New Delhi : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से एक महिला सिविल जज के शारीरिक और मानसिक शोषण को लेकर रिपोर्ट तलब की है. बता दें कि महिला जज ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर उनका शारीरिक और मानसिक शोषण किये जाने का आरोप लगाया है. साथ ही उन्होंने अपना जीवन समाप्त (इच्छा मृत्यु) करने की इजाजत मांगी है. महिला जज का यह पत्र वायरल हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से इस पूरे मामले में रिपोर्ट मांगी है. नेशनल खबरों के लिए यहां क्लिक करें
अर्पिता साहू ने जिला जज द्वारा की जाने वाली अनुचित मांगों और उत्पीड़न का हवाला दिया
बांदा की सिविल जज अर्पिता साहू ने सीजेआई को पत्र लिख कर बाराबंकी कोर्ट में नियुक्ति के दौरान घटी घटनाओं का जिक्र किया है. खबरों के अनुसार अपने दो पन्नों के पत्र में अर्पिता साहू ने जिला जज द्वारा की जाने वाली अनुचित मांगों और उत्पीड़न का हवाला दिया है. एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने अपना पत्र में लिखा है कि मेरे छोटे से कार्यकाल में मुझे प्रताड़ित होने का दुर्लभ सम्मान मिला है. मेरा यौन उत्पीड़न हुआ है. मुझे ऐसा महसूस हो रहा है, जैसे कि मैं कोई कीड़ा हूं.
भारत में काम करने वाली महिलाएं यौन उत्पीड़न के साथ जीना सीख लो
पत्र में लिखा है कि मैं भारत में काम करने वाली महिलाओं से कहना चाहती हूं कि यौन उत्पीड़न के साथ जीना सीख लो. यह हमारे जीवन का सच है. POSH ACT हमसे कहा गया बड़ा झूठ है. कोई हमारी नहीं सुनता, किसी को हमारी नहीं पड़ी है. यह भी लिखा है कि मैं दूसरों को क्या न्याय दिलाऊंगी, जब मुझे ही कोई उम्मीद नहीं है. मुझे लगा था कि शीर्ष न्यायालय मेरी प्रार्थना सुनेगा, लेकिन मेरी रिट याचिका 8 सेकंड में ही बिना मेरी प्रार्थना सुने और विचार किये खारिज कर दी गयी. मुझे लगा कि मेरी जिंदगी, मेरा सम्मान और मेरी आत्मा को भी खारिज कर दिया गया है. मुझे यह निजी अपमान की महसूस हो रहा है.
पिछले डेढ़ सालों में मुझे चलती फिरती लाश बना दिया गया है.
सिविल जज अर्पिता साहू के अनुसार उनकी और जीने की इच्छा नहीं है. पिछले डेढ़ सालों में मुझे चलती फिरती लाश बना दिया गया है. बिना आत्मा और बेजान शरीर को लेकर और घूमने का कोई मतलब नहीं रह गया है.बता दें कि साल 2022 में बाराबंकी में पदस्थ रहने के समय अर्पिता साहू ने रीतेश मिश्रा और मोहन सिंह नाम के दो वकीलों के खिलाफ भी शिकायत दर्ज कराई थी. आरोप लगाया था कि वकीलों ने उनके खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया है. उस समय इलाहबाद हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच के आदेश दिये थे.