Faisal Anurag
क्या पंजाब और गोवा एक नए दल को राष्ट्रीय स्तर पर उभरने के वाहक साबित होंगे या फिर दोनों ही राज्य परंपरागत राजनीति के केंद्र बने रहेंगे ? आम आदमी पार्टी की तैयारी,दावे और नए प्रयोग से यह सवाल उठ खड़ा हुआ है. आम आदमी पार्टी ने लोकसभा सदस्य भगवत मान को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया और कांग्रेस के चरणजीत सिंह चन्नी को चुनौती दी है. वैसे तो कांग्रेस ने किसी को भी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है. फिर भी मान बनाम चन्नी को ले कर राजनैतिक बहस तेज है. इसी तरह गोवा में भी आम आदमी पार्टी की कोशिश एक बड़ी ताकत बन कर उभरने की है. भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के लिए आम आदमी पार्टी की गतिविधियां चुनौती बन कर खड़ी है. गोवा में तो ममता बनर्जी ने भी अपनी ताकत झोंक दी है. पंजाब का चुनाव एक दिलचस्प रूप लेता जा रहा है. कांग्रेस ने पिछले साल जब कैप्टन अमरेंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटा कर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया. नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस के मुख्यमंत्री का चेहरा बनने का हर उपक्रम कर रहे हैं. बावजूद इसके यह साफ हो गया है कि कांग्रेस चन्नी के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ रही है.
चन्नी न केवल एक दलित नेता के बतोर कांग्रेस के ट्रंपकार्ड हैं बल्कि एक पंजाबी पहचान के रूप में भी चन्नी उभरे हैं. खास कर प्रधानमंत्री के काफिला प्रकरण में चन्नी ने पंजाबी कार्ड को जम कर खेला. पंजाब की राजनीति की सबसे बुनियादी पहलू यही है कि पंजाबी पहचान वहां राजनैतिक तौर पर एक बड़ा कारक रहा है. एक बात तो साफ है कि पंजाब की राजनीतिक लड़ाई कांग्रेस बनाम आम आदमी पार्टी के बीच हो गयी है. आकली गठबंधन और अमरेंद्र सिंह भाजपा गठबंधन तो केवल अस्तित्व के लिए ही संघर्ष करता नजर आ रहा है. जमीनी सर्वेक्षणों में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच कड़े मुकाबले का अनुमान लगाया गया है. 2017 में आम आदमी पार्टी दूसरे नंबर पर रही थी. राजनैतिक प्रेक्षक मानते हैं कि यदि आम आदमी पार्टी ने 2017 में मुख्यमंत्री के चेहरे का एलान कर दिया होता तो परिणाम उसके पक्ष में भी जा सकते थे.
इस बार आम आदमी पार्टी ने कोई गलती नहीं की है. उसने भगवत मान को चेहरा बनाया है. लेकिन क्या मान चन्नी का मुकाबले मजबूती दिखा सकेगें.यह सवाल इसलिए पूछा जा रहा है कि पंजाब में किसान आंदोलन से जुड़े संगठनों ने एक पार्टी बना कर चुनाव लड़ने का एलान किया है. माना जा रहा है कि किसान आंदोलन से उभरी संयुक्त समाज मोर्चा (एसएसएम) पार्टी आम आदमी पार्टी की संभावना को प्रभावित कर सकती है. इसका एक बड़ा कारण तो वह वोट आधार है जिस पर आम आदमी पार्टी को भरोसा है. किसानों के ज्यादातर संगठनों का भी उस पर असर है. कांग्रेस एक पुरानी पार्टी है और उसके वोट आधार में विविधता है. गोवा और पंजाब के बहाने तो केंद्रीय स्तर पर भी एक राजनीति विपक्षी दलों के बीच चल रही है. इस समय केद्रीय स्तर पर कांग्रेस के नेतृत्व को कमजोर बनाने की कोशिश कई क्षेत्रीय दल कर रहे हैं. इसमें ममता बनर्जी सबसे आगे हैं. उन्होंने गोवा और पंजाब में भी कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने के लिए चुनाव के इस्तेमाल का निर्णय लिया है.
ममता बनर्जी की रणनीति यह है कि उत्तर प्रदेश में वह समाजवादी पार्टी को साथ दे और गोवा में कांग्रेस की सीटो में सेंधमारी करे, ताकि वह बंगाल के बाहर अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर केंद्रीय सतर पर कांग्रेस से नेतृत्व छीन सकें. दूसरी ओर आम आदमी पार्टी की रणनीति यह है कि वह दिल्ली के बाहर पंजाब में सत्ता हासिल कर सके और गोवा में या तो सत्ता हासिल कर ले या फिर विपक्ष बन कर उभरे. ताकि राष्ट्रीय स्तर पर उसकी पहचान दिल्ली के बाहर भी मजबूत दावेदारी की उभरे. विपक्ष की राजनीति में क्षेत्रीय दलों की सीमा यह रही है कि कि एक राज्य के बाहर उनकी राजनैतिक ताकत नहीं के बराबर है. शिव सेना और एनसीपी महाराष्ट्र तक ही सीमित है. एनसीपी कुछ अन्य राज्यों में एक दो सीट तो जीत लेती है, लेकिन उसे महाराष्ट्रीय पहचान की पार्टी मानी जाती है. इसी तरह ममता बनर्जी बंगाल की नेता मानी जाती हैं, लेकिन 2021 के चुनावों की भारी जीत के बाद उनकी राष्ट्रीय महत्वकांक्षा साफ दिखने लगी है. रणनीतिकार प्रशांत किशोर को उन्होंने इसी काम में लगा दिया है कि राष्अ्रीय विकल्प के तौर पर उनको मान्यता दिलाएं.
गोवा वह राज्य है जहां ममता बनर्जी कांग्रेस से ज्यादा सीट हासिल करने का सपना देख रही हैं. लेकिन गोवा की राजनीति बेहद अनिश्चित मानी जाती है. 2017 में सबसे बड़ी पार्टी बन कर कांग्रेस उभरी, लेकिन सरकार बनाने में भाजपा कारगर साबित हुयी.पहली बार भाजपा मनोहर परिकर की लोकप्रियता के बगैर मैदान में है. भाजपा के साथ सत्ताविरोधी रुझान है लेकिन बावजूद उसकी ताकत को कम कर नहीं आंका जा सकता. आम आदमी पार्टी इस स्थिति में गोवा और पंजाब के सहारे केजरीवाल की राष्ट्रीय छवि को स्थापित करने के खेल में लगी हुयी है. भारत की राजनीति में केवल वामफ्रंट ही एक मात्र ऐसा गठबंधन रहा है जिसने तीन राज्यों में सरकार का नेतृत्व किया है.संसद में विपक्षी की सरकार बनाने में उसकी बड़ी भूमिका रही है. बावजूद इसके वामफ्रंट राष्ट्रीय विकल्प कभी नहीं बन पाया. तो क्या गोवा और पंजाब 2024 के पहले आम आदमी पार्टी और ममता बनर्जी को राष्ट्रीय विकल्प बनने के मार्ग प्रशस्त कर सकेंगे. मान के समाने यह एक बड़ी चुनौती है कि वह केजरीवाल के राष्ट्रीय महत्वकांक्षा के लिए पंजाब में चन्नी की काट बनें.
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