Kiriburu : प्राकृतिक पर्यावरण, वन व खनिज संपदाओं से परिपूर्ण सारंडा के दर्जनों गांवों के ग्रामीण आज भी शुद्ध पेयजल के लिए तरस रहे हैं. सारंडा के किरीबुरु थाना अन्तर्गत कलैता, मिर्चीगड़ा, जम्बईबुरु, धर्नादिरी, रांगरिंग, नुईयागडा़, बोड़दाभठ्ठी, चेरवालोर, बालेहातु आदि दर्जनों ऐसे गांव है जहां के लोग आज भी प्राकृतिक नदी-नालों का दूषित लाल पानी पीकर विभिन्न रोगों से ग्रसित हो रहे हैं. सारंडा के कलैता व मिर्चीगडा़ गांव के बीच से गुजरे प्राकृतिक नाला का पानी बरसात में पूरी तरह से लाल व प्रदूषित हो चुका है लेकिन उक्त गांवों के ग्रामीणों के पास इस पानी का इस्तेमाल सभी कार्यों में करने के अलावे दूसरा कोई विकल्प नहीं है.
चुआं के पानी को घंटों छोड़ देते हैं, लाल मिट्टी नीचे बैठ जाती है तो फिर उसे पीते हैं या खाना बनाते हैं
कलैता निवासी कमल किशोर ने बताया कि हम ग्रामीण इसी लाल पानी में नहाते, कपड़ा व बर्तन साफ करते हैं तथा इस पानी को पीने व खाना बनाने के लिये इस्तेमाल करते हैं. दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है. उन्होंने कहा कि इस नाला के बगल में गड्ढा़ खोद चुआं बनाते हैं. चुआं का गंदा पानी फेंक कर कुछ देर छोड़ देते हैं, जिसके बाद उसमें कुछ साफ पानी आता है जिसे हंडी या बाल्टी में भरकर घर ले जाकर घर पर घंटों छोड़ देते हैं जिससे पानी के अंदर गंदा पदार्थ नीचे बैठ जाता है. उसके बाद पीने व खाना बनाने के रूप में इस्तेमाल करते हैं. कमल किशोर ने बताया की इस लाल पानी में नहाने से चर्म रोग, फोडा़, फूंसी आदि बीमारी होती है लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं.
ज्यादातर चापाकल लगे नहीं, जो लगे वह गर्मी के पहले दम तोड़ देते हैं
उल्लेखनीय है कि यह समस्या सारंडा के एक-दो गांवों की नहीं बल्कि दर्जनों गांवों की है. शुद्ध पेयजल की समस्या बरसात और गर्मी के मौसम में और विकराल रूप धारण कर लेती है. बरसात के मौसम में सारंडा के विभिन्न खदानों से निकलने वाले लाल पानी से तमाम प्राकृतिक नदी-नाले प्रदूषित एवं उसका पानी पूरी तरह से लाल हो जाता है. वहीं गर्मी के मौसम में लगभग प्रायः प्राकृतिक जल स्रोत व नदी-नाले, कुएं, चापाकल सुख जाते हैं, तब ग्रामीण दो-तीन किलोमीटर दूर पैदल चलकर अन्य जल स्रोतों के किनारे पारंपरिक चुआं बनाकर वहां से विभिन्न बर्तनों में पानी भर भीषण गर्मी में पैदल चल अपने घरों तक पानी लाने को मजबूर होते हैं. सारंडा एक्शन प्लान के बाद से लेकर अब तक सारंडा की 56 गांवों समेत अन्य गांवों में सैकड़ों चापाकल लगाने एंव विभिन्न पंचायतों के गांवों में सोलर चलित जलमिनार, वाटर ट्रिटमेंट प्लांट आदि लगाकर पेयजल आपूर्ति का कार्य हुआ लेकिन सच्चाई यह है कि इन चापाकलों में अधिकतर धरातल पर नहीं उतरे. कुछ उतरे भी तो काफी कम डीप बोर कर उसमें हैंडपंप आदि लगाये बिना खुला बोरवेल कर छोड़ दिया गया, जिसका प्रमाण आज भी छोटानागरा, बहदा आदि गांवों में देखने को मिलेगा. कुछ चापाकल विभिन्न गांवों में लगाये भी गये तो उसे इतना कम डीप बोरवेल किया गया कि गर्मी की दस्तक देने के साथ ही वह मृतप्राय हो जाता है. अधिकतर चापाकल लगने के बाद जब खराब हुआ जो दुबारा ठीक नहीं हुआ. कुछ चापाकल ठीक भी हैं तो उससे दुर्गंध युक्त दूषित पानी निकलता है जिसका इस्तेमाल कोई ग्रामीण नहीं करता. पुलिस-प्रशासन व मानकी-मुंडा की तमाम बैठक में सबसे पहला व बड़ा सवाल शुद्ध पेयजल का ही उठता है लेकिन अब तक इसका समाधान नहीं होना तमाम सरकारों की बडी़ नाकामी मानी जा रही है.