Anand Kumar
ऑफिस से घर जाते समय चाय के ठेले पर मुन्ना भाई मिल गये. चर्चा होने लगी… बात निकली तो एक खबर पर जा ठहरी. कोई दारोगा जी रिश्वत लेते धरे गये थे. वैसे तो यह कोई खास बात नहीं थी, मगर मुन्ना भाई ने उनके बारे में मजेदार बात यह खोज निकाली थी कि दारोगा जी पहले एंटी करप्शन ब्यूरो में सिपाही थे. वहां उन्होंने कई घूसखोरों को धर कर हवालात की हवा खिलाई थी. लेकिन इस बार खिलाड़ी खुद अपने खेल में ही गच्चा खा गया. बात रिश्वत की निकली, तो मुन्ना भाई ने छूटते ही कहा कि लल्ला इस मामले में तो कोई हमारा हाथ नहीं पकड़ सकता… दुनिया भी इस बात को मानती है वरना ऐसे ही थोड़े हमें नंबर वन भ्रष्टाचारी देश का दर्जा दिया है.
हम तो सदा-सर्वदा से पराया माल अपना समझने वाले लोग हैं. जनता सरकारी माल को अपना समझकर लूट ले जाती है और सरकारी सेवक पब्लिक की पॉकेट को अपना मान कर माल निकलवा लेता है.
हमने कहा- मुन्ना भाई हम इतने भी भ्रष्ट नहीं हैं, जितना आप बता रहे हैं. तो मुन्ना बोले – लल्ला हम तो कम बता रहे हैं, हमारे तो घर से ही रिश्वत का धंधा शुरू हो जाता है. बच्चे को चॉकलेट देकर पांव दबवा लिया, थोड़ा पैसा देकर दूसरे के ड्राइवर को बाजार घुमाने के लिए फांस लिया. कुछ पैसों का लालच देकर पड़ोस की कामवाली से सफाई करा ली… ऐसे काम तो रोज ही करते हैं हमलोग… मगर वो रिश्वत थोड़े ना हुई मुन्ना भाई, हमने प्रतिवाद किया.. तो मुन्ना बोले लल्ला तुम तो रहने ही दो. जिस देश में सरकारी नौकरीवाले दामाद का रेट ऊपर की कमाई देखकर तय होता हो, वहां रिश्वतखोरी भ्रष्टाचार कैसे हो सकती है. यह तो शुद्ध देसी भारतीय आचार-व्यवहार है… लेकिन मुन्ना भाई, यह तो शर्मिंदा होनेवाली बात है.
दुनिया में हमारी बदनामी हो रही है.. हमने बात काटी, तो मुन्ना बोले – लल्ला तुम गधे के गधे ही रहोगे. अमां ये बाहरवाले क्या जानें हमारा आपसी शिष्टाचार. वे तो सबके सब ठहरे मशीनी मानव. किसी का काम आया और कर दिया. पता ही नहीं चला किसका काम था, किसने किया… ऐसे बोरियत भरे रूटीन काम में क्या रक्खा है… और हमारे यहां क्या होता है? एक काम के लिए दस बार दौड़ाना क्या सही है?
हमने पूछा.. मुन्ना चाय सुड़कते हुए बोले, अरे मियां तुम जिसे दौड़ाना कहते हो, दरअसल वह इंसानी रिश्ता बनाने की कवायद है. मान लो तुम सरकारी बाबू हो और कोई आदमी काम लेकर तुम्हारे पास आता है. अब आया है, तो बैठेगा. तुम्हारा समय लेगा. काम बतायेगा. अगर तुम फौरन उसका काम कर देते हो, तो वह तुम्हारी कदर नहीं करेगा.. उसे लगेगा कि यह तो टुच्चा सा काम था.. सूखा सा ‘थैंक्यू’ भी मिल जाये तो गनीमत समझो.. लेकिन अगर तुम उसे थोड़ी देर इंतजार कराओ… फिर मिलने बुलाओ और बताओ कि उसका काम कितना मुश्किल है… लेकिन फिर भी तुम कोशिश करोगे, तो वह तुम्हारी इंसानियत का कायल होगा कि तुमने उसके लिए सोचा… फिर तुम उसे काम में कुछ पेंच बताओगे.. कुछ दिन बाद बुलाओगे. अगली बार तुम उसे बताओगे कि बड़े साहब ने कुछ अड़ंगा लगाया है.
लेकिन तुम साहब को मना लोगे. वह तुम्हें बाहर चाय पिलाने ले जायेगा. पकौड़े भी खिलायेगा. फिर चाय-पकौड़े के बहाने एक रिश्ता बन जायेगा.
मुन्ना बोलते जा रहे थे. कुछ मुलाकातों के बाद तुम दोनों एक-दूसरे के घर-परिवार, दुःख-सुख तक जान जाओगे. फिर एक दिन वह खुद तुम्हें सामने से ऑफर देगा कहेगा कि सर, बड़े साहब को कुछ दे दिलाकर काम करवा दीजिए. फिर तुम बड़े साहब का, पियून का, क्लर्क का इसका-उसका सबका हिस्सा जोड़ कर एक रकम बताओगे और कहोगे कि अब आपसे इतने दिनों का संबंध है.. इसलिए मेरा इसमें कुछ नहीं है.. फिर थोड़े मोलतोल के बाद मामला तय हो जायेगा. वो पैसे देगा, तुम काम कर दोगे. और वो तुम्हारे अहसानों तले दब जायेगा…
मिठाई लेकर घर आयेगा. तुम माल और मिठाई दोनों अंदर कर लोगे. दोनों बमबम. आगे के लिए दुआ-सलाम का रास्ता भी खुल जायेगा… अब इतने खूबसूरत रिश्ते को तुम रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार जैसा घटिया नाम देकर इंसानी रिश्ते को जलील तो न करो लल्ला. यह कहते-कहते मुन्ना भाई ने गुटखे की पुड़िया मुंह में उड़ेल ली. मैं समझ गया कि अब उनका मुंह तभी खुलेगा, जब ज्ञान की इससे भी कोई बड़ी भारी बात उनके दिमाग में आयेगी. मैं उन्हें प्रणाम कर घर को चल पड़ा. बचपन से सीखी आदर्शों की बात बेमानी लग रही थी… मैं समझ चुका था कि घूस वह घास है, जिससे अगर सरकारी घोड़ा दोस्ती कर लेगा तो खायेगा क्या…