- वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया था प्लांट का कोल ब्लॉक आवंटन
- एनसीएलटी में याचिका दायर हुई तो हो गया अधिग्रहण का आदेश
- अदालती आदेश की आड़ में बेखौफ जारी है कीमती उपकरणों की स्क्रैप में खरीद-फरोख्त
Sunil kumar
Latehar : चंदवा को 1200 मेगावाट बिजली उत्पादन का सपना दिखाने वाले एस्सार पावर प्लांट में कबाड़ बिक्री की आड़ में अरबों रुपये का खेल खेला जा रहा है. प्लांट के लिए जमीन देने वाले रैयत परेशान हैं. प्लांट के लिए उन्होंने जो जमीन दी थी, उस पर न तो प्लांट लगा और न ही रैयतों को उनकी जमीन वापस दी गई. उन्हें उनकी जमीनों की कीमत भी नहीं दी गई. फिलहाल वे ट्रिब्यूनल के चक्कर काटने पर मजबूर हैं. पिछले दो वर्षों से कंपनी की मशीनों और कल-पूर्जों को कबाड़ के रूप में बेचा जा रहा है. पीतल और तांबे को लोहे की कीमतों में बेचा जा रहा है. कागजों में जो स्क्रैप दिखाया जा रहा है, उसका दोगुना स्थानीय प्रशासन, पुलिस एवं अन्य की कथित मिलीभगत से निकाला जा रहा है. स्थानीय विस्थापितों का आरोप है कि विरोध करने पर उन्हें झूठे मुकदमों में फंसा दिया जाता है.
वर्ष 2014 में ही लग गया था ग्रहण
एस्सार पावर झारखंड लिमिटेड की ओर से चंदवा के चकला में 1200 मेगावाट पावर प्लांट तैयार किया गया था. यह प्रोडक्शन के लिए लगभग तैयार था. एस्सार पावर लिमिटेड को चकला व अशोका कोल ब्लॉक आवंटित हुआ था. इसी बीच कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कोल ब्लॉक आवंटन को चुनौती दी. वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने कोल ब्लॉक आवंटन को गलत करार देते हुए रद्द कर दिया था. कोल ब्लॉक आवंटन रद्द होते ही कंपनी ने प्लांट में निवेश बंद कर दिया. कई वर्षों तक कंपनी में काम बंद रहा. कंपनी बंद होते ही इंफ्रास्ट्रक्चर कबाड़खाने में तब्दील होता चला गया.
जनवरी 2020 में दिया गया स्क्रैप बिक्री का आदेश
सरकारी अड़चनों और अदालतों के बीच उलझकर तीन जनवरी 2020 को प्लांट लिक्विडेशन में चला गया. देश जब कोरोना की मार झेल रहा था, उस वक्त कबाड़ी अपनी कमाई के चक्कर में लगे थे. लिक्विडेटर ने एनसीएलटी में याचिका दायर की. मार्च 2020 में ई-ऑक्शन के माध्यम से कंपनी की बेशकीमती मशीनों और कल-पुर्जों को स्क्रैप बताकर पांच हजार टन की बिक्री का आदेश दिया गया. बाद में यह आंकड़ा 26,500 टन तक पहुंच गया. इस कंपनी के लिक्विडेटर मुंबई के खुजैफा सिताब खान फाखरी थे. उन्होंने प्लांट का निरीक्षण कर पेटी कांट्रेक्टरों को काम बांट दिया है.
ऐसे हो रहा अरबों का खेल
स्थानीय प्रशासन एवं पुलिस के कथित सहयोग से मार्च 2020 से इस कंपनी के कीमती कल-पुर्जों की कबाड़ के दाम में खरीद फरोख्त की जा रही है. लिक्विडेटर ने ई-ऑक्शन के माध्यम से कंपनी को बेच डाला. बताया जाता है कि लिक्विडेटर एवं प्रशासन की कथित मिलीभगत से ऑक्शन से भी अधिक उठाव किया जा रहा है. कंपनी द्वारा नियुक्त राज सिंह एवं प्रकाश कुमार ने यह काम किया. प्रशासन के अधिकारी ट्रकों की जांच करना भी जरूरी नहीं समझते थे. सूत्रों के मुताबिक, लोहे की कीमत पर पीतल एवं तांबे तक बेच डाले गए जबकि लोहा 30 रुपये और तांबा व पीतल 600 रुपये किलो बिकता है. अदालती आदेशों की आड़ में अरबों रुपये की हेराफेरी का खेल किया जा रहा है.
एनसीएलटी पहुंचे विस्थापित
भूमि अधिग्रहण एवं विस्थापन का दंश झेल रहे स्थानीय लोग विभिन्न ट्रिब्यूनलों का चक्कर लगा रहे हैं. कबाड़ियों का काम जारी है. प्रभावित लोगों ने अब एनसीएलटी में एक याचिका दायर की है. यहां से अधिग्रहण का आदेश तो हो चुका है लेकिन इससे विस्थापितों को कोई लाभ नहीं हो रहा.
10 टन का चालान, 25 टन निकासी
विस्थापित कारखाने के कीमती कल पुर्जों को स्क्रैप के रूप में बेचने का विरोध कर रहे हैं. वहीं, लिक्विडेटर इन पर मुकदमे कर रहे हैं. लोगों का कहना है कि कंपनी द्वारा भी इस दिशा में कोई काम नहीं किया जा रहा है बल्कि कबाड़ियों की ही मदद की जा रही है. बताया जाता है कि चालान 10 टन का काटा जा रहा है जबकि ट्र्क पर 25 टन माल लादा जा रहा है. इस कारखाने के कीमती उपकरण पंजाब, मुंबई एवं राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में बेचे जा रहा हैं.
रैयतों में आक्रोश
आईसीआईसीआई बैंक ने सबसे अधिक 3468.29 करोड़ रुपये का ऋण एस्सार पावर प्लांट के लिए दिया था. बैंक को लोन की वापसी न के बराबर है. स्थानीय रैयतों का कहना है कि जिस जमीन पर वे वर्षों से खेतीबाड़ी करते थे, उसे कारखाने के नाम पर बेच चुके हैं. उनकी जमीन पर न तो कारखाना लगा और न ही उन्हें जमीन वापस की गई. केवल स्क्रैप का खेल जारी है. इससे रैयतों में आक्रोश है. जब वे अपनी जमीन की कीमत मांगने जाते हैं तो उलटे उन पर रंगदारी मांगने के आरोप में मुकदमा दायर करा दिया जाता है.
अभिजीत ग्रुप के प्लांट का भी यही हाल
एस्सार पावर प्लांट जैसी ही स्थिति इसके बगल में स्थित कॉर्रोट पावर लिमिटेड अभिजीत ग्रुप की है. अभिजीत का प्लांट भी पूरी तरह से कबाड़ में तब्दील हो गया है. भारत के मानचित्र में औद्योगिक नगरी के रूप में उभर रहा चंदवा पुनः उसी स्थिति में आ गया है या कहें कि उसकी स्थिति और भी बदतर हो गई है.