Ranchi : राजधानी रांची में गाड़ियों में आग लगने की घटनाएं बढ़ गई हैं. चाहे टू व्हीलर हो या फोर व्हीलर या बड़ी बस, आये दिन आग लगने की घटना देखने को मिल दिख रही है. जानकारी के मुताबिक, पिछले 2 साल में लगभग 127 गाड़ियों में आग लगने की घटनाएं सामने आयी हैं. विभागों द्वारा इसके कई कारण बताये जा रहे हैं. कुछ का कहना है कि गर्मी अधिक होने व गाड़ी का मेंटेनेंस नहीं होने के कारण शार्ट सर्किट से आग लगती है. लेकिन हम आज आपको बताते हैं कि गाड़ियों में आग लगने की असली वजह क्या होती है.
लीकेज की समस्या को ना करें नजरअंदाज, हो सकती है दुर्घटना
ऑटोमोबाइल वर्कशॉप के ऑनर राजेश कुमार बताते हैं कि आग लगने की वजह इलेक्ट्रिकल फॉल्ट होती है. गाड़ी की सर्विसिंग अप टू डेट होनी चाहिए. अगर आप गाड़ी का चेकअप गर्मी को देखते हुए करवाते हैं, तो सही रहता है. क्योंकि पेट्रोल और डीजल की गाड़ियों में कहीं पर भी लीकेज की समस्या हो सकती है.
स्मेल आने पर गाड़ी रुकवा कर तुरंत करवाएं चेक
गाड़ी मालिक को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि अगर चलती गाड़ी में किसी भी प्रकार का गंध आता है या तेल या डीजल का सीपेज होता है तो तुरंत उसका चेकअप करना चाहिए. गर्मी के दिनों में गाड़ी मालिक एसी का ज्यादा यूज करते हैं. एसी गाड़ी के अंदर तो ठंडक रखती है, लेकिन बाहर की ओर वह ज्यादा गर्म हवा फेंकती है, जिसके कारण भी घटना होने की आशंका बढ़ जाती है. बताया कि लगभग 2 सालों से कोरोना काल में गाड़ी के नहीं चलने से भी मेंटेनेंस नहीं हो पाया. इस वजह से भी आग लगने का खतरा बढ़ जाता है.
सुप्रीम कोर्ट के तय मानकों का पालन करवा रहे हैं जिला परिवहन पदाधिकारी
वहीं इस मामले में जिला परिवहन पदाधिकारी प्रवीण प्रकाश ने बताया कि कोविड काल में सभी प्रकार के परिचालन बंद थे. इसके चलते ऐसी घटना होने की संभावना थी. ऐसी घटना की पुनरावृत्ति ना हो, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन कराने के लिए समय-समय पर सेफ्टी ड्राइव चलाया जा रहा है. सभी बस संचालकों को समय-समय पर चेकिंग अभियान के माध्यम से हमने सुरक्षा मानक का पालन करने का निर्देश दिया है.
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मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट होने की वजह से घटती है दुर्घटना
उन्होंने बस मालिकों से मानकों और गाइडलाइन का पालन करने की अपील की है. मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट और समय-समय पर सर्विस रिकॉल ना रखने से भी ऐसी घटना हो सकती है.
इलेक्ट्रॉनिक आइटम के ज्यादा उपयोग से घट रही है घटना
वहीं गाड़ियों में आग लगने के मामले को लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता सीएमके त्रिपाठी ने बताया है कि गाड़ियों में मैन्यूफैक्चरर द्वारा इलेक्ट्रॉनिक आइटम का ज्यादा उपयोग किया जा रहा है. इस पर न सरकार का नियंत्रण है और ना ही कंपनी का. गाड़ियों को जांच के लिए पुणे भेजा जाता है, जहां सभी पार्ट्स गाड़ियों में लगा कर चेक किया जाता है.
इनफोर्समेंट पदाधिकारी का पद खत्म, जांच नहीं हो पाती
बताया गया कि पहले परिवहन विभाग में प्रवर्तन पदाधिकारी हुआ करते थे, जिनका काम इन सभी चीजों पर नियंत्रण रखने का रहता था. इनफोर्समेंट पदाधिकारी का पद खत्म कर दिया गया है, जिस कारण इन सभी चीजों का समय पर जांच नहीं हो पाती है और घटना हो जाती है.
स्टेट ट्रांसपोर्ट ने 12 साल तय किया है, लेकिन आरटीए ने कर दिया है 15 साल
स्टेट ट्रांसपोर्ट द्वारा निर्धारित किया गया है कि 12 साल बाद पुरानी गाड़ी को सड़कों पर नहीं चलने दिया जाना चाहिए. लेकिन रीजनल ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी द्वारा इसे बढ़ाकर 15 साल कर दिया गया है. 15 साल बाद सभी गाड़ियों को स्क्रेप करने के लिए भेज दिया जाना चाहिए.
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