डॉ मयंक मुरारी, आध्यात्मिक लेखक
LagatarDesk : मंत्र पूरी तरह ध्वनि विज्ञान पर आधारित है, जैसे कि आधुनिक चिकित्सा जगत में अल्ट्रासाउंड ध्वनि विज्ञान पर आधारित है. जिस प्रकार से योग और दूर बोध यटेलीपैथीद्ध को विज्ञान सम्मत करार दिया गया है, ठीक वैसे मंत्र भी विज्ञान सम्मत हैं. मंत्र की वास्तविक परिभाषा है, ‘मननात जायते इति मंत्र’-अथवा जिसके मनन से जपने से, ध्यान रहे जाप बिना उच्चारण के भी होता है. जन्म-मृत्यु के चक्कर से छुटकारा मिल जाये वही मंत्र है. मंत्र की दूसरी परिभाषा है, जिसके उच्चारण या बोलने से हमारे समस्त कार्य पूरे हो जाएं वही मंत्र है. मंत्र ध्वनि विज्ञान का एक परम शक्तिशाली अविष्कार है. मंत्र शब्दों का एक सुंदर संगठन है जिसे सुनकर मनुष्य का चित्त शांत होता है और चित्त की शांति सुख व आनंद की मूल है. मंत्रों के अंतर्गत शब्दों का सुंदर संगठन करके हमारे पूर्वजों ने हमें एक ऐसा विज्ञान दिया है जिसने हमें बहुत कुछ करने में समर्थ कर दिया है.
रूद्राष्टक मंत्र के जाप व्यक्ति के अंदर इन चीजों का होता है संचार
आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर के अनुसार, मंत्रों की तरंगों से दिमाग में ऐसे कैमिकल बनते हैं जो हमारे मन की स्थिति पर बेहतर प्रभाव डालते हैं. उन्होंने उदाहरण के तौर पर रूद्राष्टक मंत्र के जाप का उल्लेख किया है. इस मंत्र के जाप से व्यक्ति के अंदर निडरता, स्थिरता, खुशी और स्वास्थ्य का संचार होता है. अब तक वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं कि एक ईश्वरीय कण यानी गॉड पार्टिकल है जिससे यह समूचा जगत बना है. भारतीय दर्शन में इसे ब्रह्म नाम दिया गया है. अब तो भौतिकी शास्त्र में भी यह मान लिया गया है कि समूचे अस्तित्व की रचना के पीछे एक ऊर्जा है. वैज्ञानिक भी मानते हैं कि यह सृष्टि केवल ऊर्जा का प्रकटीकरण है. ब्रह्मांड के निर्माण में तीन चीजों की जरूरत होती है. पहला पदार्थ, जिसका द्रव्यमान हो. यह पदार्थ अंतरिक्ष में सब ओर है. धूल-कण से लेकर बर्फ, गैस बादल आदि. यह सब द्रव्यमान हैं. दूसरी चीज ऊर्जा की जरूरत होती है. तीसरी चीज अंतरिक्ष है. आइंस्टाइन का कहना है कि पदार्थ और ऊर्जा एक ही चीज हैं. यानी इस अस्तित्व में बस ऊर्जा तरंग ही है और सृष्टि की यात्रा के अंतिम सोपान पर उस शाश्वत संगीत को सुनने के साथ ही समूची सृष्टि और इसके अवयव भी संगीतमय हो जाते हैं.
अलग-अलग जड़ी-बूटियों से हवन का है विधान
भारतीय दर्शन कहता है कि मंत्र के स्वर, ध्वनि और तरंगों के सम्मिलित प्रभाव के पीछे उसका ब्रह्मांडीय ऊर्जा, ध्वनि एवं स्वर के साथ एकरूपता है. हमारे उच्चारित मंत्र की ध्वनि अस्तित्व से निकलते नाद के साथ एकरूप होकर सकारात्मक ऊर्जा संचारित करते हैं. भारतीय जीवन में कर्मकांडीय विधान के समय जब मंत्र पढ़े जाते हैं, तब उसके तदनुरूप हवन सामग्री को अग्नि में अर्पित किया जाता है. यह हवन सामग्री मूलतः जड़ी-बूटियां होती हैं. सूर्य के लिए आक, चंद्रमा के लिए पलाश, मंगल के लिए खैर, बुध के लिए आपामार्ग, वृहस्पति के लिए पीपल, शुक्र के लिए गूलर, शनि के लिए शमी, राहु के लिए दुर्वा और केतु के लिए कुशा से हवन का विधान है. इन सबके हवन अर्ध्य देते समय अलग-अलग मंत्र हैं.
कपूर और सुगंधित दृव्य से मन-मस्तिष्क पर पड़ता है सकारात्मक प्रभाव
यज्ञीय पद्धति में ऋतुओं के अनुसार समिधा उपयोग करने के लिए भी स्पष्ट नियम बताये गये हैं. जैसे वसंत ऋतु में शमी, ग्रीष्म में पीपल, वर्षा में ढाक या बिल्व, शरद में आम या पाकर, हेमंत में खेर, शिशिर में गूलर या बर की समिधा उपयोग में लाना जानी चाहिए. अग्नि में मूलतः शुद्धिकरण का गुण होता है. वह अपनी उष्णता से समस्त बुराइयों, दोषों, रोगों का नाश करती है. अग्नि के संपर्क में जो भी आता है वह उसे शुद्ध कर देती है. इसलिए सनातन काल से यज्ञ और हवन की परंपरा चली आ रही है. पाश्चात्य देशों के अनेक शोधकर्ता यह साबित कर चुके हैं कि जिस जगह नियमित हवन होता है, वहां की वायु अन्य जगह की वायु की अपेक्षा अधिक स्वच्छ होती है. हवन में डाली जाने वाली वस्तुएं न सिर्फ पर्यावरण को शुद्ध रखती हैं, बल्कि रोगाणुओं को भी नष्ट कर देती हैं. इससे कई बीमारियां ठीक हो जाती हैं. हवन में डाले जाने वाले कपूर और सुगंधित दृव्य वातावरण में एक विशेष प्रकार का आरोमा फैला देते हैं, जिसका मन-मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
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