Vinit Upadhyay
Ranchi: रांची में सेना की जमीन की खरीद-बिक्री में किसका और क्या रोल है, इसकी जांच ईडी दो दिनों से कर रही है. अब तक इस पूरे खेल में शामिल किरदारों से एजेंसी ने जो पूछताछ की है उसमें कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. इस पूरे प्रकरण में किसकी क्या भूमिका है, यह शुभम संदेश आपको बता रहा है. भारतीय सेना के कब्जे में शहर के बीचोबीच स्थित एक प्रमुख महंगी भूमि है. रिकॉर्ड के मुताबिक, करीब 4 एकड़ 55 डिसमिल का यह प्लॉट एमएस प्लॉट संख्या 557 के रूप में दर्ज है. फिलहाल यह भूमि सेना के कब्जे में है. 90 साल से सेना के कब्जे में होने के बाद अचानक वर्ष 2021 में प्रदीप बागची की इंट्री होती है. वह इस जमीन को अपना बताते हुए जगतबंधु टी एस्टेट के निदेशक दिलीप कुमार घोष को बेच देते हैं.
1. प्रदीप बागची
जिस बेशकीमती जमीन की रजिस्ट्री हुई है, उसका मालिक होने का दावा प्रदीप बागची ने ही किया है. इसके लिए उन्होंने कोलकाता की एक रजिस्टर डीड को आधार बनाया है. जिसका डीड संख्या 4369 है. रिकॉर्ड्स के अनुसार, यह रजिस्ट्री वर्ष 1932 में हुई थी, लेकिन यह डीड सही है या नहीं इसपर अब संदेह और गहरा होता जा रहा है.
2. जगतबंधु टी स्टेट
सेना के कब्जे वाली जिस जमीन की बिक्री हुई, उसका खरीदार जगतबंधु टी स्टेट कम्पनी के निदेशक दिलीप घोष हैं. जमीन की रजिस्ट्री में करोड़ों रुपये का खर्च हुआ. प्रदीप बागची को भी पैसों का भुगतान इसी कंपनी ने किया है. चर्चा है कि 10 से ज्यादा चेक के माध्यम से पैसों का लेनदेन हुआ है.
3. अमित अग्रवाल
जिस जगतबंधु टी स्टेट के डायरेक्टर दिलीप घोष ने सेना के कब्जे वाली जमीन की रजिस्ट्री करवाई है, उससे अमित अग्रवाल के बेहद मधुर संबंध हैं. कहा जा रहा है कि अमित ने जमीन की रजिस्ट्री किसी भी कीमत पर करवाने के लिए हर संभव मदद की.
4. विष्णु अग्रवाल
ईडी के सूत्रों की मानें तो झारखंड के बड़े रियल स्टेट कारोबारी विष्णु अग्रवाल और अमित अग्रवाल मिलकर इस जमीन पर रेसिडेंशियल अपार्टमेंट और बैंक्वेट हॉल बना कर व्यवसायिक उपयोग करना चाहते थे. विष्णु अग्रवाल ने और भी कई भूमि में विवादस्पद रूप से खरीदारी की है. इसमें सेना की भी जमीन है.
5. बड़गाईं सीओ
जयंत कर्नाड ने वर्ष 2019 में जब इस भूमि को एक दर्जन से ज्यादा लोगों को बेची. तब तत्कालीन बड़गाईं सीओ शैलेश कुमार ने यह कहकर म्यूटेशन के लिए दिये गए आवेदन को खारिज कर दिया कि यह भूमि सेना के कब्जे में है. 2021 में जब प्रदीप बागची की रजिस्ट्री से पहले जांच प्रतिवेदन मांगा गया तो बड़गाईं के सीओ मनोज कुमार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट के आलोक में प्रदीप बागची का पहला दावा बनता है. बड़गाईं सीओ मनोज कुमार ने रांची के तत्कालीन डीसी को ज्ञापन संख्या 847 (2) के माध्यम से अपनी रिपोर्ट भेजी थी.
6. तत्कालीन रजिस्ट्रार
इस विवादित भूमि की रजिस्ट्री 27 सितंबर को रांची रजिस्ट्री ऑफिस में हुई थी. तब अवर निबंधक के पद पर घासीराम पिंगुआ कार्यरत थे. उन्होंने ही इस जमीन की रजिस्ट्री की थी, लेकिन उन्होंने इस रजिस्ट्री डीड को देखने पर एक नोटिंग भी की थी. उन्हें इस बात का अंदेशा था कि भविष्य में यह रजिस्ट्री उन्हें परेशानी में डाल सकती है. तत्कालीन अवर निबंधक घासीराम पिंगुआ ने रजिस्टर्ड डीड में नोटिंग की थीः उपायुक्त सह जिला दंडाधिकारी को संबोधित अंचल अधिकारी बड़गाईं के ज्ञापन (25/9/2021) के आलोक में निबंधन किया गया.
7. तत्कालीन रांची डीसी
इस जमीन की रजिस्ट्री के बाद से ही पूरे शहर के जमीन कारोबारियों और कुछ अफसरों में इस बात की चर्चा जोरों पर रही कि प्रदीप बागची द्वारा दिलीप घोष (जगत बंधु टी स्टेट) को की गई रजिस्ट्री में तत्कालीन रांची डीसी छवि रंजन की भूमिका अहम रही थी. कहा गया कि अगर जिला अवर निबंधक ने गलत ढंग से प्रस्तुत कागजातों के आधार पर रजिस्ट्री कर भी दी तो तत्कालीन डीसी चुप क्यों थे? उन्होंने तत्कालीन रजिस्ट्रार के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?