NewDelhi : ट्राइब्यूनल्स में खाली पड़े पदों को भरने में देरी पर सुप्रीम कोर्ट के तेवर तल्ख हैं. खबर है कि ट्राइब्यूनल्स रिफॉर्म्स ऐक्ट, 2021 पारित कराने पर भी अदालत ने केंद्र को फटकार लगाई है. सोमवार को बेहद तल्ख लहजे में कोर्ट ने कहा कि उसके फैसले का कोई सम्मान नहीं है, यह ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ है. अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसा कानून नहीं बनाया जा सकता जो उसके फैसले का विरोधाभासी हो.
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एल नागेश्वर राव की बेंच ने यहां तक कह दिया कि एक विकल्प है कि हम ट्राइब्यूनल्स ही बंद कर दें. कोर्ट की यह तल्खी यूं हीं नहीं थी. देश भर के ट्रिब्यूनल्स और अपीलीय ट्रिब्यूनल्स में करीब 250 पद खाली पड़े हैं. ऊपर से केंद्र ने नया कानून लाकर व्यवस्था में व्यापक बदलाव किया है.
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नये कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि ट्राइब्यूनल्स से जुड़ा नया केंद्रीय कानून वैसा ही है, जैसा वह निरस्त कर चुकी है. अदालत ने कहा कि सरकार के पास नये कानून बनाकर किसी निर्णय का आधार छीनने की शक्ति है, लेकिन वे सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के विरोधाभासी नहीं हो सकते. चीफ जस्टिस ने कहा कि हम कोई टकराव नहीं चाहते हैं. इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के विचार से संबंधित मंत्रालय को अवगत करायेंगे. सुप्रीम कोर्ट इसकी सुनवाई अगले सोमवार को करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह उम्मीद करता है कि इस दौरान वेकेंसी भरी जायेगी.
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कोर्ट और ट्राइब्यूनल में क्या अंतर है?
अदालत परंपरागत न्याय व्यवस्था का हिस्सा होती है मगर एडमिनिस्ट्रेटिव ट्राइब्यूनलकोई कोर्ट नहीं है. वह एक एजेंसी है जिसे न्यायिक शक्तियां दी गयी हैं. ट्राइब्यूनल कुछ खास मामलों में ही सुनवाई कर सकते हैं. जबकि अदालतें किसी भी विषय पर सुनवाई कर सकती हैं. न्यायपालिका कार्यपालिका से स्वतंत्र होती है जबकि ट्राइब्यूनल्स के सदस्यों का कार्यकाल, सेवा शर्तें वगैरह कार्यपालिका के हाथ में होती हैं. ट्राइब्यूनल का सदस्य होने के लिए कानून की जानकारी जरूरी नहीं है.
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1976 में संविधान का हिस्सा बने थे ट्रिब्यूनल्स
मूल संविधान में ट्राइब्यूनल्स का कोई जिक्र नहीं था. स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों के आधार पर 42वें संशोधन अधिनयम, 1976 के जरिए ट्राइब्यूनल्स की व्यवस्था की गयी. अनुच्छेद 323-ए में प्रशासनिक ट्राइब्यूनल्स का ब्योरा दिया गया है. एडमिनिस्ट्रेटिव ट्राइब्यूनल्स का दर्जा क्वासी-जुडिशल (अर्द्ध न्यायिक) होता है. यह सरकारी सेवा में नियुक्तियों और सेवा शर्तों से जुड़े विवादों को निपटाते हैं. 323-बी में अन्य मामलों के लिए ट्राइब्यूनल्स के गठन का जिक्र है.
323-ए के प्रावधानों के तहत ट्राइब्यूनल्स का गठन केवल संसद कर सकती है. हालांकि 323-बी में जिन ट्राइब्यूनल्स का जिक्र है, उन्हें संसद या राज्य की विधायिका भी गठित कर सकती है. 323-ए के तहत केंद्र में केवल एक ट्राइब्यूनल हो सकता है और हर राज्य के लिए एक, लेकिन 323-बी में ट्राइब्यूनल्स का एक ऑर्डर होता है.
भारत में कितने ट्राइब्यूनल्स हैं
वाटर डिस्प्यूट्स ट्राइब्यूनल्स (WDT)
आर्म्ड फोर्सेज ट्राइब्यूनल(AFT)
नैशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल(NGT)
डेट रिकवरी ट्राइब्यूनल(DRT)
सिक्योरिटीज अपीलेट ट्राइब्यूनल(SAT)
इनकम टैक्स अपीलेट ट्राइब्यूनलआदि को मिलाकर देश में अब 16 ट्राइब्यूनल्स हैं.