Latehar : लातेहार के पीरी के जंगल में बीते दिनों सुरक्षा बलों की गोली से ब्रह्मदेव नामक एक आदिवासी युवक की मौत हो गयी थी. इसको लेकर स्थानीय लोगों में आक्रोश है. झारखंड जनाधिकार महासभा भी इसके लिए आवाज बुलंद कर रही है. महासभा के विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि, पत्रकार, वकील और सामाजिक कार्यकर्ताओं के जांच दल ने 17 जून को उक्त गांव का दौरा किया. दल के सदस्यों ने ग्रामीणों और पीड़ितों से मुलाकात की. जांच दल से पीरी के ग्रामीणों ने कहा- युवकों ने चिल्ला कर कहा था कि हम माओवादी नहीं हैं, पर पुलिस चलाती रही गोली.
जांच दल ने स्थानीय प्रशासन और पुलिस की भी प्रतिक्रिया ली. दल की जांच रिपोर्ट से साफ प्रतीत होता है कि 12 जून की घटना किसी भी प्रकार से “मुठभेड़” नहीं थी. सुरक्षा बल ने निर्दोष ग्रामीणों पर गोली चलायी थी. जांच दल ने बताया कि ब्रह्मदेव और छह अन्य ग्रामीण सरहुल पर्व के लिए पारंपरिक शिकार करने के लिए घर से निकले थे. उनके पास भरटुआ बंदूक थी, जो इनके परिवारों में हमेशा से रही है. इस बंदूक से सिंगल फायर होता है और इसका इस्तेमाल छोटे जानवर के शिकार के लिए होता है.
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”झारखंड में निर्दोष आदिवासी बन रहे सुरक्षा बलों की गोली का शिकार”
जांच दल से लोगों ने बताया कि युवकों का यह समूह जंगल की ओर थोड़ी दूर (लगभग 50 फीट) बढ़ा था, तब एक समूह के एक सदस्य को जंगल किनारे सुरक्षा बल के जवान दिखे. उसने दो कदम पीछे लिए और अपने अन्य साथियों को पीछे जाने बोला. पीछे के लोग दौड़ने लगे. इतने में दूसरी तरफ से सुरक्षा बल ने गोली चलानी शुरू कर दी. ग्रामीणों द्वारा उनके भरटुआ बंदूक से फायरिंग नहीं की गयी थी. उन्होंने पुलिस को देखते ही हाथ उठा दिया और चिल्लाया कि वे आम जनता हैं, माओवादी (पार्टी) नहीं हैं और गोली न चलाने का अनुरोध किया. फिर भी पुलिस द्वारा लगातार गोली चलायी गयी, जिसमें दिनेनाथ नामक युवक के हाथ में गोली लगी और ब्रह्मदेव के पेट में. इसके बाद सुरक्षा बल ने ब्रह्मदेव को जंगल किनारे ले जाकर फिर से गोली मारी. ग्रामीणों के अनुसार आधे घंटे तक पुलिस की ओर फायरिंग की गयी. जांच दल को ग्रामीणों ने यह भी कहा कि सभी छह पीड़ितों का माओवादी संगठन से किसी प्रकार का रिश्ता नहीं है.
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पुलिस सच्चाई छुपा रही है
जांच दल से लोगों ने कहा कि पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी से यह स्पष्ट है कि वह सच्चाई छुपाना चाह रही है. प्राथमिकी में ब्रह्मदेव की पुलिस की गोली से हत्या का कहीं ज़िक्र नहीं है. इस कार्रवाई को मुठभेड़ कहा गया और यह लिखा गया है कि हथियार बंद लोगों द्वारा पहले फायरिंग की गई और कुछ लोग जंगल में भाग गए. साथ ही, मृत ब्रह्मदेव का शव जंगल किनारे मिला. यह तथ्यों से विपरीत है. पुलिस ग्रामीणों पर दबाव बनाकर रखना चाहते हैं ताकि पुलिस द्वारा गोलीबारी और हत्या पर ग्रामीण सवाल न उठाए. थाने में उन लोगों से कई कागजों (कुछ सादे व कुछ लिखित) पर हस्ताक्षर करवाया गया (या अंगूठे का निशान लगवाया गया).
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राज्य में लगातार हो रही हैं ऐसी घटनाएं
महासभा के अनुसार राज्य में इस तरह की घटनाएं लगातार घट रही हैं. जून 2020 में पश्चिमी सिंहभूम के चिरियाबेड़ा गांव के आदिवासियों की CRPF द्वारा सर्च अभियान के दौरान बेरहमी से पिटाई की गयी थी. हालांकि चाईबासा के अधीक्षक ने हिंसा में CRPF की भूमिका को माना था, लेकिन पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी में हिंसा के लिए ज़िम्मेवार CRPF शब्द तक का ज़िक्र नहीं है. इस घटना में आज तक न पीड़ितों को मुआवज़ा मिला और न जिम्मेवार CRPF सैनिकों पर कार्रवाई हुई.
हेमंत सरकार में भी हो रहा मानवाधिकारों का उल्लंघन
महासभा ने कहा कि पिछली भाजपा सरकार कई ऐसी घटनाएं हुईं. इसके बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में महागठबंधन को स्पष्ट जनादेश मिला. लेकिन यह यह दुख की बात है कि इस सरकार में भी मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाएं हो रही हैं. आदिवासियों पर हिंसा और पुलिसिया दमन थमा नहीं है.
मामले के निष्पक्ष जांच के लिए न्यायिक कमीशन का गठन हो
महासभा ने कहा कि सरकार औपचारिक रूप से सच्चाई को सार्वजानिक करे कि यह माओवादियों के साथ मुठभेड़ नहीं थी. न ही यह सुरक्षा बल द्वारा जवाबी कार्रवाई थी. शिकार पर निकले आदिवासियों ने पहले सुरक्षा बल पर गोली नहीं चलायी थी. सुरक्षा बल द्वारा निर्दोष आदिवासियों पर गोली चलायी गयी और ब्रह्मदेव की हत्या की गयी. फिर मामले को छुपाने की कोशिश की गयी. मामले के निष्पक्ष जांच के लिए न्यायिक कमीशन का गठन हो. ज़िम्मेवार सुरक्षा बल के जवानों व पदाधिकारियों पर प्राथमिकी दर्ज की जाए. पुलिस द्वारा आदिवासियों पर दर्ज प्राथमिकी को रद्द किया जाए. ब्रह्मदेव की पत्नी को कम-से-कम 10 लाख रुपये मुआवज़ा दिया जाए.