Sonia Jasmin
Ranchi: झारखंड ट्राइबल सब प्लान के तहत 14 जिलों में जनजातीय परिवारों को आत्मनिर्भर बनाया जाना है. इसमें रांची, खूंटी, दुमका, साहेबगंज, गोड्डा, जामताड़ा, पाकुड़, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला, सिमडेगा, लातेहार और गुमला जिला शामिल है. सालभर पहले जेटीडीएस यानी झारखंड ट्राइबल डेवलमेंट सोसाइटी द्वारा पशुधन संघनी कार्यक्रम चलाया गया था.
इस कार्यक्रम का उद्देश्य आदिवासी परिवारों को पशुपालन के व्यवसाय में आत्मनिर्भर बनाना है. उन्हें आर्थिक रूप मे सशक्त बनाना है. इसमें 1090 परिवार शामिल किये गये थे. 700 परिवारों ने एक साथ पशुपालन के माध्यम से 86 लाख 34 हजार 965 लाख रूपये की आमदनी की.
जेटीडीएस ने टीएनडी सुकरपालन से 1700 परिवारों को जोड़ा. सबसे ज्यादा मुनाफा सुकरपालन में हुआ. ब्लैक बंगाल ब्रिड की बकरी और असील मुर्गी पालने के लिए दी गई थी. एक परिवार मे 100 परिवार होते हैं. उन्हें सुकरपालन के लिए 5 सुकर दिए गए थे. बकरीपालन के लिए एक परिवार को एक बकरी दिया गया था. इसके अलावा 20 मुर्गी पालने के लिए चूजे भी दिए गए थे.
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महिलाओं की प्रमुख भूमिका
जेटीडीएस के प्रोजेक्ट डाइरेक्टर ने कहा कि मणिका प्रखंड की इंद्रो देवी और ललिता देवी और डुमरिया की ढुल्ली मार्डी ने एक साल पहले प्रशिक्षण लिया था. इसके बाद उन्हें पशुपालन से जुड़ी एक यूनिट के हिसाब से 5 सुकर दिए गए. एक यूनिट में दो से ढाई लाख रूपये की आमदनी हुई.
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महिलाओं का कहना हैं कि पहले हमे कृषि पर ही निर्भर रहना पड़ता था. लेकिन इस प्लान से अब पशुपालन से आय हो रहा है. केंद्र में प्रशिक्षण लेने के साथ ही हमें आर्थिक सहायता मिली है. इससे हमें मुनाफा हुआ हैं.
झारखंड टीएस के पूर्व सदस्य ने कहा कि टीएसपी के तहत ग्रामीण इलाकों के आदिवासियों को पशुपालन और कृषि से जोड़कर उनका जीवनस्तर सुधारने का प्रयास किया गया है. काफी हद तक इसमें सफलता भी मिली है. आदिवासी महिलाओं को जीवन स्तर सुधार के लिए उन्हें खेती से लेकर पशुपालन तक का तकनीकी प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इस योजना से कई आदिवासी परिवार लाभान्वित हुए हैं. कई आदिवासी परिवार शराब का कारोबार छोड़कर स्वरोजगार कर रहे हैं.
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