साहित्यकार जयनंदन को वर्ष 2022 का प्रतिष्ठित श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान देने की घोषणा हुई है. इस खास मौके पर साहित्यकार नीलोत्पल रमेश ने झारखंड और देश दुनिया के वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य पर उनसे बातचीत की. पेश है इस बातचीत के प्रमुख अंश…
सवाल : इन दिनों झारखंड साहित्य अकादमी की मांग उठ रही है. कई क्षेत्रीय भाषाएं और बोलियां संविधान की अष्टम अनुसूचि में शामिल होने की मांग जब तब करती रहती हैं. क्या साहित्य के विकास में सरकारी संरक्षण की इतनी आवश्यकता होती है?
जवाब : बिहार से अलग हुए झारखंड को 22 वर्ष हो गये, लेकिन अब तक राज्य में साहित्य अकादमी तथा कला अकादमी का गठन नहीं हुआ, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह राज्य सृजन और रचनाकर्म की संवेदनशीलता को प्रोत्साहित करने, मान्यता देने और उसकी जरूरत को रेखांकित करने के प्रति सर्वथा उदासीन, बेपरवाह और निश्चेष्ट है. जबकि देश के प्रायः सभी राज्य, विशेषकर छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचलप्रदेश, बिहार और उत्तराखंड की सरकारें साहित्यकारों, रंगकर्मियों, चित्रकारों और अन्य कलाकारों की व्यापक पैमाने पर सुधि लेती हैं और उनकी सृजनशीलता को विस्तारित और गतिशील करने के लिए कई तरह की योजनाएं और कार्यक्रम चलाती हैं. इतना ही नहीं सरकार पत्रिका व पुस्तक प्रकाशन में भी सहयोग करती है.
लेखक और कलाकार समाज में मनुष्यता, दया, प्रेम, सौहार्द और करुणा की भावना को जाग्रत रखने की भूमिका अदा करते हैं. वैचारिक स्तर पर चेतनशील बनाने में योगदान देते हैं, बुराइयों, जड़ताओं और तकलीफों से लड़ने में ऊर्जा का संचार करते हैं…..मतलब एक बेहतर दुनिया बनाने की चिंता उनका मुख्य अभिप्राय होता है. जो काम सरकार और उसकी मशीनरियां स्थूलता के स्तर पर पूरा करती हैं वे ही काम लेखक और कलाकार सूक्ष्मता से निष्पादित करते हैं. समझा जा सकता है कि जिस समाज में लेखक और कलाकार नहीं होंगे, उनकी कद्र नहीं होगी, वह समाज मूक, बधिर, नेत्रहीन और सुसुप्त की श्रेणी का रह जायेगा.
सवाल : संस्कृति और साहित्य का गहरा रिश्ता है. उसका आज के लेखक कितना निर्वहन कर रहे हैं?
जवाब : सृजन से जुड़ा कोई भी व्यक्ति संस्कृति से जुड़ा होता है तभी वह सर्जक बनता है. साहित्यकार भी लोक-जीवन को संस्कृति के विवेक से जोड़कर उन्हें संवेदनशील बनाने की भूमिका का निर्वाह करता है. सदाचार, दया, प्रेम, करूणा और सामाजिकता की भावनात्मक-तंतुओं को जाग्रत करता है.
सवाल : श्रीलाल शुक्ल ने सामाजिक समस्याओं और सामंती सरोकारों पर चुटीले व्यंग्य की परंपरा की नींव डाली थी. इतने वर्षों बाद भी ऐसी कृति अन्य लेखकों से क्यों नहीं आ पा रहीं?
जवाब : श्रीलाल शुक्ल के बाद व्यंग्य-लेखन की परंपरा को गति मिली है. ज्ञान चतुर्वेदी, प्रेम जनमेजय, हरीश नवल आदि इस समय काफी सक्रिय हैं और लगातार उनकी व्यंग्य-रचनाएं पढ़ने को मिल रही हैं. प्रेम जी तो व्यंग्य-यात्रा नाम से एक त्रैमासिक पत्रिका निकालते हैं जो काफी लोकप्रिय है.
सवाल : व्यंग्य विधा में किनकी रचनाएं अधिक पसंद? नये लेखकों में किन्हें पढ़ रहे?
जवाब : नये लेखकों में कई युवा लेखक उभरकर सामने आये हैं और साहित्य में तेजी से जगह बना रहे हैं. चंदन पांडेय, मनोज पांडेय, राकेश मिश्र, कुणाल सिंह, वैभव सिंह, नीरज नीर विनीता परमार, रश्मि शर्मा आदि बहुत परिपक्वता से लेखन कर रहे हैं और लंबी पारी की संभावनाएं जगा रहे हैं.