Anant Anand
Bermo: पंचायती राज की परिकल्पना इसलिए की गयी थी कि यह गांव की अपनी सरकार होगी. ग्रामसभा सिर्फ पंचायतों को सशक्त और सक्रिय नहीं करेगी बल्कि यह लोकतंत्र की जड़ों को भी मजबूत करेगी, लेकिन कई पंचायत के प्रतिनिधियों ने ग्राम स्वराज के सपने की जड़ों में ही मट्ठा डाल दिया है. बेरमो अनुमंडल के गोमिया प्रखंड के विभिन्न पंचायतों में स्वच्छ भारत अभियान के तहत 14वें वित्त आयोग की मद से डस्टबिन की खरीद की गई है. इस डस्टबिन के लगाने के बाद आज तक उसकी कोई सफाई नहीं हुई, बल्कि पंचायत के सचिवों और मुखियाओं ने डस्टबिन के लगाने में लाखों का वारा-न्यारा किया है.
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डस्टबिन के गड़बड़झाले की कहानी
गोमिया प्रखंड में 36 पंचायतें हैं. कुछ पंचायतों को छोड़ दें, तो लगभग सभी पंचायतों में डस्टबिन लगायी गयी है. इस संबंध में डस्टबिन सप्लायर से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि निजी व्यक्तियों के लिए इसकी कीमत लगभग 30 हजार रुपये है, लेकिन पंचायतों को देने के लिए अलग कीमत है. उन्होंने स्वयं कहा कि गोमिया में डस्टबिन 64 हज़ार रुपये में दिया है. उन्होंने यह भी कहा कि पंचायत में डस्टबिन लगाने के लिए पंचायत प्रतिनिधि से लेकर पंचायत सचिव तक को कमीशन देना पड़ता है, लिहाजा उसकी कीमत दोगुनी हो जाती है. इस संबंध में प्रखंड विकास पदाधिकारी कपिल कुमार से पूछा तो उन्होंने बताया कि पंचायत के प्रतिनिधि और पंचायत सचिव, यही दोनों मिलकर डस्टबिन सहित अन्य सामानों की खरीद करते हैं. इस संबंध में प्रखंड कार्यालय को कुछ भी जानकारी नहीं रहती है.
सुने कैसे डीलर और लगातार संवाददाता की बात.. कैसे 30 हजार का डस्टबिन बिकता है 64 हजार में…
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राज्य भर की पंचायतों में जांच की जरूरत
राज्य भर की पंचायतों में डस्टबिन की खरीद की जांच की जाये, तो हैरतअगेंज तथ्य सामने आयेंगे. दरअसल 32 वर्ष के बाद झारखंड में पंचायत का चुनाव हुआ. 73वें संविधान संशोधन ने एक नया द्वार खोला था. झारखंड को स्वशासी, सहभागी, संपन्न समृद्ध और खुशहाल बनाने का सपना लोगों ने देखा था. यदि इस अवसर का लाभ उठाया जाता तो सामाजिक क्षमता, सांस्कृतिक पुनर्जागरण, आर्थिक समृद्धि और पारस्परिक सद्भाव के एक नये युग का प्रारंभ हो सकता था और देश में जनतंत्र की जड़ें और मजबूत होती लेकिन ऐसा होने के बदले लोकतंत्र के पहले पायदान पर ही भ्रष्टाचार और बेईमानी का घुन लग गया.
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