Girish Malviya
स्कैनिया बस घोटाला जो कि एक बहुत बड़ा घोटाला है, वह मीडिया से गायब है. कोई फॉलोअप स्टोरी नहीं है. कोई खोजबीन नहीं है कि आखिरकार मामला है क्या. दरअसल, जिस ढंग से यह मामला स्वीडिश मीडिया में उठाया गया, उसने एक तरह से इस बड़े मुद्दे को हल्का कर दिया.
देश का परिवहन मंत्री, जो देश में तीसरी चौथी पोजिशन होल्ड करता है, उस पर यह इल्जाम लगाया गया कि उसने एक लग्जरी बस रिश्वत में ली है. सुनने में ही यह एक बेवकूफी भरी बात लगती है कि क्या महज एक बस के लिए इतना बड़ा कैबिनेट मंत्री जो खुद एक बड़ा उद्योगपति है, जिसका लंबा कैरियर रिकॉर्ड रहा है, वह ऐसा काम करेगा ?
लग्जरी बस जैसी रिश्वत तो किसी छोटे मोटे राज्य का परिवहन मंत्री भी न ले! किसी शहर का मुख्य आरटीआई अधिकारी के लेवल की रिश्वत का आरोप भारत जैसे देश के परिवहन मंत्री पर लगाया जा रहा है. यह हास्यास्पद है.
तो क्या पूरा मामला फर्जी है ! नहीं !
जिस दिन यह मामला सामने आया था, उस दिन सोशल मीडिया की चर्चित हस्ती दिलीप मंडल ने एक ट्वीट किया कि सेक्रेटरी ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट पद पर रह चुके आईएएस ऑफिसर विजय छिब्बर ने रिटायरमेंट के बाद 2017 में स्कैनिया कंपनी की भारतीय इकाई में इंडिपेंडेंट डायरेक्टर के पद पर कैसे जा बैठे ? क्या यह कांफ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट का सीधा सीधा मामला नहीं बनता ? किसी मीडिया समूह ने इस प्वाइंट को लेकर कोई खोजबीन नहीं की. देश और पाठकों के सामने यह जानकारी आने ही नहीं दी.
दरअसल, अंतराज्यीय परिवहन लग्जरी बस सेगमेंट में दो ही ऑप्शन हैं. एक है वॉल्वो और दूसरी थी स्कैनिया. लेकिन पंद्रह साल से सफलतापूर्वक चल रही वोल्वो बस को नकार कर वर्ष 2013 से वर्ष 2017 के बीच सात राज्यों के परिवहन निगम पर दबाव डालकर स्वीडिश कंपनी स्कैनिया से स्कैनिया बस की खरीद को सुनिश्चित करवाया गया. और रिश्वत या कमीशन के बतौर करोड़ों रुपये वसूले गए.
एक दिन पहले पत्रिका की खबर थी कि राजस्थान रोडवेज के लिए स्कैनिया की जिन 27 लक्जरी बसों की खरीद की गई थी, उनका रख-रखाव सोने से ज्यादा उसकी गढ़ाई महंगी की तरह भारी साबित हो रहा है. बसों की खरीद 30 करोड़ रुपए में की गई थी. जबकि उनके मेंटीनेंस पर अब तक 33 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं.
यह 27 स्कैनिया बसें भाजपा सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2015 से 2017 के बीच खरीदी गई थी. 5 साल तक इन बसों के मेंटेनेंस का ठेका भी स्कैनिया को ही दिया गया. और राजस्थान रोडवेज 1.52 रुपए प्रति किमी के हिसाब से आज तक यह राशि स्कैनिया कंपनी को दे रहा है.
ऐसे ही महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (MSRTC) ने अक्टूबर 2015 में 35 स्कैनिया बसें खरीदीं. और कर्नाटक के KSRTC ने 50 बसें खरीदीं. दो दिन पहले यह तथ्य महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे पृथ्वीराज चौव्हाण ने एक प्रेस कांफ्रेंस बताया. उन्होंने इस सौदे में दी गयी रिश्वत के आरोप में जांच की मांग की है.
यह तो सिर्फ तीन राज्यों की बस खरीद के आंकड़े है. स्कैनिया के ऑफिशियल ने तो स्वंय माना है कि कुल सात राज्यों में रिश्वत देकर बसे बेची गयी है.
अगर सही ढंग से खोजबीन की जाए तो इस मामले में ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ कहने वाले वाले व्यक्ति के नीचे आपको भ्रष्टाचार की गंगोत्री बहती नजर आ जाएगी. सवाल यही है कि इनकी पोलपट्टी खोलेगा कौन ? बिल्ली के गले मे घण्टी बांधेगा कौन ?
डिस्क्लेमर : ये लेखक ने निजी विचार हैं.