Ranchi : मानव शरीर अंदर से शांत और संतुष्ट है, तो वह बाहर से अशांत और असंतुष्ट नहीं हो सकता. शांति एक दैवी मनःस्थिति है, जिसका संबंध मनुष्य मन में रहने वाली विवेक भावना से है. जब मनुष्य का विवेक संतुष्ट रहता है, तब मन शांत और स्थिर रहता है, मनुष्य की मनःस्थिति उसके मुखमंडल पर प्रकट होती रहती है. जो उसके मन में होता है, वही उसके शब्दों, कार्यों और व्यवहार से प्रकट होता रहता है. यह बातें यहां चौधरी बगान, हरमू रोड में प्रवचन करते हुए ब्रह्माकुमारी राजयोगिनी निर्मला बहन ने कही.
उतावलेपन से काम करने पर मनुष्य की मानसिक शक्ति नष्ट होती है
उन्होंने कहा केवल सत्य ही असत्य को, प्रेम ही क्रोध को, सहिष्णुता और संयम हिंसा को शांत करते हैं. विवेक से ही मनुष्य की हीन वृत्तियां और निन्दनीय वासनाएं शांत हो सकती है. ईर्ष्या, द्वेश, भय, क्रोध, वासना ये सभी मन की शांति को भंग करने वाले शत्रु हैं. इन्हें आत्म नियंत्रण द्वारा वश में रखने की आवश्यकता है. राजयोग के अभ्यास और शुभ-चिन्तन द्वारा मन को वश में रखने को क्षमता विकसित होती है और मनुष्य बड़ी से बड़ी कठिनाई में भी शांति बनाये रखता है. शांति वाह्य संसार में खोजने से मिलने वाली वस्तु नहीं है. बल्कि यह मन के गुप्त प्रदेश में रहने वाली संतुलित स्थिति है. दया, क्षमा, सहनशीलता, उदारता और निष्काम प्रेम के अभाव में आज सर्वत्र संघर्ष, कलह और अशांति का साम्राज्य दिखाई देता है. आज आपाधापी में मनुष्य अपने सभी काम जल्दबाजी में करता है. उतावलेपन से काम करने पर मनुष्य की मानसिक शक्ति नष्ट होती है. इसके विपरीत वह जिस काम को प्रसन्नता के साथ करता है. उससे उसकी मानसिक शक्ति में वृद्धि होती है. स्थिर मन द्वारा ही विभिन्न प्रकार की विचारधाराओं पर नियत्रंण रखने से मनुष्य को अपने कार्यों में सफलता मिल सकती है.
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