NewDelhi : नागेंद्र रामचंद्र नाइक को कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश तीसरी बार भेजने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने केंद्रीय कानून मंत्रालय से कहा है कि कॉलेजियम के फैसले की फिर से पुष्टि होने के बाद सरकार नियुक्ति अधिसूचित करने के लिए बाध्य है. हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम, जिसमें देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस अजॉय रस्तोगी और जस्टिस संजय खन्ना शामिल हैं, ने मंगलवार को कानून मंत्रालय को उसके द्वारा दोहराये गये नामों के मुद्दे पर कानूनी स्थिति और न्यायिक मिसालों के बारे में एक विस्तृत नोट भेजा है.
अदालत ने 10 जनवरी को पांच उच्च न्यायालयों के लिए आठ अन्य नियुक्तियों की सिफारिश की है
सुप्रीम कोर्ट का यह नोट न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर न्यायपालिका और सरकार के बीच जारी गतिरोध के बीच आया है. अदालत ने नाइक के नाम को दोहराने के अलावा 10 जनवरी को पांच उच्च न्यायालयों के लिए आठ अन्य नियुक्तियों की सिफारिश की है.इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, इनमें न्यायिक अधिकारी अरिबम गुनेश्वर शर्मा और गोलमेई गैफुलशिलु काबुई (मणिपुर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में); न्यायिक अधिकारी पी. वेंकट ज्योतिर्मय और वी. गोपालकृष्ण राव (आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में); न्यायिक अधिकारी मृदुल कुमार कलिता (गौहाटी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में); एडवोकेट नीला केदार गोखले (बॉम्बे हाईकोर्ट के जज के रूप में) और न्यायिक अधिकारी रामचंद्र दत्तात्रेय हड्डर और वेंकटेश नाइक थावरनाइक (कर्नाटक उच्च न्यायालय के जज के रूप में) के नाम शामिल हैं.
नागेंद्र रामचंद्र नाइक के नाम की सिफारिश पहली बार अक्टूबर 2019 में की गयी थी
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा नागेंद्र रामचंद्र नाइक के नाम की सिफारिश पहली बार अक्टूबर 2019 में की गयी थी और फिर मार्च 2021 और सितंबर 2021 में उन्होंने इसे दोहराया था. हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, पिछली बार सरकार ने कुछ आपत्तियां उठाते हुए सिफारिश वापस भेज दी थी. अखबार ने बताया, इसने कॉलेजियम को व्यापक प्रतिक्रिया लिखने के लिए प्रेरित किया, मंत्रालय को याद दिलाया कि न्यायिक फैसले और प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) सरकार को एक बार कॉलेजियम द्वारा दोहराए गए नामों की नियुक्ति को अधिसूचित करने के लिए बाध्य करते हैं.
स्वस्थ परंपरा के तौर पर नियुक्ति की जानी चाहिए यह बाध्यकारी है
अखबार ने सूत्रों के हवाले से कहा कि नोट में रेखांकित किया गया है कि सरकार की कार्रवाई दूसरे न्यायाधीशों के मामले में सुप्रीम कोर्ट की नौ-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिये गये फैसले में निर्धारित कानून का उल्लंघन करती है. उस मामले में कहा गया था कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से एक सिफारिश को दोहराया, तो एक स्वस्थ परंपरा के तौर पर नियुक्ति की जानी चाहिए क्योंकि यह सरकार के लिए बाध्यकारी है. इसने अप्रैल 2021 के एक फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि अगर सरकार को न्यायाधीशों के लिए प्रस्तावित नाम के बारे में कोई आपत्ति है, तो उसे 18 सप्ताह के भीतर कॉलेजियम में वापस जवाब देना चाहिए.
नियुक्ति 3 से 4 सप्ताह के भीतर की जानी चाहिए.
2021 के निर्णय में कहा गया है, अगर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम उपरोक्त सूचनाओं पर विचार करने के बाद भी सर्वसम्मति से सिफारिशों को दोहराता है, तो ऐसी नियुक्ति पर कार्रवाई की जानी चाहिए और नियुक्ति 3 से 4 सप्ताह के भीतर की जानी चाहिए. नवंबर 2022 में सरकार ने कॉलेजियम द्वारा की गई 20 सिफारिशों को वापस भेज दिया. इनमें से नौ शीर्ष अदालत के कॉलेजियम द्वारा दोहराये गये थे. उल्लेखनीय है कि इस महीने की शुरुआत में भी शीर्ष अदालत ने कॉलेजियम की ओर से दोबारा भेजे गये नामों को सरकार द्वारा वापस कर देने को लेकर चिंता जताई थी.
सरकार के अपने विचार हो सकते हैं, लेकिन…
अदालत सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों को मंज़ूरी देने में केंद्र की ओर से की जा रही कथित देरी से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिस दौरान इसने कहा था कि जब कोई सिफ़ारिश की जाती है, तो सरकार के अपने विचार हो सकते हैं, लेकिन उस पर अपनी टिप्पणी अंकित करके वापस भेजे बिना उसे रोके नहीं रखा जा सकता है.
केंद्र और न्यायपालिका के बीच गतिरोध
उल्लेखनीय है कि जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली बीते कुछ समय से केंद्र और न्यायपालिका के बीच गतिरोध का विषय बनी हुई है, जहां कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू कई बार विभिन्न प्रकार की टिप्पणियां कर चुके हैं.
द वायर से साभार