NewDelhi : हम राजनीतिक दलों को वादे करने से रोक नहीं सकते. सवाल यह है कि कौन से वादे सही हैं. क्या हम मुफ्त शिक्षा के वादे को भी फ्रीबीज मान सकते हैं? क्या पीने का पानी और कुछ यूनिट बिजली मुफ्त देने को भी फ्रीबीज माना जा सकता है? या फिर उपभोग की वस्तुओं और इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम्स दिये जाने को वेलफेयर स्कीम में शामिल किया जा सकता है.
SC adjourns hearing on freebies promise by political parties during polls for Monday
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— ANI Digital (@ani_digital) August 17, 2022
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क्या इस मसले पर कोई फैसला देने का अधिकार अदालत के पास है?
राजनीतिक दलों की ओर से मुफ्त सुविधाएं(रेवड़ी कल्चर) और चीजें देने की स्कीमों की घोषणाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही. चीफ जस्टिस एनवी रमना की अगुवाई वाली बेंच ने आज बुधवार को कहा कि अदालत राजनीतिक दलों को मुफ्त में चीजें देने की स्कीमों का ऐलान करने से नहीं रोक सकती. कहा कि यह सरकार का काम है कि वह लोगों के लिए वेलफेयर के लिए काम करे. अदालत ने कहा, चिंता की बात यह है कि कैसे जनता के पैसे को खर्च किया जाये.
SC के अनुसार यह मामला काफी जटिल है. कहा कि यह सवाल भी उठता है कि क्या इस मसले पर कोई फैसला देने का अधिकार अदालत के पास है? चीफ जस्टिस ने कहा कि किन स्कीमों को मुफ्तखोरी की घोषणाओं में शामिल किया जा सकता है और किन्हें नहीं, यह बहुत ही जटिल मसला है.
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जनता के पैसे को खर्च करने का सही तरीका क्या हो सकता है.
अदालत ने कहा कि चिंता की बात यह है कि जनता के पैसे को खर्च करने का सही तरीका क्या हो सकता है. कुछ लोगों का कहना होता है कि पैसे की बर्बादी हो रही है. इसके अलावा कुछ लोगों की राय होती है कि यह वेलफेयर है. यह मामला जटिल होता जा रहा है. आप अपनी राय दे सकते हैं. बहस और चर्चा के बाद हम इस पर फैसला ले सकते हैं. कोर्ट ने यह भी इंगित किया कि अकेले वादों के आधार पर ही राजनीतिक दलों को जीत नहीं मिलती.
चीफ जस्टिस ने मनरेगा का उदाहरण देते हुए कहा कि कई बार राजनीतिक दल वादे भी करते हैं, लेकिन उसके बाद भी जीत कर नहीं आ पाते. खबर है कि SC ने इस मामले में सभी पक्षों से शनिवार तक सुझाव मांगे हैं. अब इस मामले की सुनवाई अगले सप्ताह सोमवार को होगी.