Ranchi : पूर्व सांसद और आदिवासी सेंगल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने नयी नियोजन नीति को लेकर सरकार को सुझाव दिया है. उन्होंने कहा कि झारखंड स्थापना से अब तक 22 वर्षों में अनेक बार सत्ता का परिवर्तन हुआ है. आगे भी होगा. परंतु झारखंडी और आदिवासी-मूलवासी की जीवन में कोई खास परिवर्तन नहीं हो सका है. “अबुआ दिसुम-अबुआ राज” के खिलाफ सब कुछ हो रहा है. सरकार नियोजन, भाषा और स्थानीय नीति-सूत्र पर चिंतन मंथन कर एक नया झारखंड, अपने सपनों के झारखंड को सच बनाने के सार्थक पहल में झारखंडी जन कदम बढ़ा सकती हैं.
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प्रखंडवार कोटा बनाकर आवेदन भरा जाये
उन्होंने झारखंडी नियोजन नीति को लेकर सरकार को सुझाव देते हुए कहा कि झारखंड की सभी सरकारी/ गैर सरकारी नौकरियों का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों को आवंटित किया जाये. फिर उसको प्रखंडवार कोटा बनाकर केवल उसी प्रखंड के आवेदन से भरा जाये. प्रखंड में अवस्थित आबादी के अनुपात से हिस्से का बंटवारा किया जा सकता है. इसमें खतियान की कोई जरूरत नहीं है. ग्रामीण क्षेत्रों में वास करने वाले लगभग सभी झारखंडी है, आदिवासी और मूलवासी हैं. एक दूसरे को पहचानते हैं. उसी प्रकार शहरी क्षेत्रों के बीच में 10 प्रतिशत का हिस्सा बांटा जा सकता है.
5 आदिवासी भाषाएं और 4 मूलवासी भाषाएं ही झारखंडी भाषाएं है
उन्होंने झारखंडी भाषा नीति को लेकर भी अपना सुझाव दिया है. उन्होंने कहा कि झारखंड की 5 आदिवासी भाषाएं और 4 मूलवासी भाषाएं ही झारखंडी भाषाएं हैं. इनको समृद्ध किया जाए. बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर स्थापित झारखंड प्रदेश वस्तुत: एक आदिवासी प्रदेश है. अतः अविलंब एक आदिवासी भाषा को झारखंड की प्रथम राजभाषा का दर्जा देना अनिवार्य है. आठवीं अनुसूची में शामिल एकमात्र झारखंडी भाषा – संताली भाषा को प्रथम राजभाषा का दर्जा दिया जा सकता है.
झारखंडी स्थानीयता नीति बनाने का मूल लक्ष्य
उन्होंने झारखंडी स्थानीयता नीति को लेकर सुझाव देते हुए कहा कि झारखंड और वृहद झारखंड की मांग खतियान आधारित नहीं था. अब भी नहीं है. झारखंड के पड़ोस में स्थापित बिहारी, बंगाली, उड़िया आदि उप-राष्ट्रीयता से भिन्न झारखंडी उप-राष्ट्रीयता को स्थापित कर, आंतरिक उपनिवेशी शोषण से मुक्त होकर विकास के पथ पर राजकीय स्वायत्तता (ऑटोनॉमी) के साथ अग्रसर करने का एक सपना था और है. झारखंड को मांगने वाले आदिवासी-मूलवासी (झारखंडी) को स्थापित करना ही झारखंडी स्थानीयता नीति बनाने का मूल लक्ष्य हो सकता है. जो बाकी उप-राष्ट्रीयता की तरह उनकी भाषा-संस्कृति और जातिगत पहचान (सूची) से स्वत: स्थापित हो जाता है. अतएव आदिवासी- मूलवासी ही झारखंडी हैं, स्थानीय हैं.
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