Ranchi : झरिया मास्टर प्लान की अत्यंत धीमी गति पर फिर से उठाया गया सवाल. प्लान को किसी सेंट्रल एजेंसी को सौंपने की भी मांग की गई. राज्यसभा में यह सवाल उठाया राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार ने. उन्होंने राज्यसभा में विशेष उल्लेख के माध्यम से इस मुद्दे को उठाया. महेश पोद्दार ने कहा कि बीसीसीएल के कोयला खनन क्षेत्र में झारखंड सरकार की एजेंसी झरिया पुनर्वास और विकास प्राधिकरण (जरेडा) द्वारा क्रियान्वित हो रहे झरिया मास्टर प्लान की अत्यंत धीमी प्रगति है, जो चिंता का विषय है. उन्होंने आग्रह किया कि किसी केन्द्रीय एजेंसी को इस परियोजना के क्रियान्वयन का दायित्व सौंपा जाए.
उन्होंने कहा है कि विस्थापितों के समुचित पुनर्वास के लिए भारत सरकार के आवासन एवं शहरी विकास मंत्रालय के साथ समन्वय स्थापित करते हुए झरिया मास्टर प्लान को प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) अथवा किसी अन्य योजना से जोड़ना भी श्रेयस्कर हो सकता है.
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तीन फरवरी को भी उठाया था मामला
सांसद महेश पोद्दार ने विगत बजट सत्र के दौरान तीन फरवरी 2020 को भी इससे संबंधित तारांकित प्रश्न पूछा था. उन्हें बताया गया था कि बीसीसीएल कोयला खनन क्षेत्र अंतर्गत झरिया कोयला क्षेत्र में भूमिगत आग और भू-धंसान को नियंत्रित करने और इससे प्रभावित नागरिकों के पुनर्वास के लिए झरिया मास्टर प्लान को मंजूरी दी गयी है, जिसे 12 वर्षों की अवधि के बाद 2021 में पूरा किये जाने का लक्ष्य निर्धारित है. भारत सरकार ने इसके लिए पर्याप्त निधि का आवंटन भी किया है.
भू-धंसान की घटनाओं का भी किया उल्लेख
महेश पोद्दार ने कहा, झरिया मास्टर प्लान का क्रियान्वयन झारखंड राज्य सरकार के प्राधिकार झरिया पुनर्वास और विकास प्राधिकरण (जरेडा) द्वारा किया जा रहा है, जिसकी प्रगति अत्यंत धीमी और दोषपूर्ण है. सदन में उपलब्ध कराये गए उत्तर को ही आधार मानें तो आग बुझाने की 45 परियोजनाओं में से मात्र 17 में अबतक आग पूर्णतः बुझाई जा सकी है. भूमिगत आग के ऊपर और भू-धंसान वाले क्षेत्रों में निवास कर रहे मात्र 2152 परिवारों को ही पुनर्वासित किया जा सका है, जबकि ऐसे वैध रैयतों और अतिक्रमणकारी परिवारों की कुल संख्या 1,04,946 है, जिनका पुनर्वास किया जाना है. अधिकांश परिवारों को वांछित मुआवजा भी नहीं मिला है. इस बीच भू-धंसान की कई घटनाएं हुई हैं जिनमें कई परिवारों को जान और संपत्ति का नुकसान उठाना पड़ा है.
कहा, ऐसे तो लग जाएंगे सैकड़ों साल
उन्होंने कहा कि स्वाभाविक तौर पर प्रभावित जनता का आक्रोश कोयला मंत्रालय और भारत सरकार के विरुद्ध होता है, जबकि मूलतः इसकी जिम्मेवारी जरेडा पर आती है. स्पष्ट है कि यदि जरेडा को वर्तमान गति से ही काम करने की अनुमति मिली तो सभी प्रभावित परिवारों के पुनर्वास में सैकड़ों साल लग जाएंगे.
महेश पोद्दार ने सदन में विशेष उल्लेख के माध्यम से आग्रह किया है कि भारत सरकार की किसी सक्षम एजेंसी को झरिया मास्टर प्लान के क्रियान्वयन का दायित्व देते हुए तय समयसीमा में इसका क्रियान्वयन पूर्ण कराने के लिए आवश्यक कार्रवाई की जाय.
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