Kharsawan : खरसावां व हरिभंजा के जगन्नाथ मंदिरों में हेरा पंचमी की रात रथ भंगिनी की परंपरा निभायी गयी. भाई-बहन के साथ मौसी घर गुंडिचा मंदिर गये प्रभु जगन्नाथ के पांच दिन बाद भी श्रीमंदिर वापस नहीं लौटने पर मां लक्ष्मी नाराज हो कर स्वंय गुंडिचा मंदिर पहुंचती हैं तथा प्रभु जगन्नाथ के रथ नंदिघोष को तोड़ देती हैं। इस परंपरा को निभाया गया.
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कोविड-19 को लेकर भले ही इस बार खरसावां में प्रभु जगन्नाथ का रथ नहीं चला हो, परंतु रथ भंगनी की परंपरा को पूरे रश्म-रिवाज के साथ निभाया गया। कोविड-19 को लेकर इस वर्ष हेरा पंचमी के रंथ भंगिनी कार्यक्रम में श्रद्धालुओं की भीड़ कम रही. मंदिर के चंद सेवायतों ने सोशल डिस्टेंश का अनुपालन करते हुए सभी रस्मों को निभाया.
सबसे पहले लक्ष्मी मंदिर से मां लक्ष्मी की प्रतिमा को पालकी में लेकर प्रभु जगन्नाथ के मौसीबाड़ी गुंडिचा मंदिर तक पहुंचाया गुंडिचा मंदिर के बाहर खड़े प्रभु जगन्नाथ के रथ नंदीघोष पर मां लक्ष्मी की प्रतिमा को रख कर रथ का एक हिस्सा तोड़ा गया. इस धार्मिक अनुष्ठान में भक्तों का समागम देखा गया. बड़ी संख्या में भक्त भजन कीर्तन करने के साथ-साथ जयघोष लगाते रहे. इस अनुष्ठान को भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. हरिभंजा में आयोजित रथ यात्रा में जमीनदार विद्या विनोद सिंहदेव, पूजारी पं प्रदीप दाश, भरत त्रिपाठी आजि मौजूद थे. इसी तरह खरसावां में रथ भंगिनी की इस परंपरा में मुख्य रुप से राजा गोपाल नारायण सिंहदेव, अंबुजाख्यो आचार्य, विमला षाडंगी, पुजारी राजाराम सतपथी आदि मौजूद रहे.