Ranchi: भाषा और साहित्य समाज की पहचान होती है. इससे समाज की संस्कृति का पता चलता है. इसके बिना सभ्य और विकसित समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है. कई राज्यों में भाषा और साहित्य को लेकर साहित्य अकादमी का गठन किया गया है. झारखंड गठन के बाद यहां के साहित्यकार काफी उत्साहित थे. उम्मीद थी कि जल्द ही यहां भी साहित्य अकादमी का गठन होगा. दो दशक बीत जाने के बाद भी कुछ नहीं हुआ.
साहित्यकारों में निराशा
अकादमी होती तो भाषा एवं साहित्य का संवर्धन और संरक्षण होता. नये साहित्यकार आते. नयी कृति का सृजन होता. इससे युवाओं में साहित्य का रूझान बढ़ता. ऐसा नहीं हुआ. अकादमी के गठन नहीं होने से यहां के साहित्यकारों में काफी निराशा है. इसे लेकर अब नीरज नीर और शिरोमणि महतो जैसे तमाम उच्चकोटि के साहित्यकार एकजुट होकर साहित्य अकादमी के गठन की मांग करने लगे हैं.
नावाडीह में संघर्ष समिति का गठन
बता दें कि इसी के मद्देनजर बोकारो जिले के नावाडीह में झारखंड साहित्य अकादमी स्थापना संघर्ष समिति का गठन किया गया है. इसके कार्यकारी अध्यक्ष शिरोमणि महतो हैं. समिति के बैनर तले पूरे राज्य में साहित्य अकादमी के गठन की मांग जोर पकड़ रही है.
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गठन के लिए मुख्यमंत्री को भेजे पत्र
इस मामले को लेकर समिति द्वारा पिछले एक साल से मुख्यमंत्री, मंत्री एवं विधायकों को दर्जनों ज्ञापन, पत्र एवं ईमेल भेजा जा चुका है. पत्र के माध्यम से साहित्य गठन का उद्देश्य और महत्ता बताया गया. इसके बाद भी इस पर ध्यान नहीं दिया गया.
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सरकार तक इन बातों को पहुंचाने वालों में शिरोमणि महतो और नीरज नीर जैसे प्रबुद्ध साहित्यकारों के अलावा नीलोत्पल रमेश, प्रह्लाद चंद्र दास, अनिता रश्मि, आलोका कुजुर, अनिल किशोर सहाय, उमर चंद जायसवाल और राजेश पाठक जैसे साहित्यकार हैं.
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साथ ही बासु बिहारी, महेश केसरी, पंकज शाह, सत्या शर्मा ‘कीर्ति’, सुभाष सिंह, संतोष पाल, सुजाता कुमारी, तारकेश्वर महतो गरीब, मणि मोहन महतो, प्रेमचंद ठाकुर, अजय यतीश, प्रभु दयाल बंजारे, राजेश दुबे, हरेंद्र कुमार, राजकुमार गीत और विनय कुमार शर्मा जैसे साहित्यकार हैं.
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