LagatarDesk : फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन का त्यौहार मनाया जाता है. पंचांग के अनुसार, इस बार होलिका दहन 17 मार्च 2022 को पड़ रहा है. इस बार होलिका दहन पर भद्रा साया है. इसलिए इस बार होलिका दहन मध्य रात्रि में मनायी जायेगी. होलिका दहन गुरुवार यानी 17 मार्च को किया जायेगा. पूर्णिमा तिथि 17 मार्च को दोपहर 1:30 मिनट से शुरू होकर 18 मार्च दोपहर 12:47 मिनट तक होगा.
होलिका दहन के लिए आवश्यक पूजा साम्रगी
होलिका दहन की पूजा का विशेष पौराणिक महत्व है. मान्यता है कि सच्चे मन अगर होलिका दहन की पूजा की जाती है तो होलिका की अग्नि में सभी दुख जलकर खत्म हो जाते हैं. आइये जानते हैं होलिका दहन की पूजा में किन चीजों का इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही सही पूजन विधि के बारे में.
• गाय के गोबर से बनी होलिका
• बताशे
• रोली
• साबुत मूंग
• गेंहू की बालियां
• साबुत हल्दील
• फूल
• कच्चा सूत
• जल का लोटा
• गुलाल
• मीठे पकवान या फल
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होलिका दहन की पूजा विधि
होलिका दहन से पहले विधि-विधान के साथ होलिका की पूजा की जाती है. सबसे पहले होलिका पर हल्दी. रोली और गुलाल से टीका लगाकर फूल, कच्चा सूत, बताशे, मीठी चीजें आदि चढ़ाई जाती हैं. इसके बाद होलिका के चारों ओर 7 बार परिक्रमा की जाती है और फिर जल चढ़ाया जाता है. मान्यता है कि दहन से पहले होलिका की पूजा बहुत शुभ फलदायी होती है. इससे आपके ग्रहदोष भी दूर होते हैं.
भगवान विष्णु के भक्त को होलिका में जिंदा जलाया गया था
मान्यता है कि भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद को हिरण्य कश्यप ने होलिका की गोद में बैठाकर जिंदा जलाने की कोशिश की थी. इस दौरान होलिका खुद ही जलकर खत्म हो गयी थी. तभी से होलिका दहन का त्यौहार मनाया जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार, भद्रा को अशुभ बताया गया है. मान्यता है कि भद्रा के स्वामी यमराज होने के कारण इस योग में कोई भी शुभ काम करने की मनाही होती है.
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भ्रदा में शुभ कार्य करने की होती है मनाही
पुराणों के अनुसार, भद्रा भगवान सूर्य की पुत्री और शनि देव की बहन है. भद्रा का स्वभाव शनिदेव की तरह ही है. ये भी कोध्री स्वभाव की हैं. इसलिए इन्हें नियंत्रित करने के लिए भगवान ब्रह्मा ने काल गणना में एक प्रमुख अंग में विष्टि करण को जगह दी है. ऐसा माना जाता है कि भद्रा हर समय तीनों लोक का भ्रमण करती रहती हैं. इसलिए जब वे पृथ्वी पर होती हैं तो किसी भी तरह का शुभ कार्य करने की मनाही होती है.