Seraikela: सरायकेला-खरसावां जिले में मकर पर्व और टुसू पर्व के मनोहारी गीतों से क्षेत्र गुंजायमान हो रहा है. वहीं दूसरी ओर मूर्तिकार भी टुसू की प्रतिमा को अंतिम रूप देने की तैयारी कर रहे हैं. इसके साथ ही कोरोना के थर्ड वेब के कहर के बीच पर्व की तैयारियों को लेकर बाजारों में भी रौनक लौटती हुई देखी जा रही है. छोटे से बड़ा हर वर्ग अपने अपने सामर्थ्य और तरीके से मकर पर्व मनाने की तैयारी में जुटा हुआ है.
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मकर पर्व में बनते हैं 13 प्रकार के पीठा
मकर पर्व में क्षेत्र के अनुसार कहीं चूड़ा दही और खिचड़ी की तैयारी होती है. तो एक बड़े समाज में जिले भर में पीठा का सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता है. जिसमें 13 प्रकार के पीठा बनाए जाने की परंपरा रही है. परंतु समय के साथ और आधुनिकता के बीच में 13 प्रकार के पीठा याद बनते जा रहे हैं. बुजुर्ग जानकार बताते हैं कि बनाए जाने वाले 13 प्रकार के पीठों में गुड़ पीठा का सबसे महत्व का होता है. जिसे प्रत्येक घरों में मेहमाननवाजी के साथ-साथ साथी मित्रों और परिजनों के घरों तक पहुंचाने के लिए भी बनाया जाता है. इसके अलावा खपरा पीठा, मांस पीठा, दूध पीठा, डुबू पीठा, काकरा पीठा, जेंठुवा पीठा, लव पीठा, डिंगला पीठा, मोड़ा पीठा, अलसा पीठा, छिलका पीठा एवं बिरा पीठा भी बनाए जाते हैं.
मकर के आते है ढेकी का बढ़ जाता है महत्व
मकर पर्व के आते ही अपने अपने घरों में लोग ढेकी को ठीक करते हैं. लगभग लुप्त हो चुके ढेकी परंपरा का अभिन्न अंग रहे हैं. मकर पर्व के साथ ढेकी का महत्व दोगुना हो जाता है. मकर पर्व पर में विशेष रुप से तैयार किए जाने वाले चावल के आटे का पीठा, चूड़ा और चढ़ावे के लिए नए धान का चावल भी ढेकी से कूटा जाता है.
टुसू की होती है पूजा
सरस्वती एवं लक्ष्मी माता के कुंवारी स्वरूप टूसू की कुंवारियों द्वारा पूजन की परंपरा है. इसलिए इसे स्थानीय तौर पर टुसू पर्व के रूप में जाना जाता है. वैभव और सुख समृद्धि की प्रतीक माने जाने वाली टुसु की पूजा अर्चना कुंवारियों द्वारा विधि विधान के साथ की जाती है. 7 दिनों के विशेष टूसु पूजन के बाद कुंवारी कन्याएं मकर पर्व के दिन टूसु की प्रतिमा को सिर पर उठा कर घर घर पहुंचती हैं. इस दौरान मनोहरी टुसू गीतों के साथ टुसु का स्वागत और पूजा अर्चना की जाती है.
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