Girish Malviya
एबीजी शिपयार्ड के मामले में मोदी सरकार साफ-साफ झूठ बोल रही है. जिस कंपनी का लोन 2017 में ही NPA हो गया था, उसका मामला जानबूझकर पांच साल तक लटका कर रखा गया और आज हमें 2022 में यह बताया जा रहे हैं कि बैंकों में जमा किए गए हमारे पैसों से बांटा गया 23 हजार करोड़ का लोन डूब गया है.
कहीं पर लिख के रख लीजिए कि देश के इस सबसे बड़े बैंक घोटाले के सारे आरोपियों को साफ बचा लिया जाएगा. अभी तक एक भी आरोपी की गिरफ्तारी की खबर नहीं आई है? घोटाले के मुख्य कर्ताधर्ता ऋषि अग्रवाल के बारे में भी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं कराई जा रही है कि आखिर वह है कहां ? सिंगापुर में हैं या भारत में ?
दरअसल, इस पूरे फ्रॉड के सभी तथ्य कभी भी बाहर नहीं आएंगे, क्योंकि अगर पोल खुल गईं तो भारत की पूरी बैंकिंग व्यवस्था ढह जाएगी. सच्चाई यह है कि लोन देने वाले बैंकों के कंसोर्टियम का नेतृत्व आईसीआईसीआई बैंक कर रहा है, लेकिन सीबीआई से शिकायत के लिए एसबीआई को आगे किया गया. एबीजी को दिए गए कुल लोन में आईसीआईसीआई बैंक का हिस्सा लगभग एक तिहाई है. सबसे बड़ी गलती भी इसकी पूर्व सीईओ रहीं चंदा कोचर की है.
कल के लेख में बताया ही था कि ऋषि अग्रवाल, एस्सार के मालिक रुईया ब्रदर्स के सगे भांजे हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस तरह से एबीजी शिपयार्ड को सबसे बड़ा लोन देने वाला बैंक आईसीआईसीआई है, वैसे ही एस्सार ग्रुप को कर्ज देने वाला भी सबसे बड़ा बैंक आईसीआईसीआई ही था.
2015 तक यह ग्रुप देश की तीन सबसे बड़ी कर्जदार कंपनियों में शामिल थीं. आईसीआईसीआई बैंक एस्सार ग्रुप को कर्ज देने में सबसे आगे रहा. इसने मिनेसोटा और इसके यूके स्थित रिफाइनरी प्रोजेक्ट के लिए भी फंड दिया. इसके बदले में आईसीआईसीआई की चंदा कोचर के पति दीपक कोचर की कंपनी में रुइया से इन्वेस्टमेंट करवाया गया.
ऐक्टिविस्ट और व्हिसल ब्लोअर अरविंद गुप्ता ने आरोप लगाया था कि एस्सार ग्रुप के रुइया ब्रदर्स को ICICI बैंक की ओर से मदद की गई. ताकि उनके पति दीपक कोचर के न्यू पावर ग्रुप को ‘राउंड ट्रिपिंग’ के जरिए इन्वेस्टमेंट हासिल हो सके. रवि रुइया ने अपने दामाद निशांत कनोडिया के मैटिक्स ग्रुप और इसकी होल्डिंग इकाई फर्स्टलैंड होल्डिंग्स लिमिटेड के जरिये दीपक कोचर की कंपनी में 453 करोड़ रुपये का निवेश किया.
सरकारी एजेंसियों ने इस संदर्भ में मैटिक्स ग्रुप के मालिक निशांत कनोडिया से पूछताछ की थी, जो एस्सार ग्रुप के चेयरमैन रवि रुइया के दामाद हैं. जब दामाद पर सवाल उठे हैं तो भांजे की कंपनी को दिये गए लोन को कैसे छोड़ दिया गया? आखिरकार लोन देने वाले बैंकों के कंसोर्टियम का नेतृत्व आईसीआईसीआई बैंक ही तो कर रहा था.
व्हिसल ब्लोअर अरविंद गुप्ता ने यह सारे आरोप साल 2016 में लगाए थे, लेकिन उस वक्त कोई कार्यवाही नही की गई. बाद में विडियोकॉन ग्रुप के 3,250 करोड़ के कर्ज में चंदा कोचर का इन्वॉल्वमेंट सामने आया और 2019 में उन्हें आईसीआईसीआई बैंक के चेयरमैन पद से हटाया गया. लेकिन सीबीआई को इस पूरे मामले की विस्तृत जांच करने से मोदी सरकार ने रोक दिया.
बीमार पड़े हुए केबिनेट मंत्री अरुण जेटली ने अमेरिका से 25 जनवरी, 2019 को एक फेसबुक पोस्ट लिखी. जेटली की इस पोस्ट का शीर्षक था ‘इनवेस्टीगेटिव एडवेंचरिज्म वर्सेज प्रोफेशनल इनवेस्टीगेशन. “जेटली ने लिखा थाः ‘पेशेवर जांच और जांच में दुस्साहस के बीच आधारभूत अंतर है. हजारों किलोमीटर दूर बैठा, मैं जब ICICI केस में संभावित लक्ष्यों की सूची पढ़ता हूं तो एक ही बात मेरे दिमाग में आती है कि लक्ष्य पर ध्यान देने की जगह अंतहीन यात्रा का रास्ता क्यों चुना जा रहा है?”
दरअसल सीबीआई ने वीडियोकॉन लोन मामले में आईसीआईसीआई बैंक के अन्य टॉप अफसरों पर केस क्या दर्ज किया. ये बात जेटली को नागवार गुजर गईं. उन्होंने एफआईआर लिखने वाले सीबीआई अफसर को ही शंट करा दिया.
सीबीआई ने चंदा कोचर के खिलाफ धोखाधड़ी के मामले में बैंकिंग क्षेत्र के केवी कामथ तथा अन्य को पूछताछ के लिये नामजद किया था. केवी कामथ भारतीय बैंकिंग क्षेत्र के बिग डैडी हैं. वे ICICI बैंक के पूर्व चेयरमैन रह चुके हैं. कामथ उद्योग और बैंकिंग के क्षेत्र में बहुत तगड़ी पकड़ रखने वाले शख्स हैं. मोदी सरकार ने 2015 में केवी कामथ को ‘ब्रिक्स’ देशों द्वारा स्थापित किये जा रहे 50 अरब डॉलर के ‘न्यू डेवपमेंट बैंक’ (एनडीबी) का प्रमुख भी नियुक्त किया था.
केवी कामथ की मदद से ही एस्सार ग्रुप का सबसे कीमती एसेट एस्सार ऑयल को रूस की सरकारी कंपनी रोसनेफ्ट के नेतृत्व वाले समूह को 83 हजार करोड़ रुपये में बिकवाया. यह सौदा 2015 में जब हुआ तब गोवा में ब्रिक्स देशों का सम्मेलन चल ही रहा था. उस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने प्रचार के लिए यह मौका भुना लिया और देश भर के बड़े अखबारों में इस रकम को आज तक का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बतलाते हुए पूरे पेज के विज्ञापन छपवाए थे.
लेकिन जब 2019 में सीबीआई के हाथ केवी कामथ तक पहुंचे तो उसे भी आगे बढ़ने से रोक दिया गया. केवी कामथ, चंदा कोचर से ठीक पहले आईसीआईसीआई बैंक के सीईओ थे. बहुत संभव है कि एबीजी शिपयार्ड को लोन दिलवाने वाले वही हो. क्योंकि वीडियोकॉन को जिस समिति ने 3250 हजार करोड़ का लोन मंजूर किया था, उसके अध्यक्ष के वी कामथ ही थे.
अगर एबीजी शिपयार्ड को अनाप-शनाप तरीके से लोन देने का मामला पूरी तरह से खुल गया, तो सारी पोल पट्टी बाहर आ जाएगी और इसीलिए ऋषि अग्रवाल जैसे लोगों को सेफ पैसेज दिया जा रहा है. ताकि वह अपनी संपत्ति देश से बाहर सेटल कर ले और इन मामलों में अपना मुंह बंद रखे.
Disclaimer– ये लेखक के निजी विचार हैं.