LagatarDesk : आज के दौर में प्राइवेट स्कूल का रूप बदलता जा रहा है. जो पहले पूरी तरह शिक्षा पर केंद्रित हुआ करता था, वह अब व्यवसाय का रूप ले चुका है. दिनोंदिन इसका नजरिया और व्यवहार बदलता जा रहा है. इसलिए कई जगह प्रबंधन में शीर्ष पद पर शिक्षाविद् कम और व्यवसायी अधिक नजर आते हैं. इसका असर सीधे अभिभावकों पर पड़ता है. स्कूल बेहतर शिक्षा देने के नाम पर फीस बढ़ाते जाता है. इसके लिए उनके पास कोई ठोस जवाब नहीं होता है. अभिभावकों की विवशता यह है कि एक बार जब वे स्कूल में बच्चे को डाल देते हैं तो फिर बार-बार बदलना संभव नहीं होता है. बीच में स्कूल बदलने पर दूसरी जगह जाने पर उन्हें काफी फीस देनी पड़ती है. कुल मिलाकर हर जगह एक समान स्थिति होती है. यह अब आम समस्या बन चुकी है. इससे सालोंभर अभिभावकों को आर्थिक परेशानी झेलनी पड़ती है. हर साल फीस बढ़ती रहती है और वे इसे भरते रहते हैं. जो इस बोझ को ढोने में सक्षम नहीं होते हैं, सरकारी स्कूल का सहारा लेकर इस परेशानी से निकल जाते हैं. हालांकि ऐसे अभिभावकों की समस्या काफी कम होती है. शुभम संदेश ने इस विषय को उठाते हुए अभिभावकों और स्कूल प्रबंधन से बात की और उनकी पीड़ा सामने लायी…
प्राइवेट स्कूलों की मनमानी बढ़ गयी है
लातेहार के बानपुर निवासी पंकज प्रसाद प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं. वे भी स्कूल फीस से परेशान हैं. उन्होंने कहा कि प्राइवेट स्कूलों की मनमानी बढ़ गयी है. नया सत्र आया नहीं कि फीस का नोटिस आना शुरू हो गया है. एनुअल फीस बढ़ाकर दिया गया है. प्रति वर्ष ऐसा ही होता है. स्कूलों की फीस बढ़ जाती है. हमारे पास कोई रास्ता नहीं होता है. हमें न चाहते हुए भी प्रबंधन की बात माननी पड़ती है. विद्यालय प्रबंधन जब भी फीस बढ़ाता है उसे देना पड़ता है. कुछ पूछने पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाता है. फीस में नये तरह के चार्ज भी जोड़ दिये जाते हैं. कहा जाता है कि इससे बच्चों को लाभ होगा. जबकि कुछ ऐसा नहीं दिखाई देता है. फीस बढ़ने से हमारी भी टेंशन बढ़ गयी है. लेकिन देना ही होगा.
आज शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया है
दीपक स्टील के दीपक विश्वकर्मा कारोबारी हैं. लेकिन वे भी फीस से परेशान हैं. वे इसमें सरकार का हस्तपेक्ष चाहते हैं ताकि इस पर लगाम लगाया जा सके. उन्होंने कहा कि आज शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया है. पहले तो इसके लिए जमकर प्रचार किया जाता है. इसमें लोग फंस कर स्कूल पहुंच जाते हैं. वहां उन्हें तरह-तरह की सुविधा देने की बात कही जाती है. जब एडमिशन हो जाता है तब वे तरह-तरह के चार्ज लगाना शुरू कर देते हैं. छोटे हो या बड़े स्कूल हों, सभी की यही स्थिति है. सभी की कोशिश पैसे बनाने की होती है. अभिभावकों के पास कोई और विकल्प नहीं होता है. उन्हें किसी स्कूल में तो जाना ही है. वहीं बड़े शिक्षण संस्थान शिक्षा व्यवस्था को अपने हिसाब से चलाते रहते हैं.
सरकार को प्राइवेट स्कूलों को नियंत्रित करे
रेलवे स्टेशन क्षेत्र के अमरजीत सिंह प्राइवेट स्कूल के मनमाने रवैये से परेशान हैं. साथ ही चिंतित भी हैं. उनका कहना है कि सरकार हर बच्चे को शिक्षित करने की बात कहती है, लेकिन पूरा नहीं हो पाता है. प्राइवेट स्कूल ऐसे नारों से कोई वास्ता नहीं रखते हैं. वे मनमाने ढंग से स्कूल की फीस बढ़ा देते हैं. इससे पहले वे अभिभावकों के बारे में जरा भी नहीं सोचते हैं. आखिर उन पर पहले से ही महंगाई की मार पड़ रही है. इसलिए सरकार को इस मामले में थोड़ा सख्त होना चाहिए. प्राइवेट स्कूलों को नियंत्रित करना चाहिए. सरकार इस दिशा में उदासीन है. इसका खामियाजा छात्रों के अभिभावकों को भुगतना पड़ रहा है. प्राइवेट स्कूल न तो किसी की सुनते हैं और ना ही कुछ समझते हैं. अपनी ही करते हैं.
स्कूलों ने कोरोना काल में छूट दी थी, जबकि सरकार ने इसमें नहीं की कोई मदद
कोयलांचल पब्लिक स्कूल बरवाअड्डा की प्राचार्या अनामिका बताती हैं कि कोरोना काल के दौरान निजी स्कूलों की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई थी. कई स्कूल तो बंद हो गये थे. इससे बच्चों की पढ़ाई तो बाधित हुई ही साथ ही उसमें लगे शिक्षक भी बेरोजगार हो गये. लेकिन इसे देखनेवाला कोई नहीं है. कहा कि स्कूल नो प्रॉफिट नो लॉस पर चलता है. ऐसी स्थिति में स्कूलों ने कोरोना काल का दौर पार किया. सरकार की ओर से फीस में छूट को लेकर कई दिशा-निर्देश जारी किये गए. लेकिन स्कूलों को सरकार की ओर से कोई सहायता राशि नहीं मिली. लॉकडाउन के समय स्कूल जैसे-तैसे शिक्षकों को वेतन देकर अपना चलाते रहे, ताकि सभी का काम होता रहे. सैकड़ों जरूरतमंद बच्चों की ट्यूशन फीस तक माफ कर दी गई. स्कूलों में फीस बढ़ोतरी समेत सभी नियम जिला प्रशासन व सरकार के अंतर्गत ही किये जाते हैं. उन्हें इस पर भी ध्यान देना चाहिए.
यहां अभिभावकों पर किताब और ड्रेस का अनावश्यक बोझ कभी नहीं डाला जाता है
डीएवी कोयलानगर धनबाद के शिक्षक अनिल बताते हैं कि डीएवी मैनेजिंग कमिटी नई दिल्ली द्वारा स्कूल संचालित होता है. फीस संबंधी निर्णय बीसीसीएल की सहमति से राज्य व जिला प्रशासन के नियमों के अधीन ही लिए जाते हैं. फीस की बात करें तो स्कूल में एनुअल चार्ज नहीं लिया जाता है. स्कूल की फीस भी जिले के अन्य स्कूलों से काफी कम है. इसके बाद भी हमें हर तरह से अपनी ड्यूटी निभानी पड़ती है. बच्चों पढ़ाने संबंधी हर कार्य करना पड़ता है. वहीं उन्होंने कहा कि स्कूल के शिक्षकों और कर्मचारियों का वेतन प्रति वर्ष बढ़ता है, जबकि स्कूल की मंथली फीस प्रतिवर्ष नहीं बढ़ाई जाती है. स्कूल के अभिभावकों व बच्चों पर किताब और ड्रेस का अनावश्यक बोझ कभी नहीं डाला जाता है. स्कूल में वर्ग एक की पुस्तकें मात्र छह से सात सौ रुपये में उपलब्ध हैं. इससे किफायती भला और क्या हो सकता है. डीएवी में कुल मिलाकर देखा जाय तो अभिभावकों को राहत है.
अभिभावकों की परेशानी कोई सुननेवाला नहीं है, सभी फीस बढ़ाने में रहते हैं
बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विवि में सहायक प्राध्यापक डॉ मुकुंद बताते हैं कि एक तरफ बढ़ती हुई महंगाई तो दूसरी तरफ प्राइवेट स्कूल में बच्चों की बढ़ी फीस भारी पड़ती जा रही है. फीस के साथ रिएडमिशन समेत अन्य फीस का भार अभिभावकों के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है. जबकि इस पर सरकार और जिला शिक्षा विभाग को सक्रिय होकर काम करना चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं है. अभिभावक इससे काफी परेशान हैं. वे इसकी शिकायत भी करते हैं तो कोई सुनने वाला नहीं है. अभिभावकों की इस परेशानी को निजी स्कूल प्रबंधन, जिला प्रशासन से सरकार तक कोई समझना नहीं चाहता है. सभी बेहतर शिक्षा के नाम पर फीस बढ़ाने में लगते हैं. सालोंभर तरह-तरह के चार्ज जोड़ते रहते हैं. आखिर में अभिभावकों को पैसे देने पड़ते हैं. विषय की गंभीरता को देखते हुए शिक्षा विभाग और सरकार को इस समस्या का समाधान निकालने का प्रयास करना चाहिए.
निजी स्कूलों ने शिक्षा को बना दिया है व्यवसाय, अभिभावकों को हो रही है परेशानी
बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ धर्मेंद्र बताते हैं कि वहीं निजी स्कूलों ने शिक्षा को व्यवसाय बना दिया है. फीस, ड्रेस और किताबों को लेकर निजी स्कूल प्रबंधन की मनमानी अभिभावकों को परेशान कर रही है. जबकि दुनिया के कई देशों में शिक्षा और स्वास्थ्य बुनियादी सुविधाओं में गिना जाता है. इसके लिए बेहतर प्रबंधन किया जाता है. कुछ देशों में तो शिक्षा निःशुल्क भी है. वहां अमीर व गरीब बच्चों में फर्क नहीं किया जाता है. सभी के लिए समान सुविधा और शिक्षा होती है. वहां जो प्रतिभाशाली होते हैं, वे चुनकर आगे बढ़ जाते हैं. लेकिन अपने देश में ऐसी बात नहीं है. यहां तो शिक्षा को व्यवसाय बना दिया गया है. पैसे कमाने की चाहत में निजी स्कूल अधिक से अधिक फीस बढ़ाते रहते हैं. जबकि इस खर्चा का वहन करने में सभी सक्षम नहीं होते हैं. जबकि फीस की मार एक साथ सभी पर पड़ती है. अभिभावकों के पास कोई और रास्ता नहीं होता है.
स्कूल प्रबंधन को अभिभावकों की चिंता नहीं है, वे फीस के नाम पर मनमानी करते हैं
झुमरीतिलैया निवासी राजीव रंजन शुक्ला ने बताया कि बेटे का जब नाम लिखवाया तो सोचा कि चलो एक अच्छे स्कूल में एडमिशन मिल रहा है. यहां पढ़ाई अच्छी होगी. बच्चे का भविष्य बेहतर होगा. फीस में भी मुश्किल नहीं होगी. शुरुआती साल तो ठीक रहा. प्रबंधन ने फीस को लेकर कुछ बातें कही थीं, उसे पूरा करती रही. लेकिन दूसरे साल में सारे वादे पीछे छूटते चले गये. फिर कई तरह के चार्ज जुटते चले गये. अब तो स्थिति सोचनीय हो गयी है. यह सही है कि स्कूल प्रबंधन मनमाने तरीके से प्रत्येक वर्ष ट्यूशन फीस बढ़ा देता है. हर जगह की यही स्थिति है. अभिभावकों के पास कोई विकल्प नहीं होता है. जहां भी जाते हैं, वहां पर वैसा ही प्रबंधन मिलता है. किसी को अभिभावकों की चिंता नहीं होती है. सभी को अपनी जेब भरने की चिंता रहती है. यह गंभीर विषय है. इस पर सरकार का नियंत्रण होना चाहिए. सरकार का हस्तक्षेप होगा तो वे इसका पालन करेंगे. इससे सभी को राहत मिलेगी.
अभिभावकों पर अनुचित आर्थिक दबाव पड़ता है, उनकी चिंता बढ़ती जा रही है
कोडरमा निवासी सुनील कुमार सिन्हा की फीस की चिंता सता रही है. जब से नये सत्र के लिए नोटिस आने की बात हो रही है, तब से उनकी चिंता बढ़ गयी है. उन्होंने कहा कि अब इस साल कितना फीस बढ़ाया जाएगा कहा नहीं जा सकता है. हर साल किताबें बदल दी जाती हैं. उसकी जगह नहीं किताबें लेनी पड़ती हैं. उसकी कीमत काफी अधिक होती है. जबकि पहले ऐसा नहीं होता था. कुछ ही किताब बदले जाते थे. इससे अधिक बोझ नहीं बढ़ता था. स्कूल प्रबंधन से पूछने पर बताया जाता है कि इससे बच्चों को लाभ होगा. यह समझना मुश्किल होता है कि किस तरह और कैसे लाभ होता है. जबकि वे खर्चे के बारे में नहीं सोचते हैं. इतना ही नहीं, एक-दो साल में ड्रेस भी बदल दी जाती है. इससे अभिभावकों का खर्चा बढ़ जाता है. अभिभावकों पर अनुचित आर्थिक दबाव पड़ता है. प्राइवेट स्कूलों ने शिक्षा को पैसे से जोड़ दिया है. ऐसा महसूस होता है कि गरीबों के लिए शिक्षा है ही नहीं.
फीस समस्या बनती जा रही है, इसे लेकर सरकार को एक नियम बनाना चाहिए
कोडरमा निवासी अजय कुमार के लिए स्कूल की फीस समस्या बनती जा रही है. उन्हें इस बात का अफसोस है कि सरकार इसे लेकर गंभीर नहीं है. उन्होंने अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि सरकार या जिला प्रशासन को फीस वृद्धि पर एक नियम बनाना चाहिए. जब नियम बनेगा तो व्यवस्था के संचालन में आसानी होगी. सभी नियम का पालन करेंगे. इसके तहत फीस बढ़ाएंगे तो किसी को परेशानी नहीं होगी. यह अभिभावकों को भी पहले से पता होगा. तो वे इसके लिए पहले से तैयार रहेंगे. इसलिए इस पर दृढ़ता के साथ अमल होना चाहिए. कहने को ते जिला प्रशासन है, लेकिन यह दिखावे के लिए जिला शुल्क समिति का गठन कर देता है. इससे आगे कुछ नहीं करता है. वहीं स्कूल की मनमानी चलती रहती है. अपने तरीके से फीस बढ़ाता रहता है. इसके अलावा कई तरह के चार्ज भी लगाता रहता है. कोई इसे सुननेवाला नहीं होता है. इसका खामियाजा अभिभावकों को भुगतना पड़ता है.
फीस वृद्धि का बोझ अभिभावकों पर पड़ता है, इस पर किसी का ध्यान नहीं है
कोडरमा के गुमो निवासी अभिमन्यु पांडेय फीस को लेकर गंभीर हैं. जिस उत्साह के साथ कुछ साल पहले उन्होंने अपने बच्चे का एडमिशन प्राइवेट स्कूल में करवाया था, फीस के बोझ ने उसे ठंडा कर दिया है. उन्होंने बताया कि प्रत्येक वर्ष एडमिशन फीस समेत अन्य शुल्क में मनमाना वृद्धि की जाती है. उनकी मनमानी यहीं नहीं रुकती है. जब नया सत्र आता है, तब निजी पब्लिकेशन की किताबें खरीदने को बाध्य किया जाता है. जबकि इसकी कीमत काफी अधिक है. इसमें किताब के अलावा स्टेशनरी के सामान होते हैं. इसे लिस्ट से खुद हटा भी नहीं सकते हैं. इस पर अधिक सवाल भी नहीं किया जा सकता है. इसका स्कूल के पास पहले से ही जवाब रहता है. इसका सारा बोझ अभिभावकों पर पड़ता है. इस पर किसी का ध्यान नहीं है. सरकार को इस पर गंभीर होना चाहिए. एक नियम बनाकर कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि अभिभावकों को मनमाना फीस वृद्धि से राहत मिल सके.
अब प्राइवेट स्कूलों की फीस बढ़ोतरी पर ध्यान दे सरकार, यह गंभीर विषय है
हजारीबाग हुरहुरू के गुलशन कुमार स्कूल की फीस बढ़ने से परेशान हैं. उनकी समस्या हर साल बढ़ायी जानेवाली फीस के साथ ही ड्रेस और किताबों में हुए बदलाव को लेकर है. जब उन्होंने अपने बच्चे का नाम प्राइवेट स्कूलों में लिखवाया था, तब काफी खुश थे. तब जो हालात थे, उसमें वे फीस भरने में सक्षम थे. कुछ समय तक ठीक रहा, लेकिन बाद में स्कूल कई तरह के शुल्क जोड़ दिये गये. जो उनकी समझ से परे थे. वे कहते हैं कि प्राइवेट स्कूल फीस के मामले में काफी मनमानी करते हैं. जब होता फीस बढ़ा दिया जाता है. इसमें कई तरह का गैर जरूरी शुल्क भी जोड़ दिया जाता है. अभिभावक चाहकर भी इसका विरोध नहीं कर पाते हैं. सरकार को प्राइवेट स्कूलों की फीस बढ़ोतरी ध्यान देना चाहिए. यह गंभीर विषय है. एलकेजी में नामांकन फीस के नाम पर प्राइवेट स्कूल काफी पैसे लेते हैं. इसमें सुधार नहीं हुआ तो मध्यमवर्गीय परिवार को बच्चे को पढाना मुश्किल होगा.
स्कूलों की भारी-भरकम फीस भरना सबके लिए आसान नहीं
पंडितजी मार्ग निवासी पुष्पा कुमारी कहती हैं कि एक तो महंगाई की मार है. उससे सभी लोग पहले से ही परेशान हैं. ऊपर से प्राइवेट स्कूल की भारी-भरकम फीस है. इसे पूरा करना है. आखिर में लोग जाएं तो कहां जाएं. यह गंभीर विषय है. जो हालत है उसमें मध्यमवर्गीय परिवारों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. अब तो उनके लिए सरकारी स्कूल ही अच्छा है. प्राइवेट स्कूलों की भारी-भरकम फीस भरना सबके लिए आसान नहीं है. ऊपर से स्कूल से ही किताब और यूनिफॉर्म खरीदने का फरमान होता है. उसकी कीमत काफी अधिक होती है. इसमें बड़ी परेशानी यह है कि उनकी पुस्तकों को कहीं और से नहीं खरीदा जा सकता है. किताबों को उनके द्वारा बताए गये दुकान से लेना होता है. महंगाई के दौर में स्कूल की बढ़ हुई फीस ने अभिभावकों को लाचार कर दिया है. जबकि इस पर किसी का ध्यान नहीं है. प्राइवेट स्कूल के मनमानेपन पर रोक लगाने के लिए सरकार को नियम बनाने की जरूरत है.
अभिभावकों को भरोसे में लेना चाहिए, फीस बढ़ाने से परेशानी बढ़ती है
दीपूगढ़ा निवासी नंदकिशोर कुमार कहते हैं कि प्राइवेट स्कूल में बच्चों के नामांकन के नाम पर हर साल फीस बढ़ा दी जाती है. जो सही नहीं है. पहले तो इसे बढ़ाने से पहले अभिभावकों को भरोसे में लेना चाहिए. लेकिन वे इसे जरूरी नहीं समझते हैं. वे अपनी इच्छा से जब चाहे फीस बढ़ा देते हैं. इस पर किसी का कोई रोक नहीं है. उन्होंने कहा कि हर साल फीस बढ़ाने से हमलोगों की परेशानी बढ़ रही है. कदम-कदम पर फीस के अलावा यूनिफॉर्म और पुस्तकों के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है. कभी मौसम में बदलाव के नाम पर ड्रेस में कुछ नया जोड़ दिया जाता है. तब इसे खरीदना पड़ता है. इस तरह से कई तरह से अभिभावकों का खर्च बढ़ जाता है. इस तरह के कई खर्च होते रहते हैं. इसे सुनने और समझनेवाला कोई नहीं है. स्कूल प्रबंधन जो नोटस देता है, उसे पूरा करना ही पड़ता है. मामले की गंभीरता को देखते हुए इस पर सरकार और प्रशासन को संज्ञान लेना चाहिए.
प्राइवेट स्कूलों की मनमानी बढ़ती जा रही है, कार्रवाई होनी चाहिए
न्यू एरिया निवासी अंजन कुमार कहते हैं कि प्राइवेट स्कूलों की मनमानी बढ़ती जा रही है. फीस के नाम पर पैसे लिये जा रहे हैं. अभिभावकों के पास कोई विकल्प नहीं होता है. जो विकल्प होता है, उसे करने में कोई फायदा नहीं होता है. इसलिए वे प्रबंधन की बात मान लेते हैं. इस पर कार्रवाई होनी चाहिए. वे कहते हैं कि एडमिशन चार्ज एक बार ही होना चाहिए. हर बार लेने का कोई मतलब नहीं है. लेकिन इस पर कौन सवाल करेगा. जो करेंगे उन्हें स्कूल में परेशानी होगी. इसलिए अभिभावक भी विरोध करने से बचते हैं. लेकिन पैसे की मार झेलते रहते हैं. उन्होंने कहा कि बार-बार फीस बढ़ाने से मध्यमवर्गीय परिवार पर बोझ बढ़ता है. उनके घर का बजट प्रभावित होता है. उनके भी कई तरह के खर्चे होते हैं. पहले वे उसे पूरा करें कि स्कूल फीस भरें, यही समस्या है. सरकार को फीस निर्धारित करना चाहिए. एक कानून बनाना चाहिए. तभी बेहतर तरीके से अभिभावक अपने बच्चों को अच्छे विद्यालयों में पढ़ा सकेंगे.
सरकारी स्कूल बेहतर बने तो प्राइवेट स्कूल में जाना ही नहीं पड़ेगा, झंझट ही खत्म
रोमी निवासी अनिल कुमार कहते कि बच्चों की फीस, यूनिफॉर्म और किताबों में रियायत होनी चाहिए. ये ऐसी चीजें हैं, जो हर साल पूरे करने होते हैं. फीस तो देनी ही है. वह तो ठीक है, लेकिन ड्रेस और किताब समझ में नहीं आता है. लेकिन स्कूल की ओर से बेहतर शिक्षा और बेहतर माहौल के नाम पर सारी चीजें लेने को कहा जाता है. न चाहते हुए भी अभिभावकों को इसे पूरा करना पड़ता है. वे कहते हैं कि अगर सरकारी स्कूल बेहतर बने तो प्राइवेट स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का झंझट ही खत्म हो जाएगा. तब न तो पैसे का दबाव रहेगा और न ही कुछ और का. इतने अधिक पैसे प्राइवेट स्कूल वाले ले लेते हैं कि फिर घर चलाना मुश्किल हो जाता है. घर में कई बच्चे हैं. सभी को एकसमान शिक्षा देनी होती है. इसलिए सभी को एक ही स्कूल में देते है. वहीं भारी-भरकम फीस की वजह से प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना समस्या बन गई है. स्कूलों में फीस संतुलित होना चाहिए, ताकि बच्चे भी पढ़ जाएं और अभिभावक भी परेशान ना हों. इसी में सभी का भला है.
अभिभावकों को कहीं से भी किताब खरीदने की छूट होनी चाहिए
रांची के पिठोरिया निवासी श्रवण गोप ने कहा कि उनके बच्चे शारदा ग्लोबल पब्लिक स्कूल में पढ़ाई करते हैं. स्कूल की इंफ्रास्ट्रक्चर और पढ़ाई अच्छी है. सबकुछ ठीक है, लेकिन फीस को लेकर परेशानी होती रहती है. फीस बढ़ोतरी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि स्कूल कोरोना के वक्त भी एनुअल चार्ज माफ करने का कह रहा था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. आखिर में देना पड़ा. अधिकतर स्कूलों का यही हाल है. वहीं अभिभावकों के साथ उनकी पसंदीदा जगहों पर किताब और ड्रेस खरीदने की होती है. इसमें सुधार होना चाहिए. जब इसे कहीं से भी खरीदने की छूट होगी तो इसका फायदा अभिभावकों को होगा. उन पर आर्थिक बोझ घटेगा. हर दो-तीन साल में सिलेबस बदल दिया जाता है. वहीं नई किताबें खरीदने को कहा जाता है. अभिभावकों के पास कोई उपाय नहीं होता है. अभिभावक न चाहते हुए भी उनके बताए जगहों से किताबें खरीदते हैं. अन्य जगहों से मिलता भी नहीं है. इसके बाद ही पढ़ाई हो पाती है. इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए.
हमलोगों के पास कोई और विकल्प नहीं होता है, फीस जमा कर देते हैं
रांची के कांके निवासी मृत्यंजय सिंह के बच्चे संत जॉन पब्लिक स्कूल में पढ़ाई करते हैं. वे भी बढ़ी फीस से परेशान हैं. जब उन्होंने स्कूल में बच्चे का दाखिला कराया था तो काफी प्रसन्नचित थे. उन्होंने पहले साल हर खर्चे को खुशीपूर्वक उठाया. बाद में यही भारी पड़ने लगा. जब फीस बढ़नी शुरू हुई तो उनका खर्च बढ़ता गया. लेकिन स्कूल से हटाना समाधान नहीं था. इसलिए वे वहीं बच्चे को पढ़ाते रहे. हर साल स्कूलों द्वारा फीस बढ़ोतरी पर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूलों में प्राइवेट स्कूलों के मुकाबले फीस बहुत कम होते हैं. वहीं सरकारी स्कूलों में शिक्षकों को ज्यादा तनख्वाह मिलती है. यह सब जानते हुए हमलोग प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते हैं. यह अच्छी शिक्षा की चाहत की वजह से है. यह हमारी मजबूरी है. इसलिए प्राइवेट स्कूल मनमाना फीस वसूलते हैं. हमलोगों के पास कोई और विकल्प नहीं होता है. इसलिए हमलोग प्राइवेट स्कूल की तरफ जाते हैं. हालांकि इस मामले पर सरकार को सख्त कानून बनाना ही चाहिए.
सरकार प्राइवेट स्कूलों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं करती है
रांची के रातू रोड निवासी विनोद सिंह की इस पर अलग राय है. उनके बच्चे डीएवी हेहल में पढ़ते हैं. उन्होंने कहा कि स्कूल का फीस बढ़ना आम हो गया है. सब स्कूल की यही हालत है. किसी को इसमें रोल मॉडल नहीं कहा जा सकता है. नया सत्र आते ही सभी स्कूल एक हो जाते हैं. कुछ ही दिनों के अंतराल पर सारे स्कूल के फीस बढ़ जाते हैं. उन्होंने कहा कि हम अभिभावकों को अब इसकी आदत सी हो गई है. सरकार भी प्राइवेट स्कूलों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती है. बच्चों को पढ़ाना है तो फीस देना ही पड़ेगा. जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए. स्कूल प्रबंधन को अभिभावकों की परेशानी समझनी चाहिए. वैसे भी दो साल कोरोना रहा था. उसमें कई अभिभावकों की नौकरी चली गई थी. वहीं कई का कारोबार बंद हो गया था. जबकि उस दौर में फीस लिया गया था. इसके बाद अब यह समस्या है. इसकी गंभीरता को देखते हुए सरकार को इस पर संज्ञान लेना चाहिए. ऐसे नियम बनाना चाहिए, ताकि सभी को सहुलियत हो.
सरकारी स्कूल अच्छा होता तो प्राइवेट स्कूल नहीं जाना पड़ता
रांची के मोराबादी में रहने वाले प्रणय के दो बच्चे हैं, जो विश्व एस्कॉर्ट और शारदा ग्लोबल पब्लिक स्कूल में पढ़ते हैं. फीस बढ़ोतरी पर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूल अगर अच्छे होते तो हमें अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती. आप अगर सरकारी स्कूल को देखेंगे तो उनके टीचर्स की सैलरी प्राइवेट स्कूल के शिक्षकों से ज्यादा होती है. वहीं फीस कुछ नहीं होता है. इसके बाद भी हमलोग प्राइवेट स्कूल जाते हैं. इसलिए इस पर हमें आत्ममंथन करने की जरूरत है. इसमें कोई संदेह नहीं कि प्राइवेट स्कूल की फीस दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. स्कूल प्रबंधन नये तरह के चार्ज लगाते रहते हैं. पूछने पर कोई ठोस जवाब भी नहीं देते हैं. जबकि अभिभावकों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने की चाहत होती है. इसलिए कहीं से भी पैसे की जुगाड़ कर फीस भर देते हैं. इसके लिए उन्हें उधार तक लेना पड़ता है. इससे उन पर आर्थिक बोझ बढ़ता ही जाता है. लेकिन इस पर किसी का ध्यान नहीं है. जबकि यह एक गंभीर विषय है. इससे परेशानी कम होगी.
स्कूल अगर जरूरत अनुसार फीस बढ़ाती है तो दिक्कत नहीं
रांची के मोराबादी में रहने वाले सुनील सेठी के बच्चे प्ले स्कूल में पढ़ते हैं. स्कूलों में फीस बढ़ोतरी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि स्कूल अगर सही तरीके और जरूरत अनुसार अपना फीस बढ़ाता है तो उसमें कोई दिक्कत नहीं है. अगर स्कूल ऐसा नहीं करता है तो यह गलत बात है. स्कूलों को अभिभावकों के साथ मनमानी नहीं करनी चाहिए. लेकिन हालात विपरित हैं. कहीं से भी परिस्थिति अभिभावकों के अनुकूल नहीं है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि महंगाई की मार से सभी प्रभावित हैं. इसमें भी अभिभावकों पर दोहरी मार पड़ती है. एक तो उनको घर का खर्च पूरा करना पड़ता है. दूसरी ओर स्कूल की फीस भी भरनी पड़ती है. कुल मिलाकर उन पर भारी आर्थिक बोझ होता है. इसे देखते हुए सरकार को फीस पर एक नियम बनाना चाहिए. उसे पूरी तरह पालन करवाना चाहिए. जब तक सरकार सख्त नहीं होगी तब तक ऐसा ही चलता रहेगा. स्कूल फीस बढ़ाते रहेंगे.
वर्तमान में शिक्षा को बाजार का वस्तु बना दिया गया है
जमशेदपुर स्थित करीम सिटी कॉलेज शिक्षा संकाय की प्रो (डॉ) संध्या सिन्हा कहती हैं कि वर्तमान में शिक्षा को बाजार का वस्तु बना दिया गया है. जबकि बाजार ऐसा स्थान है, जहां मानवीय मूल्य गौण हो जाता है. इस स्थिति से निपटने के लिए शिक्षा पर पूरी तरह से नियंत्रण होना जरूरी है. लेकिन ऐसा नहीं है. इसे लेकर कोई ठोस नियम नहीं है. फीस के मामले में प्राइवेट स्कूल अपने तरीके से काम करते हैं. हर साल फीस बढ़ा दी जाती है. एनुअल चार्ज के नाम पर फीस बढ़ा दिया जाता है. इतने तरह के फीस होते हैं, जिसका हिसाब रखना कठिन है. जब फीस की सूची देखी जाती है तो उसमें कई तरह के फीस नजर आते हैं. इस पर जब स्कूल से सवाल किया जाता है तो उनके पास कोई ठोस जवाब नहीं होता है. कई बार समझ से परे होता है. इसके लिए सरकारी स्कूलों को भी प्राइवेट स्कूलों के समतुल्य बनाना होगा. तब प्राइवेट स्कूलों की मोनोपोली खत्म होगी और अभिभावकों को उनकी मनमानी से निजात मिल सकेगी. इससे फायदा होगा.
फीस वृद्धि या स्कूल ड्रेस में बदलाव बाजारवाद का प्रभाव है
जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कॉलेज के प्रो विजय कुमार पीयूष ने कहा कि फीस वृद्धि या हर साल किताबों और स्कूल ड्रेस में बदलाव या फिर परिवहन शुल्क में वृद्धि, यह सब बाजारवाद का प्रभाव है. अपने-आप को बेहतर दिखाने की होड़ में स्कूल ऐसा करते हैं. इसका परिणाम होता है कि अभिभावकों पर आर्थिक बोझ बढ़ता है. उनके सामने फीस भरने के अलावा कोई उपाय नहीं होता है. कुछ अभिभावक इस पर तो सवाल करते हैं, लेकिन अधिकतर सवाल भी नहीं करते हैं. ऐसे में मनमाने तरीके से फीस बढ़ाते रहते हैं. इसकी कहीं सुनवाई भी नहीं होती है. न तो सरकार इस पर ध्यान देती है और न ही जिला स्तर पर अधिकारी ध्यान देते हैं. इसके लिए अभिभावकों की तरफ से संगठन बने हैं, लेकिन ये अधिक कारगर नहीं हैं. ये भी राजनीति का हिस्सा बन चुके हैं. संगठन भी खानापूर्ति करने में लगी रहती है. वहीं अभिभावकों को सबकुछ झेलना पड़ता है. यह गंभीर विषय है. इसके लिए सरकार को सख्त कदम उठाकर कार्रवाई करनी चाहिए.
हर साल किताबें बदल दी जाती हैं, मुश्किल होती है
प्रो (डॉ) अशोक कुमार रवानी कहते हैं कि हर साल किताबें बदल दी जाती हैं. स्कूल या निर्धारित दुकान से ही किताब से लेकर कॉपी और कवर तक खरीदने की बाध्यता होती है. जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए. पहले ऐसा नहीं होता था. जो किताब एक बार दी जाती थी, वही कई साल तक चलती रहती थी. इससे अभिभावकों को राहत रहती थी. कुछ किताबें ही बदली जाती थीं. इसलिए इस पर रोक लगाया जाना चाहिए. यह स्कूल की मनमानी है. जब कोई किताब हर जगह मिलेगी तो खरीदना आसान होगा. वहीं बाजार में अभिभावकों को डिस्काउंट भी मिल सकता है. इससे उन्हें काफी राहत मिल सकती है. फीस की बात करें तो स्थिति गंभीर है. इस पर कोई लगाम ही नहीं है. जब मन होता है, स्कूल फीस बढ़ा देता है. अभिभावक को फीस भरना पड़ता है. इसलिए फीस वृद्धि के लिए तय समय-सीमा होनी चाहिए. दो-तीन साल के एक निश्चित अंतराल में महंगाई को देखते हुए फीस वृद्धि की जानी चाहिए. इससे अभिभावकों पर आर्थिक बोझ घटेगा.
किताब में बदलाव बच्चों की बेहतरी के लिए किया जाता है
एसएस एकेडमी की शिक्षिका डॉ लता प्रिया मानकर ने बताया कि स्कूल फीस में वृद्धि या किताबों में बदलाव से अभिभावकों को होनेवाली परेशानी से स्कूल प्रबंधन भी वाकिफ होता है. लेकिन बढ़ती महंगाई को देखते हुए स्कूल फीस में बढ़ोतरी स्कूलों की मजबूरी होती है. इसी तरह सिलेबस में बदलाव के कारण अच्छी किताबों का चयन करना पड़ता है. जब चयन की बात आती है तो कई पब्लिकेशन होते हैं. उसमें देखना होता है कि हमारी कसौटी पर कौन खरा उतरता है. किताब में बदलाव बच्चों की बेहतरी के लिए किया जाता है. बच्चों को आनेवाले दिन के हिसाब से तैयार करना पड़ता है. इसके लिए उन्हें नयी जानकारी देने के लिए नयी किताबों दी जाती हैं. इसलिए इसमें बदलाव किया जाता है. हर चीज को बाजार से जोड़ दिया जाता है. जबकि ऐसा नहीं है. जहां तक हर साल स्कूल ड्रेस में बदलाव का सवाल है, तो हर साल ऐसा नहीं किया जाता है. जब जरुरत होती है तभी किया जाता है.
इससे प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर रोक लग जाएगी
मध्य विद्यालय घाटशिला की शिक्षिका रजनी रंजन ने कहा कि प्राइवेट स्कूलों की मनमानी और अभिभावकों की परेशानी किसी से छिपी नहीं है. इसके बाद भी प्राइवेट स्कूल एनुअल चार्ज और मंथली चार्ज के नाम पर हर साल फीस बढ़ा देता है. अभिभावकों के पास कोई उपाय नहीं होता है. वे भी इसे मान लेते हैं. सवाल करने पर कुछ भी जवाब दे दिया जाता है. लेकिन सरकार सजग हो चुकी है. सरकार ने अब सरकारी स्कूलों को भी प्राइवेट स्कूलों के समतुल्य बनाने की कवायद शुरू कर दी है. इसी के तहत जिले के कुछ स्कूलों को अपग्रेड भी किया गया है. सीबीएसई की संबद्धता भी दिलायी गयी है. सभी स्कूलों को अपग्रेड होने में थोड़ा समय लग सकता है. इससे भविष्य में प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर रोक लग जाएगी. इससे अभिभावकों को हर साल फीस वृद्धि समेत अन्य समस्याओं से निजात मिलेगी. ऐसा हो जाएगा तो प्राइवेट स्कूल खुद ही रास्ते पर आ जाएंगे.
हर साल फीस बढ़ाया जाना कहीं से भी उचित नहीं है
अरका जैन विश्वविद्यालय के निदेशक अमित श्रीवास्तव हर साल फीस वृद्धि से इनकार करते हैं. वे कहते हैं कि हर साल फीस वृद्धि, परिवहन शुल्क में वृद्धि या किताबों में बदलाव किया जाना सही नहीं है. इससे अभिभावकों पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है. उनके भी कई तरह के खर्चे होते हैं. उसमें एक नया खर्च जुट जाता है. जब नोटिस आ जाती है तब उनकी टेंशन बढ़ जाती है. इसे पूरा करने के लिए उधार तक लेना पड़ता है. क्योंकि सभी की आर्थिक स्थित एक समान नहीं होती है. इससे अभिभावकों को काफी परेशानी होती है. कहा कि स्कूलों को कुछ वर्षों के अंतराल पर यह प्रक्रिया अपनानी चाहिए. अभिभावकों को फीस वृद्धि की पूर्व सूचना दे दी जानी चाहिए, ताकि वे भी तैयार रहें. क्योंकि महंगाई के साथ-साथ स्कूलों का खर्च भी बढ़ता है. इसलिए फीस वृद्धि का भी पूरी तरह से विरोध नहीं किया जाना चाहिए. किताबों में बदलाव की बात है, तो नयी शिक्षा नीति-2020 लागू होने के बाद संभवतः इस पर रोक लगेगी.