SHAILESH SINGH
Kiriburu : प्राकृतिक सुषमा, संरचना, खनिज व वन संपदाओं से परिपूर्ण एवं सात सौ पहाड़ियों की घाटी के नाम से विख्यात एशिया प्रसिद्ध सारंडा के निवासियों की लाइफलाइन कही जाने वाली कारो (उद्गम स्थल कोईडा़, ओड़िसा) एवं कोयना नदी (उद्गम स्थल भनगांव, सारंडा) के साफ पानी को प्रदूषित कर खून जैसा लाल व जहरीला करने का ठेका टीएसएलपीएल समेत अन्य खदान प्रबंधनों, औद्योगिक घरानों को आखिर किसने दिया! अगर इसके संरक्षण हेतु सरकारी, सामाजिक व औद्योगिक घरानों के स्तर पर प्रयास नहीं किया गया तो यह आश्चर्य नहीं होगा जब यह नदी न सिर्फ मौत बांटती नजर आयेगी बल्की नदी के बीचों-बीच वाहन दौड़ते दिखेंगे. हालात भी यहीं बयां कर रहा है क्योंकि वर्ष 1950-60 के दशक तक ये दोनों नदियां इतनी गहरी थीं कि अच्छा तैराक भी पार होने से पूर्व पानी का बहाव व नदी की गहराई देख डर जाया करता था. नदी की मछलियों को मारने के लिये खदानों के विस्फोटक (जिलेटिन) का लोग प्रयोग करते थे तथा दरीयाई घोड़ा से लेकर मगरमच्छ तक विचरन करते थे. आज हालत यह है कि नदी की गहराई खदानों से आने वाली फाइन्स व मिट्टी-पत्थर से कई मीटर तक भर चुकी है, पानी का ठहराव नहीं है, मछलियां दिखना एक स्वप्न के समान है एवं सैकड़ों गांवों के हजारों परिवारों का प्यास बुझाने तथा खेतों को सींचने वाली यह नदी स्वयं आज न सिर्फ प्यासी है बल्की खदानों की मिट्टी-मुरुम व लाल पानी से जहरीला हो गई है, जिसके इस्तेमाल से वन्यप्राणी, पालतू जानवर के अलावे दर्जनों गांवों के ग्रामीण विभिन्न रोगों के शिकार हो मौत को भी गले लगा रहे हैं.
चेकडैम टूटने से टीएसएलपीएल खदान से लाखों टन फाइंस व मिट्टी नदी में समाई
ताजा मामला सारंडा में खनन कार्य कर रही टाटा स्टील लांग प्रोडक्ट्स लिमिटेड (टीएसएलपीएल) की विजय-दो खादान से जुड़ा है. इस खदान क्षेत्र में जमा लाखों टन फाइंस व मिट्टी बीते दिनों भारी वर्षा व पदाधिकारियों की भारी लापरवाही की वजह से कमजोर चेकडैम टूटने से बह गई. इसका भारी नुकसान यह हुआ कि सरकार के राजस्व को भारी नुकसान जहां पहुंचा, वहीं इससे वन व पर्यावरण के साथ-साथ सारंडा से बहने वाली कोयना नदी को पूरी तरह से लाल व प्रदूषित कर नदी की गहराई को भर दिया. नदी का पानी निरंतर खूनी लाल रंग में बह रहा है, लेकिन इस समस्या के समाधान के लिए कंपनी प्रबंधन व वन विभाग दोनों मौन है तथा कोई सकारात्मक प्रयास नहीं हो रहा है. दोनों वन्यप्राणी सप्ताह मना लोगों को वन्यप्राणियों को बचाने का संदेश दे रहे हैं लेकिन बडा़ सवाल यह है कि ऐसा पानी पीकर आखिर कौन बचेगा !
बड़ी आबादी को बीमार पड़ने और पलायन से कोई नहीं रोक सकता
निरंतर बढ़ते तापमान एंव घटते जलस्तर से सारंडा एंव सारंडा के गांवों में रहने वाले लोग खतरे में हैं. हम स्वंय के साथ-साथ खदान प्रबंधनों, सरकार एवं वन विभाग की गलत नीतियों की वजह से जानबूझ कर उस रास्ते की तरफ कदम बढा़ रहे हैं जहां हमारी और मौत की दूरी समाप्त हो जायेगी. न चाहते हुए भी हम वातावरण में आने वाले हर उस परिवर्तन का सामना कर रहे हैं जो आने वाले विनाश की चेतावनी मात्र है. पेयजल के रूप में कारो एंव कोयना नदी का पानी का उपयोग पेयजल व कृषि के रुप में सारंडा व अन्य क्षेत्र के सैकड़ों गांवों के लाखों लोग करते हैं. कारो एवं कोयना नदी मनोहरपुर क्षेत्र में आपस में मिलती है. अगर दोनों नदी का पानी लाल व प्रदूषित हो गया या सूख गया तो इतनी बडी़ आबादी को गंभीर रूप से बीमार व पलायन करने से कोई नहीं रोक सकता. पानी नहीं रहेगा तो खादान व फैक्ट्री के बंद होने से भी कोई नहीं बचा सकता है.
सीरिज चेकडैम और कुएं व तालाब का निर्माण जरूरी
सारंडा में भू-गर्व व पेयजल की स्थिति अत्यन्त ही दयनीय है जिसके समाधान हेतु सारंडा में तमाम खदानों के चारों तरफ व अन्य क्षेत्रों में लार्ज व मास स्केल पर कुछ-कुछ दूरी पर सीरिज में स्थायी चेकडैम तमाम प्राकृतिक जल स्रोतों, नदी, नालों पर बनाने के साथ समतल क्षेत्र व गांवों में भारी तादाद में चेकडैम, कुआं व तालाब का निर्माण कराना होगा अन्यथा सारंडा की स्थिति भयावह होगी. उक्त बातें सारंडा के तत्कालीन आईएफएस दिलीप कुमार यादव ने कही थी. उन्हांेने कहा था कि सारंडा में वर्षा का पानी के ठहराव की कोई सुविधा नहीं है. नदी-नाला के भरने से वर्षा का पानी पहाड़ों से सीधे नीचे उतर व बहकर सारंडा को प्रदूषित व लाल कर बाहर चला जा रहा है, जिससे ग्राउंड वाटर रिचार्ज नहीं हो पा रहा है. सारंडा के तमाम प्राकृतिक जल स्रोतों पर 6-7 फीट का सीरिज चेकडैम बनाना होगा एवं चेकडैमों की नियमित साफ सफाई व मेन्टेनेंस करना होगा. नदियों व नालों की सफाई भी अत्यन्त जरूरी है. सिर्फ सारंडा हीं नहीं समतल क्षेत्रों में भी यह कार्य युद्ध स्तर पर कर यहां से बाहर जाने वाले पानी को हर हाल में रोकना होगा तभी ग्राउंड वाटर रिचार्ज होगा एवं चापाकल भी सफल होने लगेगा. इसके अलावे तमाम बंद हो चुके प्राकृतिक जल स्रोतों की साफ सफाई कर उसे जिन्दा करने का कार्य भी करना होगा.
ट्रीटमेंट प्लांट भी लाल पानी को साफ नहीं कर पा रहा
छोटानागरा के मुंडा बिनोद बारीक ने कहा कि पहले नदी का पानी इतना लाल नहीं था लेकिन पिछले कुछ महीनों से टीएसएलपीएल का डैम टूटने से पानी निरंतर लाल आकर कोयना नदी का साफ पानी को भी लाल कर दिया है, जिससे ग्रामीणों के सामने पेयजल की भारी संकट उत्पन्न हो गया है. वहां से बहे फाइन्स से हमारी खेत बंजर हो गए हैं, लोग दूषित पानी पीकर बीमार हो रहे हैं, कंपनी हमारी बात नहीं सुनती तथा मुआवजा, रोजगार व चिकित्सा सुविधा नहीं दे रही है. इसके खिलाफ 21 अक्तूबर से कंपनी का माल ढुलाई ठप करेंगे, जब तक की समस्या का समाधान नहीं होता. छोटानागरा निवासी भीमसेन गोप ने कहा कि बाईहातु का वाटर ट्रीटमेंट प्लांट भी इतना गंदा पानी को साफ नहीं कर पा रहा. हम लोगों को लाल पानी आपूर्ति हो रही है. पूछने पर कहता है कि लाल पानी के साथ फाइन्स आ रहा है जो मशीन व प्लांट को हमेशा जाम कर खराब कर रहा है जिससे यह समस्या उत्पन्न हो रही है. वन विभाग व सरकार इस समस्या का स्थायी समाधान कराये अन्यथा टीएसएलपीएल खादान को हम ग्रामीण बंद करायेंगे.
21 अक्टूबर से टीएसएलपीएल खदान की माल ढुलाई ठप करेंगे ग्रामीण
सारंडा पीढ़ के मानकी लागुडा़ देवगम ने कहा कि उक्त समस्याओं को लेकर ही सारंडा के दर्जनों गांवों के ग्रामीण 21 अक्टूबर से टीएसएलपीएल खदान की माल ढुलाई ठप करने का फैसला लिया है क्योंकि हमारी बातों को उक्त कंपनी व वन विभाग गंभीरता से नहीं लेकर समाधान हेतु कार्य नहीं कर रही है.