Seraikela (Bhagya Sagar Singh) : सरायकेला जिला मुख्यालय में चर्चित यहां के बेसन से बनने वाले लड्डू को कब से बनाया जा रहा है, इसको लेकर कभी भी हलवाइयों एवं पुराने जानकारों में मतैक्य नहीं रहा है. अधितर कहते हैं कि रियासती समय में इस क्षेत्र के हलवाइयों ने अनेक प्रकार के स्वादिष्ट मिष्टान्न गुड़ एवं चीनी से बनाना प्रारंभ किया था. उसी समय से ही यहां बेसन का लड्डू भी बनता आ रहा है. सरायकेला के लड्डू के नाम से प्रसिद्ध यह लड्डू मात्र सरायकेला ही नहीं बल्कि खरसावां में भी बनता है. साथ ही स्वाद के मामले में भी दोनों ही जगह बने लड्डुओं में कोई किसी से कम नहीं है. हालांकि जिला मुख्यालय सरायकेला में न्यायालय एवं प्रशासनिक कार्य से आने वालों की भीड़ के कारण जो बाजार इस लड्डू को सरायकेला में मिला, वो खरसावां में नहीं मिल सका. यह अलग विषय है, लेकिन उसकी भी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं है.
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यहां लड्डूओं का बाजार हमेशा रहता है सदाबहार
सरायकेला में बेसन से बने लड्डूओं का बाजार हमेशा सदाबहार रहता है. मौसम कोई भी हो व बाजार का उतार-चढ़ाव जैसा भी हो इसकी मांग पर कोई अंतर नहीं पड़ता है. कोरोना काल में भी जब सभी तरह के व्यवसाय ठप हो गए थे, उस समय भी लड्डूओं की मांग जारी रही. होटल व दुकानें बंद रहने से मांग में कमी अवश्य रही, लेकिन इस धंधे से जुड़े हलवाइयों को इस लड्डू ने कभी भी पूरी तरह कारोबार ठप होने नहीं दिया. वहीं, इस दौरान कुछ लड़कों ने ऑर्डर लेकर इसकी होम डिलीवरी शुरू कर दी थी. अगल-बगल के जिलों सहित देश के कई राज्यों से भी लोग इसका स्वाद लेने से वंचित रहना नहीं चाहते हैं. रांची, पलामू, धनबाद, बोकारो, भुवनेश्वर, राउरकेला एवं कटक जैसे महानगरों तक अपने रिश्तेदार एवं मित्रों के यहां आने-जाने वाले लोग लड्डू लेकर जाना नहीं भूलते हैं.
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प्रति किलो लड्डू की कीमत है 240 रुपये, एक किलो में आते हैं 32-33 लड्डू
सरायकेला के इस लड्डू की मौजूदा कीमत 240 रुपये प्रति किलो है एवं एक किलो में 32 से 33 लड्डू आते हैं. जलपान होटलों में ग्राहकों से प्रति लड्डू आठ रुपये लिये जाते हैं. विशेष अवसरों के लिये लड्डू के स्वाद एवं पौष्टिकता बढ़ाने की चाहत हो तो कुछ अतिरिक्त राशि लेकर उसमें काजू, किशमिश एवं शुद्ध गाय का घी भी मिलाया जाता है. लड्डू के आकार भी छोटे एवं बड़े कराए जा सकते हैं. इस लड्डू की मांग हर समय एक समान रहने का मुख्य कारण है कि अन्य मिष्ठान्नों की अपेक्षा इसकी कीमत में कमी के साथ ही विशेष स्वाद एवं कुछ दिनों तक इस लड्डू को रखा भी जा सकता है. हालांकि यह शिकायत भी यदा-कदा आती रहती है कि कुछ हलवाई लड्डू के क्वालिटी को पूर्व की तरह रखने में असफल हो रहे हैं. एक और विशेष बात है कि इस लड्डू को सरायकेला एवं खरसावां क्षेत्र से बाहर बनाने में हलवाई हमेशा असफल रहे हैं. अन्यथा अगल-बगल के महानगरों में इस लड्डू की दुकान खोल कर वे बैठ जाते. सम्भवतः यहां के मौसम एवं पानी के साथ लड्डू बनाने की प्रक्रिया का कोई जुड़ाव हो.
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सामान्य दिनों में प्रतिदिन सात से आठ क्विंटल लड्डू की होती है बिक्री
सरायकेला के हर जलपान की दुकानों में यह लड्डू सजी हुई रहती है. लेकिन चार-पांच ही ऐसे दुकान हैं, जहां दिन भर ग्राहकों के आने का सिलसिला जारी रहता है. सही दुकानदारी की बात दुकानदार कहने से कतराते हैं. आकलन अनुसार प्रतिदिन पांच से छह क्विंटल लड्डू बिकते हैं. पर्व-त्योहार एवं शादी के सीजन में भी इसकी मांग दोगुनी से तिगुनी तक हो जाती है. साथ ही जन्मदिन, शादी, पूजा जैसे मांगलिक कार्य से लेकर श्राद्ध कर्म में भी अन्य विविध मिष्ठान्नों के मध्य इस लड्डू की भी उपस्थिति रहती है. राजनैतिक दल वाले भी अपनी किसी सफलता पर यही लड्डू बांटते हैं. मेहमान के यहां जाना हो तो लड्डू का पैकेट अवश्य रहता है या कोई मेहमान आए तो वापसी में इसका पैकेट लेकर जाना नहीं भूलते. सरकारी कर्मियों का प्रशिक्षण हो या कोई परीक्षा वहां से निपट कर प्रशिक्षु एवं परीक्षार्थी लड्डू दुकान की ओर दौड़ लगाते देखे जाते हैं.
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कैसे बनाई जाती है लड्डू
हलवाइयों के अनुसार बेसन को पानी से गूंथ कर लोई बना लिया जाता है. हाथ से चलने वाली एक विशेष मशीन को डालडा एवं रिफाइन से खौलते कड़ाही के ऊपर सेट किया जाता है. मशीन के अंदर बने खाने में बेसन की लोई देकर मशीन से दबाव दिया जाता है. मशीन के नीचे लगे प्लेट के छोटे-छोटे छेदों से मोटे धागे के तर्ज पर गीला बेसन कड़ाही के उबलते तेल में छन कर सेवई बन जाता है. इस सेवई में चीनी की बनी चासनी डाल कर अच्छी तरह से मिला दिया जाता है. साथ ही इसी समय इलायची के चूर्ण एवं ऑर्डर अनुसार अन्य वस्तुएं मिला दी जाती है. अब इस तैयार चासनी से सने बेसन के सेवई को हाथ से ही लड्डू का आकार दिया जाता है. इसकी कोई मशीन अभी तक यहां ईजाद नहीं की जा सकी है.
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