Bokaro : जिले के चास मेन रोड पुराना बाजार में 204 साल पुराना प्राचीन दुर्गा मंदिर है. इस मंदिर के प्रति बोकारोवासियों की अटूट श्रद्धा है. पूजा के दौरान मां दुर्गा के बदलते रूप को देखना सौभाग्य माना जाता है. सप्तमी पूजा के शुरू होने के साथ हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं माता के रूप देखने आ रहे हैं. पूरा शहर मां दुर्गा के जयघोष से गूंजयमन हो उठा है. इस दुर्गा मंदिर में अष्टमी, नवमी और विजयादशमी को श्रद्धालुओं को मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों के दर्शन होते हैं. मां का प्रत्येक दिन श्रृंगार होता है. जिससे मां का स्वरूप बदलता है. पूर्वजों के नाम पर यज्ञ में घी अर्पण किया जाता है. पूजा को गरिमामय बनाने के लिये हर वर्ग के लोग सहयोग करते हैं.
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दे परिवार ने की थी मंदिर की स्थापना
इस मंदिर की स्थापना चास सुखदेव नगर निवासी दे परिवार ने दो सौ चार साल पहले की थी. उस समय चास ग्रामीण क्षेत्र हुआ करता था. तभी से दे परिवार सेवादार का दायित्व निभा रहा है. वर्तमान में सिद्धार्थ दे, भाई दीपक दे, गोपाल दे, अनाथबंधु दे, नेपाल दे, दिलीप दे सहित अन्य पूजा में अपने दायित्व को निभा रहे हैं. पुराना बाजार चास के अन्य लोग भी पूजा के आयोजन में सहयोग करते हैं.
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बंगाली रीति रिवाज से होती हैं मंदिर में दुर्गा पूजा
प्राचीन दुर्गा मंदिर में बांग्ली रीति-रिवाज से दुर्गा पूजा की जाती है. सप्तमी के दिन नवपत्रिका आगमन के साथ सैकड़ों श्रद्धालु भोलुर बांध से दंडवत करते हुए मंदिर पहुंचते हैं. प्रतिमा विसर्जन के दिन पूरे चास के श्रद्धालु उमड़ पड़ते हैं. इस वर्ष एक अक्तूबर महाषष्ठी को बेल वरण, दो अक्टूबर महासप्तमी को नवपत्रिका का आगमन, तीन अक्टूबर को महाअष्टमी की पूजा व शाम में संधि पूजा, चार अक्टूबर को महानवमी को बलि कार्यक्रम और पांच अक्टूबर को महादशमी के दिन महिलाओं की ओर से सिंदूर खेला आकर्षण का केंद्र बनेगा. साथ ही शाम को मां दुर्गा की मूर्ति का धूमधाम से विसर्जन किया जायेगा.
मां के द्वार से कोई खाली नहीं लौटता
धार्मिक मान्यता है कि इस दरबार से कोई भी भक्त खाली नहीं लौटता है. अगर भक्त विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करते हैं. ऐसा करने वालों की हर मनोकामना पूरी होती है. कई लोगों ने इस मंदिर में पूजा करके पुत्र रत्न की प्राप्ति भी की है. सिद्धार्थ दे कहते हैं कि माता रानी के शरणार्थी को मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं.
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