Bokaro : विकास की बात करने वाली सरकारों को कस्बाई इलाकों में झांकने की जरुरत है. जहां की हकीकत कुछ और ही है. बोकारो जिले के चंदनकियारी प्रखंड के लाघला पंचायत का आदिवासी बहुल बांधघुटु गांव सरकार को आईना दिखाने के लिये काफी है, जहां दशकों बाद भी इस गांव को सड़क तक नसीब नहीं हो पायी है. गांव की आबादी करीब पांच सौ और मतदाता ढाई सौ से ज्यादा हैं. अगर कहा जाए कि गांव का रास्ता सरकारी नक्शे में नहीं है तो गलत नहीं होगा. गांव की कई पीढ़ियां विकास की राह देखते गुजर गयी. लेकिन आज तक न तो किसी जनप्रतिनिधि ने संजीदगी दिखाई और न ही प्रसाशनिक अधिकारियों ने इसके लिए पहल की. वे चुनाव के दौरान गांव की तस्वीर बदलने का दावा और वादा कर चले जाते हैं, पर दोबारा यहां नहीं आते.
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ग्रामीणों ने लगायी गुहार
लगातार की टीम जब बांधघुटु गांव पहुंची तो ग्रामीणों ने अपनी गुहार हमारे माध्यम से शासन-प्रशासन तक पहुंचाने की कोशिश की. उन्होंने बताया कि सभी सरकारें आदिवासियों की हितों की बात करती हैं. लेकिन इस आदिवासी बहुल गांव के कल्याण के लिए किसी ने नहीं सोची. मुख्यमंत्रियों को भी पत्र लिखे गये. वहीं प्रखंड एवं अंचल कार्यालय को कई सालों से संज्ञान में दिया जा रहा है, पर आजतक इस दिशा में कार्रवाई नहीं हुई. सड़क न होने की टीस हर किसी को है. इसे लेकर ग्रामीणों ने बताया कि जब किसी मरीज की तबीयत खराब होती है तो गांव से मुख्य सड़क तक उसे खटिया पर सुलाकर ले जाना पड़ता है. एंबुलेंस वाले इस गांव का नाम सुनते ही कतराते हैं और आना नहीं चाहते. गांव से लगभग दो किलोमीटर दूर मुख्य सड़क है, यही दो किलोमीटर ग्रामीणों के लिए 200 साल का अभिशाप जैसा लगता है.
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कच्चा रास्ता भी हो चुका है बंद
गांव से बाहर निकलने का कोई सरकारी रास्ता नहीं है, मुख्य सड़क के किनारे धीरे-धीरे काफी मकान बन जाने के कारण कच्चा रास्ता भी बंद हो चुका है. गांव में अगर कोई मोटरसाइकिल से आ गया तो उसको निकालने के लिए कई लोगों की जरूरत पड़ती है. गांव के विद्यालय में बाहर से आने वाले शिक्षकों को खेतों एवं तालाब किनारे से होकर आना पड़ता है. वही बारिश के मौसम में स्थिति इतनी खराब होती है कि तीन महीने तो शिक्षक भी नहीं आते. इस गांव के लोग ज्यादातर कच्चे मकानों में रहते हैं, गांव का विकास नहीं के बराबर हुआ है. इसलिये ग्रामीणों का सरकार एवं अधिकारियों के प्रति रोष है. कई बार गांव के लोगों ने अपनी मांगों को लेकर आंदोलन किया, विरोध जताया, नारेबाजी भी की. लेकिन इनकी आवाज अब तक नहीं सुनी गयी . सड़क न होने को लेकर ग्रामीणों का कहना है कि इस कारण गांव के लड़के-लड़कियों की शादियां नहीं हो रही है. कई की शादियां टल चुकी है.
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