New Delhi : देश के लाखों मरीजों के लिए खुशखबरी है. देश के सभी एम्स सेंटरों में 300 रुपये तक की सभी जांच नि:शुल्क कर दी गई है. एम्स ने गुरुवार को आदेश जारी कर इसे तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया है. इसका फायदा यह होगा कि कई तरह की ब्लड जांच, एक्सरे, अल्ट्रासाउंड इत्यादि जांच अब नि:शुल्क हो गई है. सूत्रों के मुताबिक एम्स में हर रोज 50 से 80 हजार टेस्ट 300 रुपये तक वाले किये जाते हैं. लेकिन अब इस फीस को फ्री करने के बाद मरीजों को बड़ी राहत मिल सकेगी. वहीं मरीजों को यह टेस्ट रिपोर्ट उसी दिन उनको ऑनलाइन मुहैया करा दी जाएगी.
चार साल पुरानी सिफारिशों पर यह फैसला
स्वास्थ्य मंत्रालय ने चार साल पुरानी सिफारिशों पर यह फैसला लिया है. नवंबर 2017 में एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने यह सिफारिश करते हुए बताया था कि एम्स आने जाने वाले मरीजों पर काफी खर्चा आता है. ऐसे में इन रोगियों को राहत देने के लिए 300 रुपये तक की जांच को निशुल्क किया जा सकता है.
प्राइवेट वार्ड का शुल्क बढ़ाने की सलाह
डॉ. गुलेरिया का यह प्रस्ताव लंबे समय तक लटका रहा लेकिन हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने जब एम्स का दौरा किया तो उस दौरान भी इसे लेकर चर्चा हुई. इसके बाद स्वास्थ्य मंत्री ने एम्स की व्यवस्थाओं में सुधार के लिए एक समिति के जरिए जांच करने के निर्देश दिए थे. एम्स के ही वरिष्ठ डॉ. शिव चौधरी की अध्यक्षता में गठित समिति ने भी 300 रुपये तक की जांच निशुल्क करने की सिफारिश की थी, जिसके बाद यह फैसला लिया गया है. सूत्रों का कहना है कि जांच निशुल्क करने के साथ ही प्राइवेट वार्ड का शुल्क बढ़ाने की सलाह पर भी मंजूरी मिल सकती है.
एम्स आने-जाने पर आता है खर्च
साल 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, अगर दिल्ली-एनसीआर से कोई मरीज एम्स इलाज के लिए आता है, तो उसे आने-जाने में करीब 1,900 रुपये और बाहरी राज्यों से आने वाले मरीज पर करीब 4,800 रुपये का खर्चा आता है. एम्स की ओपीडी आने वाले करीब 425 मरीजों पर हुए इस अध्ययन के बाद ही गरीब मरीजों की सहायता के लिए एम्स में 300 रुपये तक की जांचें निशुल्क करने की चर्चाओं ने जोर पकड़ा. दिल्ली के 222 और बाहरी राज्यों से एम्स आए 234 मरीजों से बातचीत के आधार पर यह जानकारी निकल कर आई कि अगर प्राइवेट वार्ड का शुल्क बढ़ा दिया जाए तो उससे होने वाले वार्षिक आय से गरीबों को निशुल्क उपचार मुहैया करवाया जा सकता है. अध्ययन के दौरान यह भी देखा गया कि इलाज के खर्च के कारण मरीजों के परिवार को खानपान, बच्चों की पढ़ाई व स्वास्थ्य के खर्च में कटौती कर अपनी जरूरतों से समझौता करना पड़ता है.
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