NewDelhi : मस्जिदों में इमामों को पारिश्रमिक देने का उच्चतम न्यायालय का 1993 का आदेश संविधान का उल्लंघन है और यह गलत उदाहरण पेश करने के अलावा अनावश्यक राजनीतिक विवाद एवं सामाजिक असामंजस्य का कारण बन गया है. केंद्रीय सूचना आयोग ने यह कहा है. खबर है कि सूचना का अधिकार (आरटीआई) आवेदन के तहत एक आरटीआई कार्यकर्ता ने दिल्ली सरकार और दिल्ली वक्फ बोर्ड द्वारा इमामों को दिये जाने वाले वेतन की जानकारी मांगी थी.
करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल किसी विशेष धर्म के पक्ष में नहीं किया जायेगा
इस आवेदन पर सुनवाई के क्रम में सूचना आयुक्त उदय माहूरकर ने टिप्पणी की कि न्यायालय का यह आदेश उन संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है, जिनमें कहा गया है कि करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल किसी विशेष धर्म के पक्ष में नहीं किया जायेगा. जान लें कि न्यायालय ने 1993 में अखिल भारतीय इमाम संगठन की एक याचिका पर वक्फ बोर्ड को उसके द्वारा प्रबंधित मस्जिदों में इमामों को पारिश्रमिक देने का निर्देश दिया था.
इसे भी पढ़ें : देश कभी नहीं भूलेगा 26/11 का मुंबई हमला, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री ने दी श्रद्धांजलि
आदेश की प्रति केंद्रीय कानून मंत्री को भेजी जाये : सूचना आयुक्त
सूचना आयुक्त ने निर्देश दिया कि उनके आदेश की प्रति केंद्रीय कानून मंत्री को भेजी जाये और संविधान के अनुच्छेदों 25 से 28 के प्रावधानों को अक्षरश: पालन सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाये जायें, ताकि केंद्र एवं राज्यों दोनों में सभी धर्मों के पुजारियों, पादरियों एवं अन्य धर्माचार्यों को सरकारी खजाने से मासिक पारिश्रमिक देने के मामले और अन्य मामलों में समानता रखी जा सके. माहूरकर ने कहा, मस्जिदों में केवल इमामों और मुअज्जिनों को सरकारी खजाने से विशेष वित्तीय लाभ देने के दरवाजे खोलने वाले उच्चतम न्यायालय के अखिल भारतीय इमाम संगठन बनाम भारत सरकार’ के मामले में 13 मई, 1993 को सुनाये गये फैसले की बात हम कर रहे हैं.
इसे भी पढ़ें : Shraddha Murder Case: आफताब के फ्लैट में आने वाली लड़की की हुई पहचान, पुलिस ने की पूछताछ
शीर्ष अदालत का आदेश संविधान के अनुच्छेद 27 का उल्लंघन
आयोग को लगता है कि देश की शीर्ष अदालत ने इस आदेश को पारित करके संविधान के प्रावधानों, खासकर अनुच्छेद 27 का उल्लंघन किया, जिसमें कहा गया है कि करदाताओं का धन किसी एक विशेष धर्म के पक्ष में इस्तेमाल नहीं किया जायेगा. सूचना आयुक्त ने कहा, आयोग का कहना है कि उक्त आदेश देश में गलत मिसाल पेश करता है और यह अनावश्यक राजनीतिक विवाद और सामाजिक असामंजस्य का कारण बन गया है. उन्होंने दिल्ली वक्फ बोर्ड को निर्देश दिया कि आवेदन का जवाब हासिल करने के दौरान आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल का जो समय नष्ट हुआ और उनके संसाधनों का जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई के लिए बोर्ड उन्हें 25,000 रुपये का मुआवजा दे.
इसे भी पढ़ें : ऋचा चड्डा की मुसीबत बढ़ेगी, मध्य प्रदेश के गृहमंत्री ने कहा, टुकड़े-टुकड़े वाली मानसिकता जग जाहिर, एफआईआर दर्ज करेंगे
भारत ने सभी धर्मों को समान अधिकार की गांरटी देने वाला संविधान चुना
अग्रवाल को उनके आवेदन का संतोषजनक उत्तर नहीं मिल पाया था. माहूरकर ने कहा, जब सरकार द्वारा मुस्लिम समुदाय को विशेष धार्मिक लाभ देने की बात आती है तो इतिहास को देखना आवश्यक है. भारतीय मुसलमानों के एक वर्ग की धार्मिक आधार पर भारत का विभाजन करने की मांग के कारण एक धार्मिक (इस्लामी) राष्ट्र पाकिस्तान का जन्म हुआ था. पाकिस्तान के एक धार्मिक (इस्लामी) राष्ट्र होने के बावजूद, भारत ने सभी धर्मों को समान अधिकार की गांरटी देने वाला संविधान चुना.
सूचना आयुक्त ने कहा कि इसलिए केवल मस्जिदों में इमामों और अन्य लोगों को पारिश्रमिक देना ‘न केवल हिंदू समुदाय और अन्य गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक धर्मों के सदस्यों के साथ विश्वासघात के बराबर है, बल्कि यह भारतीय मुसलमानों के एक वर्ग के बीच अखिल-इस्लामी प्रवृत्ति को भी बढ़ावा देता है जो पहले से ही नजर आ रही है.
दिल्ली वक्फ बोर्ड को दिल्ली सरकार से 62 करोड़ वार्षिक अनुदान मिलता है
उन्होंने कहा कि दिल्ली वक्फ बोर्ड (डीडब्ल्यूबी) को दिल्ली सरकार से लगभग 62 करोड़ रुपये का वार्षिक अनुदान मिलता है, जबकि स्वतंत्र स्रोतों से उसकी अपनी मासिक आय लगभग 30 लाख रुपये है. महूरकर ने कहा, ‘‘दिल्ली में मस्जिदों के इमामों और मुअज्जिनों को दिये जा रहे 18,000 रुपये और 16,000 रुपये के मासिक मानदेय का भुगतान दिल्ली सरकार करदाताओं के पैसे से कर रही है, जो याचिकाकर्ता द्वारा उद्धृत उस उदाहरण के विपरीत है, जिसमें एक हिंदू मंदिर के पुजारी को उक्त मंदिर को नियंत्रित करने वाले न्यास से महज 2,000 रुपये प्रतिमाह मिल रहे हैं.
देश में बहुसंख्यक समुदाय को भी सुरक्षा का अधिकार है
उन्होंने कहा कि कुछ लोगों द्वारा धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के नाम पर इस तरह के कदमों को उचित ठहराये जाने से यह सवाल उठता है कि अगर किसी विशेष धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय को सुरक्षा का अधिकार है, तो कई धर्मों वाले ऐसे देश में बहुसंख्यक समुदाय को भी सुरक्षा का अधिकार है, जहां यह अनिवार्य है कि अंतर-धार्मिक सद्भाव और राष्ट्र की एकता के हित में सभी धर्मों के सदस्यों के अधिकारों की समान रूप से रक्षा की जाये. माहूरकर ने दिल्ली वक्फ बोर्ड और दिल्ली के मुख्यमंत्री कार्यालय को अग्रवाल के आरटीआई आवेदन पर जवाब देने का निर्देश दिया.