Faisal Anurag
कांग्रेस के साथ ही तीन अन्य विपक्षी दलों के लिए 2022 बेहद महत्वपूर्ण है. इस साल होनेवाले विधानसभा चुनाव इन दलों के राजनैतिक भविष्य की दिशा तय करेंगे. वैसे तो यह साल भारतीय जनता पार्टी के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम नरेंद्र मोदी और आदित्यनाथ दोनों के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं. न केवल गांधी परिवार बल्कि कांग्रेस के अस्तित्व के लिए चुनाव परिणाम को अहम माना जा रहा है. इससे तय होगा कि कांग्रेस पर गांधी परिवार का नियंत्रण रहेगा या फिर वह एक बिखराव का शिकार हो जायेगी. ममता बनर्जी के लिए भी गोवा साबित करेगा कि राष्ट्रीय राजनीति में वह कांग्रेस से नेतृत्व छीनने में कामयाब होंगी या नहीं और पंजाब और गोवा के परिणामों से तय होगा कि अरविंद केजरीवाल की राष्ट्रीय महत्वकांक्षाएं हकीकत के करीब है या फिर वे दिल्ली के नेता भर बन कर रह जायेंगे.
वरिष्ठ पत्रकार आरथी जेरथ ने लिखा है- ” 2022 के चुनाव कांग्रेस व गांधी परिवार की दशा व दिशा तय करेंगे. अगर पार्टी अभी नहीं जागी, तो परिणाम भयंकर होंगे.” जेरथ के इस निचोड़ वाक्य की अनेक परते हैं. पहली परत तो यह है कि कांग्रेस के लिए जहां उत्तर प्रदेश में वोट आधार और सीट बढ़ाने की चुनौती है, तो पंजाब में सत्ता की वापसी का भी. मणिपुर, गोवा और उत्तराखंड में बहुमत हासिल करने की जंग अलग से है. लेकिन कांग्रेस को अंदर से जानने वाली पत्रकारों की बातों पर गौर किया जाये तो कहा जा सकता है कि उत्तराखंड, पंजाब और गोवा में पार्टी गुटो में बंटी हुई है. गोवा में 2017 के चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी, लेकिन सरकार बनाने में भाजपा कामयाब हुई. कांग्रेसियों को जिस बात ने सबसे ज्यादा चौंकाया है, वह है गांधी परिवार द्वारा पंजाब और उत्तराखंड जैसे राज्यों में आंतरिक अशांति से निपटने का तरीका. इस अशांति को अब तक निपटा दिया जाना चाहिए और यहां पार्टी को चुनाव के लिए तैयार हो जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा दिख नहीं रहा.
कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने की भाजपा की रणनीति भी कारगर रही. गोवा विधानसभा में इस समय कांग्रेस के केवल दो सदस्य पार्टी में हैं. कांग्रेस के 15 सदस्य या तो बीजेपी में चले गये या फिर तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया. पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस के लिए लगातार मुसीबतें खड़ी कर रहे हैं. वे चाहते हैं कि पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा पेश करे. कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना कर दलित कार्ड का इस्तेमाल किया है. कांग्रेस नहीं चाहती कि दलितों को दिये गये उसके संदेश का नुकसान हो. लेकिन इससे कांग्रेस को नुकसान हो रहा है, जिसकी भरपाई केंद्रीय नेतृत्व करता हुआ नहीं दिख रहा.
कांगेस के कई नेता भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम चुके हैं. अमरेंदर सिंह ने भाजपा से गठबंधन किया है. आम आदमी पार्टी चुनावी सर्वेक्षणों में कांग्रेस से आगे बतायी जा रही है. पंजाब कांग्रेस खास कर राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता की परीक्षा का सबसे बड़ा केंद्र है. उत्तराखंड में हरीश रावत को पार्टी का चेहरा तो नहीं बनाया गया है, लेकिन उन्हें चुनाव अभियान की पूरी जिममेदारी सौंप दी गयी है. क्या कांग्रेस भाजपा की सत्ता विरोधी रूझान का लाभ उठा सकेगी या नहीं, इस कसौटी पर भी कांग्रेस आलाकमान की परीक्षा होगी.
प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह सहित भाजपा ने उत्तर प्रदेश में सभाओं की झड़ी लगा दी है. अखिलेश यादव भी हर दिन सभा कर रहे हैं. लेकिन कांग्रेस की तरफ से केवल प्रियंका गांधी ही सक्रिय दिख रही हैं. राहुल गांधी केवल एक सभा अमेठी में की है. गोवा की भी एक ही यात्रा की है, जबकि ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल लगातार दौरे कर रहे हैं. सवाल पूछा जा रहा है कि लेटलतीफी से कांग्रेस किस तरह चुनावी अभियान से लोगों तक पहुच पायेगी. आखिर नेतृत्व की हिचक क्यों है. क्या केवल ट्वीटर से ही राहुल गांधी लोगों को कांग्रेस को वोट देने के लिए तैयार कर सकेंगे. कांग्रेस के जी 23 नेताओं का इरादा चाहे जो रहा हो, उनके सवाल तो जायज साबित हो रहे हैं. 2023 में कांग्रेस के अध्यक्ष चाहे कोई चुना जाये लेकिन 2022 के चुनावों में कामयाबी नहीं मिली तो वह पद खौफनाक से कम नहीं होगा.
गोवा में यदि ममता बनर्जी की पार्टी की सीटें कांग्रेस से ज्यादा हुईं और पंजाब, उत्तराखंड में कांग्रेस नाकामयाब रही तो उसके लिए राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका सीमित हो सकती है. कांग्रेस आलाकमान को कोताही और जड़ता से बाहर निकल का नेतृत्व क्षमता दिखाने का इससे बेहतर मौका शायद फिर कभी नहीं मिले.
साल 2022 में पांच राज्यों उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में कांग्रेस की मुख्य चुनौती है कि वह साबित करे कि उसके वोटर उसके साथ बने हुए हैं. छठवें राज्य पंजाब में कांग्रेस को अपना राज्य बचाना होगा. वहीं सातवें राज्य उत्तर प्रदेश, लेकिन सबसे अहम राज्य में प्रियंका गांधी को अपनी पार्टी को “सम्मानजनक सीटें” (दोहरे अंक में सीट) दिलाने और प्रदेश में पार्टी की पैठ मजबूती की दावेदारी पेश करनी होगी. राष्ट्रीय स्तर पर बतौर विपक्षी नेतृत्व की उसकी स्वीकृति और पार्टी में गांधी परिवार के नेतृत्व का भविष्य इसी पर निर्भर करेगा.
[wpse_comments_template]