह बातें समिति के पूर्व मंत्री देवकुमार धान, गीताश्री उरांव, लक्ष्मीनारायण मुंडा, प्रेमशाही मुंडा, अजय तिर्की, अभय भुटकुंवर आदि ने मंगलवार को आयोजित एक प्रेस वार्ता के दौरान कही. उन्होंने कहा कि 5 मार्च को आदिवासी बचाओ महारैली आदिवासी समाज को बचाने के लिए आयोजित है. यह महारैली किसी नेताओं/ संगठनों की निजी स्वार्थ, महत्वाकांक्षा और उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नहीं बल्कि आदिवासी समाज के उपर जो चौतरफा हमला जारी है, उससे बचने के लिए गांव-गांव तक के आदिवासियों को जगाने के लिए है.
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कुड़मी समुदाय के संपन्न वर्ग के लोग एसटी सूची में शामिल होने की मांग कर रहे
समिति की ओर से कहा गया कि आज कुड़मी/कुरमी/महतो समुदाय के संपन्न वर्ग के राजनीतिक लोगों द्वारा अपनी जाति के लोगों को भ्रमित करके जातीय गोलबंदी करके आदिवासी बनने की लड़ाई लड़ी जा रही है. जो आदिवासियों के उपर हमला है. इस समुदाय के लोगों को यदि आदिवासी (शिडयूल ट्राइब) में शामिल किया जाता है तो मूल आदिवासी समुदाय की नौकरी, जमीन,राजनीतिक हिस्सेदारी/ प्रतिनिधित्व, पहचान, इतिहास खतरे में आ जाएगी. इन्हीं प्रमुख मांगों को लेकर आदिवासी समन्वय समिति द्वारा आयोजित आदिवासी बचाओ महारैली की तैयारी के लिए बैठक, जनसंपर्क, सभा, प्रचार-प्रसार सभी जिलों में किया जा रहा है.
अपने कार्यकाल में आदिवासी के लिए क्या किया चमरा लिंडा बताएं
समिति ने कहा कि विधायक चमरा लिंडा द्वारा आयोजित 16 फरवरी की आदिवासी अधिकार महारैली आदिवासी समाज को ठगने और गुमराह करके अपने निजी स्वार्थ,महत्वाकांक्षा और राजनीतिक उद्देश्य को साधने के लिए आयोजित है. वहीं धन- बल और संसाधनों के जोर से आदिवासी लोगों को रुपये-पैसे खर्च कर,खिला- पिलाकर गाड़ी-वाहन भेजकर ढोकर लाने की रैली है. विधायक चमरा लिंडा को बताना चाहिए कि आखिर ये लाखों-लाख रुपये आ कहां से आ रहे हैं. उनको यह भी बताना चाहिए कि13 साल की विधायकी में आपने आदिवासी मुद्दों पर क्या- क्या किया है. आदिवासियों के कई आंदोलन हुए इसमें आप कहां थे. आदिवासी समाज के लोग जानना चाहते हैं. आदिवासियों के सवालों पर भाजपा, झामुमो, कांग्रेस सभी राजनीतिक दलों की भूमिका आदिवासी समुदाय को छलने की ही रही है.