Ranchi : झारखंड की स्थापना के 21 वर्ष बीत जाने के बाद भी जनजातीय एवं क्षेत्रीय विभाग में पठन-पाठन की व्यवस्था उदासीन है. इस विभाग की स्थापना डॉ रामदयाल मुंडा के द्वारा किया गया था. इसका उद्देश्य जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं से विद्यार्थियों को अवगत कराना है. रांची विश्वविद्यालय के अंतर्गत कई विभाग चल रहे हैं, जिसमें विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा दी जा रही है. जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में भी बच्चे शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य विभाग में अपना नामांकन कराते हैं, लेकिन विभाग में शिक्षकों की कमी के कारण विद्यार्थियों को कई विषयो से वंचित होना पड़ रहा है.
जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा के विकास की ओर रांची विश्वविद्यालय का ध्यान नहीं
रांची विश्वविद्यालय के अंतर्गत 28 वोकेशनल कोर्स पढ़ाए जाते हैं, जबकि कई मेन कोर्स और भाषाएं विषय पढ़ायी जाती हैं. लेकिन जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा का झारखंड में एक अलग ही महत्व है. इसके बावजूद जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा के विकास की ओर रांची विश्वविद्यालय का ध्यान नहीं है. जिसके कारण लगातार भाषा के ज्ञान से विद्यार्थी दूर होते जा रहे हैं. शिक्षकों की कमी के साथ-साथ विद्यार्थियों की भी कमी प्रत्येक साल देखने को मिल रही है. शिक्षकों की कमी के कारण कई क्लास बाधित हो रहे हैं. राज्य में जहां विभिन्न विषयों में पढ़ने वाले विद्यार्थी नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं, वहीं जनजातीय एवं क्षेत्रीय विभाग में पढ़ने वाले बच्चों का मनोबल शिक्षकों की कमी के कारण लगातार गिर रहा है. जनजातीय एवं क्षेत्रीय विभाग में ना तो शिक्षकों की संपूर्ण व्यवस्था है और ना ही तकनीकी ज्ञान बच्चों को मिल रहा है.
1980 में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग की स्थापना की गई थी
रांची विश्वविद्यालय की जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा के कोऑर्डिनेटर हरि उरांव ने बताया कि रांची विश्वविद्यालय का सबसे पुराना विभागों में से एक विभाग जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा विभाग भी है. इस विभाग की स्थापना 1980 में स्व रामदयाल मुंडा की अगुवाई में हुई थी. इसका मुख्य उद्देश्य झारखंड में जनजाति एवं क्षेत्रीय भाषा का प्रचार प्रसार और झारखंड की संस्कृति को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाना था. कोऑर्डिनेटर हरि उरांव ने बताया कि कई बार जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा में शिक्षकों की बहाली की मांग उठाई गई है. और विश्वविद्यालय द्वारा भी शिक्षकों की बहाली को लेकर आश्वासन दिया गया है. लेकिन फिलहाल राज्य अलग बने 21 वर्ष हो चुके हैं और अब तक जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा में शिक्षकों की नियुक्ति समुचित ढंग से नहीं हो पाई है.
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विभाग में शिक्षकों की लगातार कटौती
वहीं विभाग में शिक्षकों की लगातार कटौती भी की गई है. विभाग कोऑर्डिनेटर हरि उरांव ने बताया कि प्रत्येक जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में 5 शिक्षक होना अनिवार्य है लेकिन अधिकांश विभागों में 5 शिक्षक नहीं है. क्षेत्रीय भाषा पंचपरगनिया में कोई भी अस्थाई शिक्षक नहीं है, जबकि तीन अनुबंध शिक्षक के भरोसे विभाग चल रहा है. सबसे बुरा हाल की जनजातीय भाषा के संथाली भाषा विभाग की है, जहां 5 शिक्षकों की जरूरत है, पर मात्र एक अनुबंध शिक्षक ही विभाग चला रहे हैं.
जानिए जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग की हालिया स्थिति
- जनजाति एवं क्षेत्रीय विभाग अंतर्गत 5 जनजातीय और 4 क्षेत्रीय भाषा शामिल है. जिसमें पांच जनजातीय भाषा में हो, संथाली, मुंडारी, कुरुख और खड़िया शामिल हैं. वहीं क्षेत्रीय भाषाओं में नागपुरी, कुरमाली, खोरठा और पंचपरगनिया शामिल हैं.
- हो भाषा में 5 शिक्षकों की आवश्यकता है पर एक स्थायी और चार शिक्षक अनुबंध पर हैं.
- संथाली भाषा में 5 शिक्षकों की आवश्यकता है. पर मात्र एक अनुबंध शिक्षक के भरोसे विभाग चल रहा है.
- मुंडारी भाषा में 5 शिक्षकों की आवश्यकता है. जबकि एक स्थायी शिक्षक और दो अनुबंध शिक्षक के भरोसे विभाग चल रहा है.
- कुरुख भाषा विभाग में 5 शिक्षकों की आवश्यकता है. जिसमें एक स्थायी शिक्षक और दो अनुबंध शिक्षक के भरोसे विभाग चल रहा है.
- खड़िया भाषा विभाग में 5 शिक्षकों की आवश्यकता है, पर एक स्थायी शिक्षक और दो अनुबंध शिक्षकों के भरोसे विभाग चल रहा है.
- नागपुरी भाषा विभाग में 5 शिक्षकों की आवश्यकता है. पर एक स्थायी शिक्षक दो अनुबंध शिक्षक और एक गेस्ट फैकल्टी के भरोसे विभाग चल रहा है.
- कुरमाली भाषा विभाग में 5 शिक्षकों की आवश्यकता है. पर एक स्थायी शिक्षक और दो अनुबंध शिक्षक के भरोसे विभाग चल रहा है.
- खोरठा भाषा में भी 5 शिक्षकों की आवश्यकता है, पर एक स्थायी शिक्षक और चार अनुबंध शिक्षक के भरोसे विभाग चल रहा है.
- पंचपरगनिया भाषा में 5 शिक्षकों की आवश्यकता है. पर इस विभाग में एक स्थायी शिक्षक नहीं है और तीन अनुबंध शिक्षकों के भरोसे विभाग चल रहा है.
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