Shailendra Varma
Lagatar Desk : एक अक्टूबर को जन्मदिन है फिल्म जगत के ऐसे दिग्गज और वर्सटाइल संगीतकार और बेहद उम्दा गायक का, जिनके बिना फिल्म संगीत की कल्पना भी नहीं की जा सकती. अपने 40 सालों के फिल्मी करियर में उन्होंने 89 हिन्दी और 20 बांग्ला फिल्मों में ऐसा संगीत दिया कि आज भी उनके बनाये गाने सुनने में एकदम फ्रेश लगते हैं. और इस गुणी संगीतकार का नाम है सचिन देव बर्मन यानि एसडी बर्मन यानि बर्मन दा.
एसडी बर्मन का जन्म 1906 को बंगाल के कोमिल्ला में हुआ. यह शहर अब बांग्लादेश में है. बर्मन दा नौ भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. ये जब महज दो साल के थे तो इनकी मां का निधन हो गया. इनकी शुरुआती पढ़ाई अगरतला के बोर्डिंग स्कूल में हुई, जहां शाही परिवार के बच्चे पढ़ते थे. इसके बाद कोमिल्ला के युसूफ स्कूल और फिर जिला स्कूल से पढ़ाई की. 14 साल की उम्र में यानि कि 1920 में इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की. फिर कोमिल्ला के ही विक्टोरिया कॉलेज से आईए और बीए की परीक्षा पास की. इसके बाद वे एमए करने कोलकाता आ गए और कोलकाता यूनिवर्सिटी में एडमिशन भी ले लिया. यहां उन्हें लगा कि उनकी रुचि तो संगीत में है. तब उन्होंने 1925 से लेकर 1930 तक संगीतज्ञ केसी डे और कई संगीत महारथियों से संगीत सीखा. इसी दौरान वे बतौर सिंगर कोलकाता रेडियो में भी जुड़ गये. 1932 में संगीत का इनका पहला सेमी क्लासिकल रिकॉर्ड खमाज रिलीज हुआ. इसके बाद इनकी पहचान बनने लगी. कोलकाता म्यूजिक कॉन्फ्रेंस, जिसका उदघाटन रविंद्रनाथ टैगोर ने किया था, वहां बर्मन दा ने ठुमरी गाया और इन्हें गोल्ड मेडल मिला. इसके बाद बर्मन दा बांग्ला फिल्म और गैर फिल्मी संगीत जगत के जगमगाता सितारा बन गये. 1937 में बतौर संगीतकार अपनी म्यूजिक जर्नी शुरू की और सफलता के मुकाम बनाते चले गये. इन्होंने दो फिल्मों में संगीतमय रोल भी निभाये.
और जब आए बॉलीवुड, तो फिर छा गए
बंगाल में नाम कमाने के बाद 1944 में उन्होंने बॉलीवुड का रुख किया और आ गये मुंबई. हालांकि कोलकाता में तब तक उनका आशियाना बन चुका था. 1938 में उनकी शादी गैर शाही परिवार की लड़की मीरा दास गुप्ता से हुई और 1939 में उनके एकमात्र लड़के राहुल देव बर्मन यानि आरडी बर्मन यानि पंचम दा का जन्म हुआ. मुंबई में 1946 में उन्हें शशधर मुखर्जी ने दो फिल्मों में संगीत देने के लिए साइन कर लिया. ये फिल्में थीं शिकारी और आठ दिन. लेकिन बॉलीवुड में इन्हें पहचान मिली साल 1947 में रिलीज हुई फिल्म दो भाई से, जिसका एक गाना मेरा सुंदर सपना बीत गया…बेहद कामयाब हुआ. इसके बाद फिल्म शबनम का संगीत भी सुपरहिट रहा. लेकिन मुंबई की मायावी दुनिया उन्हें परेशान करने लगी और फिर 1950 में अशोक कुमार की एक फिल्म के संगीत को बीच में ही छोड़ कर फिर कोलकाता आ गये. हालांकि बाद में उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने यह ठीक नहीं किया. वे फिर मुंबई आ गये और यह सुखद रहा फिल्म संगीत के लिए. यहां आने के बाद उन्होंने अफसर, बाजी, नौजवान, जाल जैसी फिल्मों में संगीत दिया. इन फिल्मों के गाने सुपरहिट रहे. इसके बाद मुनीम जी, पेइंग गेस्ट फिल्मों के गानों ने तहलका मचा दिया.
फिर वे जुड़ गये देव आनंद के बैनर नवकेतन के साथ. फिर टैक्सी ड्राइवर, नौ दो ग्यारह, काला पानी जैसी बेहद सफल फिल्मों में धमाकेदार संगीत देकर बर्मन दा ने अलग मुकाम बना लिया. देवदास, फंटूस, हाउस नं 44, सोलहवां साल जैसी फिल्मों में भी बर्मन दा ने यादगार संगीत दिया. गुरुदत्त ने 1957 में उनकी फिल्म प्यासा में बर्मन दा को ही साइन किया और इस फिल्म के सारे गाने माइलस्टोन साबित हुए. इसके बाद बिमल रॉय की फिल्म सुजाता में इन्होंने ऐसा संगीत दिया कि इन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार के लिए चुना गया. फिर आयी फिल्म चलती का नाम गाड़ी. इसके संगीत ने धूम ही मचा दी. 1960 के दशक में बर्मन दा की सफलता चरम पर रही और बंदिनी, बंबई का बाबू, डॉ विद्या, मेरी सूरत तेरी आंखें, तेरे घर के सामने, जिद्दी, तीन देवियां जैसी सफल फिल्मों में सुपरहिट संगीत दिया.
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फिल्म गाइड में सर्वश्रेष्ठ संगीत दिया
लेकिन 1965 में देव आनंद की फिल्म गाइड आयी, जिसका संगीत तो बस एक इतिहास है. इसके सभी गाने एक से बढ़कर एक और सारे सुपर-डुपर हिट. गाइड के बाद ज्वेल थीफ में भी कमाल का संगीत दिया. हालांकि इसके बाद अपने स्वास्थ्य के कारण दो साल तक उन्होंने कोई काम नहीं किया और सिर्फ आराम किया. इस बीच उनके बेटे पंचम यानि आरडी बर्मन भी सफल संगीतकार बन चुके थे. भूत बंगला, तीसरी मंजिल, कारवां, पड़ोसन जैसी हिट फिल्मों में सुपरहिट संगीत देकर हॉटसेनशन बन चुके थे पंचम. लोगों को लगने लगा था कि अब बेटे के स्टार संगीतकार बनने के कारण बर्मन दा ने रिटायरमेंट ले लिया. लेकिन एसडी बर्मन ने इसे गलत साबित किया. 1969 में फिल्म तलाश से उनकी जबरदस्त वापसी हुई. इसके सारे गाने चार्टबस्टर साबित हुए. फिर आयी फिल्म आराधना. इस फिल्म के गीत-संगीत ने तो कमाल ही कर दिया. बर्मन दा फिर छा गये. शर्मीली, तेरे मेरे सपने, प्रेम पुजारी, जिंदगी-जिंदगी जैसी फिल्मों में हिट संगीत दिया. लेकिन उनका एक और बेस्ट अबतक बचा हुआ था.
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70 के दशक में मचाया धमाल
1973 में आयी फिल्म अभिमान. इस संगीतमय फिल्म का संगीत भी अविस्मरणीय रहा. इसके सारे गाने हिट रहे. इसकी सफलता के बाद भी वे निरंतर काम करते रहे. फिल्म मिली के एक गाने बड़ी सूनी सूनी है…दौरान उन्हें ब्रेन स्ट्रोक आया और वे कोमा में चले गये. हालांकि उस गाने का अंतिम रिहर्सल भी हो चुका था और वह गाना फिल्म का आखिरी सांग भी था. उनके अस्पताल में भर्ती होने के बाद गायक किशोर कुमार, उनके सभी असिस्टेंट ने उस गाने को रिकॉर्ड किया और अस्पताल में ही बीमार बर्मन दा को वह सांग सुनाया. किशोर कुमार ने इस गाने में अपने सारे इमोशंस उड़ेल दिये थे. क्योंकि बर्मन दा उनके लिए बेहद खास थे. एसडी बर्मन ने ही शुरुआती दिनों में किशोर दा को उनकी असली आवाज में गाने के लिए प्रेरित किया था. नहीं तो पहले वे पहले केएल सहगल की नकल किया करते थे. 31 अक्टूबर 1975 को बर्मन दा का निधन हो गया.
संगीत के जादूगर थे बर्मन दा
बर्मन दा की झोली में संगीत के जितने रंग हैं, उतने शायद ही किसी और के पास रहे हों. इसकी वजह यह है कि बर्मन दा की संगीत रचना का कोई पैटर्न नहीं था. कोई एसडी बर्मन मार्का म्यूजिक नहीं था. इसकी एक बानगी आप प्यासा के दो गाने… ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है….और…. सर जो तेरा चकराये…से कर सकते हैं. वहीं फिल्म गाइड के दो गाने को ही लें….एक है… मोसे छल किये जा…और दूसरा… क्या से क्या हो गया…ये दोनों गाने एक ही राग पर थे. लेकिन इनको सुनने से इसका जरा भी अहसास नहीं होता है. दिलचस्प बात तो यह भी है कि गाइड फिल्म में ये दोनों गाने भी साथ-साथ ही आते हैं. एक खत्म होते ही दूसरा…बर्मन दा ने 1951 फिल्म नौजवान में एक खूबसूरत गाना बनाया था…ठंडी हवाएं लहरा के आएं…यह सांग सुपरहिट रहा था. आपको पता है कि इस गाने की धुन पर अबतक 10 से अधिक गाने बन चुके हैं. कई तो सुपरहिट भी रहे. इनमें रहें न रहें हम…यही है तमन्ना…हमें और जीने की…और सागर किनारे दिल ये पुकारे…जैसे गाने शामिल हैं. यही तो जादू था बर्मन दा का.
उनके गाये सभी गाने अमर हैं, कई अवार्ड भी मिले
बर्मन दा सफल और गुणी संगीतकार होने के साथ-साथ बेजोड़ सिंगर भी थे. उन्होंने 14 हिन्दी और 13 बांग्ला गाने गाये. और ये सारे गाने ऐसे हैं जिन्हें सुनकर आप स्तब्ध रह जाएंगे. उनकी आवाज में ऐसी खनक और लोक गायिकी की झलक रहती थी कि उनके गाने सुनकर सभी मंत्रमुग्ध हो जाते थे. एक समय था कि जब सभी फिल्मकार उनसे अपनी फिल्म में गाने गंवाने के लिए मिन्नतें किया करते थे, पर बर्मन दा ने सिर्फ उन्हीं फिल्मों में अपनी आवाज दी, जहां उन्हें लगा कि फिल्म की कहानी में उनकी आवाज फिट रहेगी.
उनके गाये वैसे तो सारे गाने हिट रहे हैं, पर बंदिनी का ओ रे मांझी…, गाइड का वहां कौन है तेरा मुसाफिर… और आराधना का काहे को रोये…चाहे जो होये…आज भी गुनगुनाये जाते हैं. आराधना के इस गाने के लिए तो उन्हें बेस्ट सिंगर का नेशनल अवार्ड भी मिला था. उन्हें उनका दूसरा राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था फिल्म जिंदगी जिंदगी के संगीत के लिए. वैसे बर्मन दा को उनके बेहतरीन काम के लिए कई और पुरस्कार भी मिले. फिल्म सुजाता के संगीत के लिए उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला था. टैक्सी ड्राइवर और अभिमान फिल्म के संगीत के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला. वे पद्मश्री से भी नवाजे गये. साल 2007 में उनकी 101वीं जयंती पर भारतीय डाक विभाग ने उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया.
सचिन तेंडुलकर से क्या है संबंध
आपको मालूम है कि क्रिकेट के भगवान सचिन तेंडुलकर का नाम भी सचिन इसलिए रखा गया क्योंकि तेंडुलकर के पिता रमेश तेंडुलकर सचिव देव बर्मन के जबरदस्त फैन थे. न सिर्फ रमेश तेंडुलकर बल्कि फिल्म संगीत को पसंद करने वाले असंख्य लोग महान संगीतकार बर्मन दा के मुरीद थे, हैं और हमेशा रहेंगे.