Rajnish Prasad
12 मई 1978 को डाल्टनगंज के एक छोटे से कस्बे में जन्मी मेघा श्रीराम डाल्टन ने आज बॉलीवुड में एक सफल सिंगर के तौर पर पहचान बनाई है. मेघा का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ. माता प्रमिला देवी गृहणी और पिता उमाशंकर सिंह छोटे से व्यवसायी थे. माता- पिता साक्षर थे. मेघा डाल्टन की मां प्रमिला देवी को संगीत से बहुत लगाव था. उन्होंने अपने सपने को सच किया बच्चों को संगीत सिखाकर, मेघा का ऐसा कहना है. मां प्रमिला देवी मेघा को गीत- संगीत सिखाना चाहती थी, वहीं मेघा को कुछ और ही पसंद था. मेघा जज बनना चाहती थी. मेघा डाल्टन 12वीं में फेल हो गई, जिससे काफी आहत हुई. लेकिन अंत में मेघा सिंगर बनी. बॉलीवुड में पहचान बनाने के बाद भी मेघा का झारखंड के लोक गीतों के प्रति काफी लगाव है. आज गुजरात में कुडुख भाषा के गीतों को वहां के लोगों को सिखा रही है. मेघा ने संगीत में प्रारंभिक शिक्षा स्वर्गीय अली अहमद जी से ली. मेघा को भारत सरकार की तरफ से स्कॉलरशिप मिला और उसने उतर प्रदेश के लोक संगीत में रिसर्च भी किया है.
मेघा को श्रीराम डाल्टन से हुआ प्यार
मेघा को डाल्टनगंज के रहने वाले श्रीराम डाल्टन से प्यार हो गया. श्रीराम डाल्टन अपनी पढ़ई के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय चले गये. मेघा डाल्टन भी उनके पीछे संगीत की पढ़ाई के लिए बीएचयू चली गई. बीएचयू से म्यूजिक में बैचलर की. वहीं कोरस में गाना चालू कर दी. उसे उस वक्त कोरस में गाने का ₹400 मिलता था, जिससे वह अपना खर्च निकालती थी.
बनारस का सफर मुंबई पहुंच गया
मेघा को सबसे पहला ब्रेक मनीष झा की फिल्म अनवर में मिला. पर उस गीत को उतनी सफलता नहीं मिली. बाद में हताशा हुई. इस वजह से हिंदी नाटक की तरफ रुझान हुआ और फिर मेघा डाल्टन ने मुंबई के बेहतरीन थिएटर ग्रुप के साथ काम किया. इसी दौरान कुछ और फिल्मों में भी गाना गाया, जिसमें अनुराग कश्यप की फिल्म “दैट गर्ल इन यलो बूट” फिल्म भी है
मुंबई जैसे शहर में पहचान बनाने का था डर
मेघा श्रीराम डाल्टन को हमेशा लगता था कि मुंबई जैसे बड़े महानगर में मेरी पहचान कैसे बनेगी और आखिर में किस तरह के गीतों को गाऊंगी. एमटीवी कोक स्टूडियो में गाने का मौका मिला, जिसमें मेघा को इंडस्ट्री के सिंगर कंपोजर शंकर महादेवन के साथ मंच शेयर करने का मौका मिला. उन्हें लगा कि वह इस मंच पर भी वह फेल हो जायेंगी, फिर उन्होंने अपने अध्यात्मिक गुरु डॉ. दाईसाकू इकेदा की बात याद की. फिर उन्होंने अपने विद्यालय मिशन स्कूल डाल्टनगंज में सीखा हुआ गीत गाया, जो कि पंचपरगनिया में था. इसी मंच पर मेघा डाल्टन को पता चला कि उन्हें तो अपने झारखंड की लोक संगीत को गाना है. तब से लेकर आज तक मेघा श्रीराम डाल्टन अपने हर एक मंच पर आदिवासी गीतों को गाती हैं.
मेघा को प्राकृतिक गीतों से लगाव
मेघा का कहना है कि इन प्राकृतिक गीतों ने मेरे संगीत को एक नई धार दे दी. अभी पूरे भारत में गांधी और आदिवासी गीतों की प्रस्तुति करती हैं, जिसका नाम है जोहार गांधीबाबा.
दो फिल्में की प्रोड्यूस
मेघा श्रीराम डाल्टन ने दो फिल्मों को प्रोड्यूस की है. “द लास्ट बहरुपिया” नाम वाली फिल्म को नेशनल अवॉर्ड भी मिला है. हाल में रिलीज फिल्म स्प्रिंग-थंडर जिसको साउथ एशियन फेस्टिवल सेंफ्रांसिस्को द्वारा बेस्ट डायरेक्टर के लिए नवाजा गया है.
उपलब्धि
- मेघा श्रीराम ने डाल्टन अजय देवगन की फिल्म शिवाय के लिए टाइटल ट्रैक भी गाया है.
- सारेगामापा लिटिल चैंप्स भोजपुरी को जज किया है.
- आने वाले समय में उनके आगामी प्रोजेक्ट जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है 100 गानों का आर्काइवल करना है, जिसकी शुरुआत उन्होंने कर दी है.
—कल पढ़ें दूसरी किस्त
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