Ranchi: भागदौड़ और अधिक पाने की चाहत में कई लोग पीछे छूट जाते है,और खुद को संभाल नहीं पाते. कई लोग अवसाद के शिकार हो जाते हैं, तो वहीं कई लोग जिंदगी से हार मानकर आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं. समाज में आए दिन आत्महत्या जैसी घटनाएं देखने और सुनने को मिलती हैं. आत्महत्या को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि जागरुकता से आत्महत्या से होने वाली मौत को रोका जा सकता है. इसके लिए कांके स्थित केंद्रीय मनश्विकित्सा संस्थान (सीआइपी) ने पहल की है. लोगो में जागरूकता लाने के लिए क्षेत्रीय भाषाओं को माध्यम बनाया जायेगा. इसी के तहत सीआईपी में 12 सितंबर को ‘आत्महत्या रोकथाम को लेकर जागरुकता’ से संबंधित पोस्टरों का विमोचन किया जाएगा. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ सत्य नारायण मुंडा और सामजिक कार्यकर्ता दयामणि बारला होंगे.
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झारखंड के चार क्षेत्रीय भाषाओं में जागरुकता सामग्री जारी
सीआईपी के निदेशक प्रो. डॉ. बासुदेव दास ने बताया कि झारखंड के चार क्षेत्रीय भाषाओं में जागरुकता सामग्री जारी की जाएगी. इसमें हो, संथाली, कुड़ुख और नागपुरी भाषा शामिल हैं. इन भाषाओं को बोलने वालों की झारखंड में बड़ी संख्या है. क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से लोगों तक अपनी बात पहुंचाने में आसानी होती है. जागरुकता सामग्री अंतरराष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम संगठन (IASP) द्वारा विकसित की गई है. उनकी सामग्री को क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने की अनुमति भी ली गई है.
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हर दिन औसतन सात लोग दे रहे जान
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरों की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में 2019 में 1,646 लोगों ने आत्महत्या की. वर्ष, 2018 में 1317 लोगों ने, 2019 में एक माह में 137 लोगों ने आत्महत्या की, वहीं कोरोना के दौरान 4 माह में हर महीने 197 लोगों ने जान दे दी. साल 2019 के रिकॉर्ड के अनुसार झारखंड में औसत आत्महत्या 4.4 है, वहीं इन चार माह में हर दिन औसतन सात लोग जान दे रहे हैं. आत्महत्या का राष्ट्रीय औसत एक लाख आबादी पर 10.4 है. 2019 में झारखंड में 1646 लोगों ने आत्महत्या की. यह 2018 के मुकाबले 20 फीसदी ज्यादा है.