NewDelhi : यूक्रेन पर रूस हमले को लेकर देर रात संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाया गया, लेकिन रूस के वीटो के बाद गिर गया. निंदा प्रस्ताव पर वोटिंग के दौरान भारत, चीन, और संयुक्त अरब अमीरात वोटिंग में शामिल नहीं हुए. जबकि, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, नॉर्वे, आयरलैंड, अल्बानिया, गबोन, मैक्सिको, ब्राजील ने रूस के खिलाफ वोट डाला. प्रस्ताव के समर्थन में 15 में से 11 सदस्य देशों ने वोट किया.
निंदा प्रस्ताव पारित नहीं हो सका
जान लें कि रूस के बेहद करीब आ चुके चीन ने भारत की तरह वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीति से भारत के बेहद करीब आ चुके संयुक्त अरब अमीरात ने भी यही फैसला लिया. रूस ने वीटो का इस्तेमाल किया. निंदा प्रस्ताव पारित नहीं हो सका.
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हमें हार नहीं माननी चाहिए : एंटोनियो गुटरेस
“The United Nations was born out of war to end war.
Today, that objective was not achieved.
But we must never give up.
We must give peace another chance.”— @antonioguterres following Security Council meeting on Ukraine. https://t.co/TOCcBZIhl8 pic.twitter.com/1TOfisb6FK
— United Nations (@UN) February 26, 2022
इस क्रम में यूएन महासचिव एंटोनियो गुटरेस ने ट्वीट किया, यूएन का गठन युद्ध के बाद युद्ध समाप्त करने के लिए हुआ था. आज वो उद्देश्य हासिल नहीं हो सका, लेकिन हमें हार नहीं माननी चाहिए, हमें शांति को एक और मौका देना चाहिए. वैसे भारत और चीन वोट करते भी तो फर्क नहीं पड़ता क्योंकि रूस के पास खुद ही वीटो पावर है. पर ज्यादा महत्वपूर्ण है अमेरिका और नाटो देशों के दबाव में न आना.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन समेत पश्चिमी नेता पीएम मोदी से तटस्थता छोड़कर पुतिन की आलोचना करने का दबाव बना रहे थे. भारत के लिए कूटनीतिक परीक्षा की घड़ी थी क्योंकि यूक्रेन पर हमले से यूएन चार्टर का उल्लंघन हुआ है. इसलिए भारत ने वोट न करने को जो कारण बताये उसके साथ-साथ ये भी कहा कि युद्ध से किसी मसले का हल नहीं निकल सकता.
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एशिया और यूरोप के सामरिक समीकरण बदलने वाले हैं
थोड़ा पीछे जायें तो विंटर ओलिंपिक्स के दौरान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी समकक्ष शी जिनपिंग ने जब नो लिमिट’यानी असीमित सहयोग वाले समझौते पर हस्ताक्षर किये तब ये कहां पता था कि कुछ दिनों बाद ही एशिया और यूरोप के सामरिक समीकरण बदलने वाले हैं. दोनों देशों ने अमेरिका के खिलाफ जुगलबंदी का नया अध्याय लिखा था. इसलिए जब पुतिन ने डोन्टेस्क ( Dontesk) और लुहांस्क ( Luhansk) को रूसी हिस्सा घोषित कर यूक्रेन पर हमला कर दिया तो कुछ घंटों के भीतर ही इसका लिटमस टेस्ट भी होना तय हो गया. 4 फरवरी के समझौते की परीक्षा 24 फरवरी को होनी थी.
न ही भारत ने और न ही चीन ने सोचा था कि पुतिन अटैक करेंगे
न ही भारत ने और न ही चीन ने सोचा था कि पुतिन अटैक करेंगे. अब जब रूस की सेना यूक्रेन की राजधानी कीव में घुस चुकी है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा में निंदा प्रस्ताव आ गया तो फैसले की घड़ी भी आ गई. इससे पहले भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर पुतिन के विरोध के बावजूद नाटो के विस्तार पर चिंता जता चुके थे. रूस पर अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों का असर भारत पर पड़ने की बात भी विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला सार्वजनिक कर चुके थे. साथ ही रूस के साथ दशकों के पुराने संबंधों को भी ध्यान रखना था. इसलिए जब वोटिंग हुई तो भारत ने इसमें हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया.