Washington : अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के पर्सीवरेंस मार्स रोवर ने भारतीय समय के अनुसार रात 2 बजकर 25 मिनट पर धरती से 29.25 करोड़ मील दूर लाल ग्रह की सतह पर सफल लैंडिंग कर ली . जानकारी के अनुसार यह मंगल की सबसे खतरनाक जगह जजीरो क्रेटर (Jezero Crater) पर उतर गया.
वैज्ञानिक मानते हैं कि इस जगह पर कभी पानी हुआ करता था. पर्सीवरेंस रोवर लाल ग्रह से चट्टानों के नमूने भी लेकर आयेगा. पर्सीवरेंस रोवर के साथ एक हेलिकॉप्टर भी गया है. इसका नाम इंजीन्यूटी रखा गया है. बता दें कि यह नाम इसे भारतीय मूल की वनीजा रूपाणी(18) ने दिया है.
The parachute has been deployed! @NASAPersevere is on her way to complete her #CountdownToMars: pic.twitter.com/i29Wb4rYlo
— NASA (@NASA) February 18, 2021
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7 महीने पहले इस खास रोवर को नासा ने धरती से भेजा था
यह उपलब्धि भारतीय-अमेरिकी मूल की वैज्ञानिक डॉ स्वाति मोहन की लीडरशिप में हासिल हुई. रोवर ने नासा की पहली तस्वीर भेजी है. बता दें कि 7 महीने पहले इस खास रोवर को नासा ने धरती से भेजा था, जिसकी अब सफल लैंडिंग हुई है. रोवर के लाल ग्रह की सतह पर पहुंचने के तुरंत बाद नासा ने पहली तस्वीर भी जारी कर दी.
नासा की जेट प्रोपल्सन लेबोटरी के इंजीनियरों ने इस खबर की पुष्टि की. बताया कि मार्स-2020 पर्सीवरेंस मिशन सफलतापूर्वक मंगल पर उतर गया. इसे बेहद महत्वाकांक्षी मिशन करार दिया गया है. रोवर को किसी ग्रह की सतह पर उतारना अंतरिक्ष विज्ञान का सबसे जोखिमभरा कार्य माना जाता है.
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मंगल ग्रह के मौसम और जलवायु का अध्ययन किया जायेगा
-नासा के अनुसार पर्सीवरेंस मार्स रोवर और इंजीन्यूटी हेलिकॉप्टर मंगल पर कार्बन डाई-ऑक्साइड से ऑक्सीजन बनाने का काम करेंगे, इसके अलावा मंगल की जमीन के नीचे पानी की खोज और जीवन के अंश तलाशेंगे. इसका मार्स एनवायर्नमेंटल डायनामिक्स ऐनालाइजर (MEDA) मंगल ग्रह के मौसम और जलवायु का अध्ययन करेगा.
नासा के इस मार्स मिशन का नाम पर्सीवरेंस मार्स रोवर और इंजीन्यूटी हेलिकॉप्टर है. पर्सीवरेंस रोवर 1000 किलोग्राम वजनी है, जो परमाणु ऊर्जा से चलेगा. ऐसा पहली बार हो रहा है कि किसी रोवर में प्लूटोनियम को ईंधन के तौर पर उपयोग किया जा रहा है।. रोवर 10 साल तक मंगल पर रहेगा. यह अपने साथ 7 फीट का रोबोटिक आर्म, 23 कैमरे और एक ड्रिल मशीन लेकर गया है. इंजीन्यूटी हेलिकॉप्टर का वजन 2 किलोग्राम है.
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ऑपरेशन को लीड किया भारतीय मूल की इंजीनियर डॉ स्वाति मोहन ने
डॉ. स्वाति मोहन भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक हैं, जो विकास प्रक्रिया के दौरान प्रमुख सिस्टम इंजीनियर होने के अलावा, टीम की देखभाल भी करती हैं और गाइडेंस, नेविगेशन और कंट्रोल (GN & C) के लिए मिशन कंट्रोल स्टाफिंग का शेड्यूल करती हैं. नासा की वैज्ञानिक डॉ. स्वाति तब सिर्फ एक साल की थीं जब वह भारत से अमेरिका गयी थी. उन्होंने अपना ज्यादातर बचपन उत्तरी वर्जीनिया-वाशिंगटन डीसी मेट्रो क्षेत्र में बिताया.
स्वाति जब मात्र नौ साल की थी तब पहली बार उन्होंने ‘स्टार ट्रेक’ देखी थी. वह ब्रह्मांड के नये क्षेत्रों के सुंदर चित्रण से काफी हैरान थीं. इसके तुरंत बाद उन्होंने महसूस किया कि वह ब्रह्मांड में नये और सुंदर स्थान ढूंढना चाहती हैं. 16 वर्ष की उम्र तक स्वाति बाल रोग विशेषज्ञ बनना चाहती थीं.
स्वाति ने कॉर्नेल विश्वविद्यालय से मैकेनिकल और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की और एयरोनॉटिक्स/एस्ट्रोनॉटिक्स में एमआईटी से एमएस और पीएचडी पूरी की. वे सीए में नासा के जेट प्रोपल्शन प्रयोगशाला में शुरुआत से ही मार्स रोवर मिशन की सदस्य रही हैं, इसके साथ ही स्वाति नासा के विभिन्न महत्वपूर्ण मिशनों का हिस्सा भी रही हैं. भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक ने कैसिनी और ग्रेल परियोजनाओं पर भी काम किया है.