बोले आईएमए अध्यक्ष डॉ. अरुण कुमार सिंह, यहां पर मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट नहीं, इसी लिए वैकेंसी निकलने पर भी आशा के अनुरूप चिकित्सक नहीं आते
Ranchi: आईएमए झारखंड ने रविवार को करमटोली स्थिति आईएमए भवन में प्रेसवार्ता कर राज्य सरकार से अपने विभिन्न मांगों पर जल्द से जल्द अंतिम फैसला लेने का आग्रह किया है. आईएमए झारखंड के अध्यक्ष डॉ. अरुण कुमार सिंह ने इस दौरान कहा कि मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट को लेकर राज्य सरकार से सहयोग की उम्मीद थी. लेकिन सरकार ने सिर्फ आश्वासन देने का काम किया, सालों बाद भी अबतक कोई निर्णय नही लिया जा सका. मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट को लेकर राज्य में बार-बार किसी न किसी कारण से अड़ंगा लगाया जा रहा है. डॉक्टर प्रताड़ित हो रहे हैं. अस्पतालों में मारपीट, तोड़फोड़ की घटनाएं हो रही हैं. ऐसा लगता है कि जानबूझ कर इस एक्ट को लेकर विलंब किया जा रहा है. वास्तव में राज्य में इसके लागू होने से डॉक्टरों के साथ-साथ मरीजों को भी लाभ होगा. मौके पर झारखंड आईएमए के सचिव डॉ प्रदीप कुमार सिंह, कोषाध्यक्ष डॉ बीपी कश्यप के अलावा डॉ अजय कुमार सिंह, डॉ अभिषेक रामधीन, डॉ मृत्युंजय सिंह सहित अलग अलग जिलों से आए कई डॉक्टर भी उपस्थित थे.
इसे पढ़ें- भाजपा ने की बैठक, बाबूलाल के संकल्प यात्रा को सफल बनाने का निर्देश समेत कोडरमा की तीन खबरें
एक्ट नहीं होने से डॉक्टरों में भय
डॉ अरुण कुमार सिंह ने कहा कि झारखंड विधानसभा के पटल पर मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट लाया गया था. पर कुछ अड़ंगा लगा कर इसे प्रवर समिति के पास भेज दिया गया है. इस कारण लागू होने में विलंब बना हुआ है. वास्तव में इस पर जल्द फैसला लेना चाहिए था. राज्य में डॉक्टरों के लिए वेकेंसी निकलती है पर आशा के मुताबिक डॉक्टर नहीं आते. इसका कारण मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट का यहां नहीं होना भी अहम है. डॉ अरुण सिंह के मुताबिक आंदोलन आखिरी रास्ता है. हम ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहते जिससे स्वास्थ्य सेवाओं पर असर हो, ऐसे में सरकार उनके मसलों पर जल्द निर्णय ले.
इसे भी पढ़ें- राज्य स्तरीय नेहरू कप हाॅकी प्रतियोगिता : गुमला, सिमडेगा और रांची की टीम चैंपियन
क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट भी जरूरी
डॉ प्रदीप कुमार सिंह ने सरकार से मांग करते कहा कि राज्य में क्लिनिकल इस्टिब्लिशमेंट एक्ट को भी जल्द लागू किए जाने की जरूरत है. इसे और व्यावहारिक बनाना होगा. अभी जो स्थिति है, उसमें चुनिंदा बड़े अस्पतालों के लिहाज से तो यह ठीक है पर सुदूरवर्ती क्षेत्रों के छोटे अस्पतालों, क्लीनिकों के लिए इससे बड़ी दिक्कत है. कई राज्यों में यह एक्ट लागू हो चुका है. अभी तो अपने यहां सिविल सर्जनों का पावर भी डीसी को दे दिया गया है. सरकार को सर्जनों पर भरोसा रखना चाहिए. ऐसा नहीं होने से अस्पतालों, क्लीनिकों के लिए आवेदन डीसी कार्यालय में लंबे समय से पड़े रह जा रहे हैं. इस एक्ट को धरातल पर उतारे जाने में सरकार गंभीरता दिखाए.